भगवान शिव के इस भक्त ने चढ़ा दी थी अपनी आंख, पढ़ें पौराणिक कथा

धार्मिक मान्यता के अनुसार सावन (Sawan 2025) में भगवान शिव की पूजा करने से बिगड़े काम पूरे होते हैं और शिव जी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। वैसे तो महादेव के कई भक्त हैं जिनमें कन्नप्पा भी शामिल हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कौन थे कन्नप्पा।
भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए सावन का महीना बेहद शुभ माना जाता है। सावन में महादेव की पूजा-अर्चना करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में आने वाले सभी संकट दूर होते हैं।
वैसे तो प्राचीन समय में महादेव के कई भक्त थे, जिनमें लंकापति रावण भी शामिल था, लेकिन क्या आपको पता है कि रावण के अलावा भी एक बड़े शिव भक्त थे, जिसने शिव जी को अपनी आंख तक चढ़ा दी थी। कनप्पा (kannappa katha) का संबंध शिकारी समुदाय से था। उनका असली नाम थिन्नन था। ऐसे में आइए जानते हैं इस शिव भक्त के बारे में विस्तार से।
भगवान शिव के महान भक्तों में कन्नप्पा शामिल हैं। वह एक शिकारी समुदाय से ताल्लुक रखते थे। उनकी कथा श्रीकालहस्ती मंदिर से जुड़ी हुई है। उन्होंने जीवन के दौरान महादेव की पूजा-अर्चना की थी। वह शिव भक्ति के कारण प्रसिद्ध थे।
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, शिकारी समुदाय से कनप्पा का नाता था। एक बार कनप्पा शिकार के दोर्णा श्रीकालहस्ती पहुंचे। इस दौरान उन्हें एक शिवलिंग मिला, जिसकी वह पूजा-अर्चना किया करते थे। उन्हें विधि विधान से पूजा करनी नहीं आती थी। जंगल के फूल बिना धोए शिवलिंग पर अर्पित करते थे और शिकार करने के बाद वह शिवलिंग पर कच्चा मांस चढ़ाते थे।
जब एक बार शिवलिंग को पुजारी ने अशुद्ध देखा, तो वह क्रोधित हुए। उनको लगा कि शिवलिंग को अशुद्ध करने का काम किसी जानवर का है। लेकिन रोजाना शिवलिंग को अशुद्ध दिखने पर लगा कि यह काम किसी इंसान का है। ऐसे में पुजारी परेशान होने लगा, तो महादेव ने संदेश दिया कि शिवलिंग को अशुद्ध करने का काम मेरे भक्त का है। उस भक्त को पूजा करनी नहीं आती है, लेकिन उसकी भक्ति से मैं प्रसन्न हूं।
एक दिन शिवलिंग की पूजा करने के लिए कन्नप्पा, तो उन्होंने देखा कि शिवलिंग से खून बह रहा है। इसको देख उनको लगा कि आंख में चोट लग गई है। ऐसे में उन्होंने खून को रोकने के लिए जड़ी-बूटी लगाई। इसके बाद भी खून नहीं रुका। इसके बाद कन्नप्पा ने अपनी एक आंख निकालकर शिवलिंग पर चढ़ा दी। इसके बाद भी खून नहीं रुका, जिसके बाद उन्होंने अपनी दूसरी आंख को निकालने का फैसला लिया। लेकिन इतने में उनको शिव जी ने रोक दिया।