बिना दीया और बाती के जलती है इस मंदिर की अखंड ज्योति, इस नवरात्र जरूर करें ज्वाला देवी मंदिर के दर्शन

देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वाला देवी मंदिर (Jwala Devi Mandir) भी है जो हिमाचल प्रदेश में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर की महत्ता इतनी बड़ी है कि हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालू माथा टेकने आते हैं। आइए जानें इस मंदिर की खासियत और यहां कैसे पहुंचे।

भारत के हिमाचल प्रदेश की गोद में स्थित ज्वाला देवी मंदिर (Jwala Devi Temple) न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह देश के 51 शक्तिपीठों में से एक खास स्थान रखता है। कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी नगर में स्थित यह मंदिर ज्वाला देवी को समर्पित है।

इस मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं, जो इसे बेहद खास बनाती हैं और शिवालिक पर्वत श्रृंखला की खूबसूरत वादियों के बीच बसे इस मंदिर के दर्शन करने लाखों श्रद्धालुओं हर साल यहां आते हैं। आइए जानें क्या है इस मंदिर की महत्ता और यहां जाने का रास्ता क्या है।

पौराणिक मान्यता
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती ने जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमान सहन न कर आत्मदाह किया, तब भगवान शिव ने क्रोध में उनका जला हुआ शरीर उठाकर ब्रह्मांड का चक्कर लगा रहे थे और नारायण ने अपने चक्र से देवी सती के शरीर के टुकड़े किए थे।

इस दौरान उनके अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे और वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि ज्वाला देवी मंदिर उसी पवित्र स्थल पर बना है जहां माता सती की जीभ गिरी थी। यही कारण है कि यहां देवी की प्रतिमा नहीं बल्कि प्राकृतिक ज्योतियां निरंतर जलती रहती हैं, जिन्हें माता सती की जीभ का प्रतीक माना जाता है।

इस मंदिर से जुड़ी कई किवदंतियां भी हैं, जिसमें से एक है मुगर बादशाह अकबर को जब इस मंदिर के बारे में पता चला, तो वह अपनी सेना लेकर इस मंदिर की ज्योति बुझाने आया था। लेकिन हजारों कोशिशों के बाद भी इस मंदिर की ज्योति निरंतर जलती रही। इसके बाद अकबर ने इस मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया था।

मंदिर की खासियत
ज्वाला देवी मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती। मंदिर में कई जगहों से प्राकृतिक ज्वालाएं निकलती हैं, जो अनादि काल से लगातार जल रही हैं। इन ज्योतियों को ही माता का स्वरूप माना जाता है और भक्त इन्हें नमन करते हैं। यही कारण है कि इसे भारत का सबसे अनोखा शक्तिपीठ कहा जाता है।

ऐसा भी माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सबसे पहले पांडवों ने कराया था। तब से लेकर आज तक यह आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। नवरात्र के समय यहां का दृश्य और भी भव्य हो जाता है। हर साल मार्च–अप्रैल और सितंबर–अक्टूबर में नवरात्र मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

यहां आकर श्रद्धालु अपने जीवन की मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि ज्वाला मां सच्चे मन से की गई हर पुकार को सुनती हैं और अपने भक्तों को संकटों से उबारती हैं।

यहां कैसे पहुंचे?
ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गगल एयरपोर्ट है, जो लगभग 50 किलोमीटर दूर है। रेल मार्ग से आने वाले यात्री पठानकोट रेलवे स्टेशन तक पहुंचकर बस या कार से यहां आ सकते हैं। बस और टैक्सी सेवाएं कांगड़ा, धर्मशाला और शिमला से नियमित रूप से उपलब्ध हैं।

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