फ्लेम रिटार्डेंट: कारों में इस्तेमाल रसायनों से कैंसर के खतरे की जांच तेज

कारों में इस्तेमाल होने वाली आग रोकने वाले रसायनों (फ्लेम रिटार्डेंट) से ड्राइवरों और यात्रियों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर उसका अध्ययन तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसकी जानकारी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को दी है। रिपोर्ट के अनुसार, आईसीएमआर ने कहा कि लोगों की सेहत से जुड़ा यह मामला बेहद अहम है और इसे गंभीरता से लिया जा रहा है।
आईसीएमआर के अनुसार, अध्ययन में यह जांच की जा रही कि कारों में उपयोग होने वाले फ्लेम रिटार्डेंट रसायन किस हद तक हवा में घुलते हैं और उनका मानव स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है। आईसीएमआर ने एनजीटी को भरोसा दिलाया कि सभी जरूरी वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का पालन किया जा रहा और यह अध्ययन अगले 18 महीनों में पूरा किया जाएगा।
यह अध्ययन एक मीडिया रिपोर्ट के बाद शुरू किया गया, इसमें दावा किया कि कारों के अंदर मौजूद कुछ रसायन सांस के जरिये शरीर में जाकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकते हैं। ऐसे में एनजीटी ने खुद से इस पर संज्ञान लिया और जुलाई 2024 में आईसीएमआर को इसमें शामिल किया। सितंबर, 2025 में एनजीटी ने आईसीएमआर से अध्ययन की योजना मांगी थी।
अब आईसीएमआर ने अपनी प्रगति रिपोर्ट सौंपी है। आईसीएमआर के अतिरिक्त महानिदेशक (प्रशासन) जैबीर सिंह ने हलफनामे में कहा कि अध्ययन 24 सितंबर, 2025 को मंजूर हुआ था। तब से तीन महीनों में काफी काम हो चुका है। अध्ययन का लक्ष्य है कि ड्राइवरों पर इन रसायनों का क्या असर पड़ता है, खासकर स्वास्थ्य पर। आईसीएमआर ने कहा कि वे समय पर काम कर रहे हैं और एनजीटी के आदेशों का पालन करेंगे।
अध्ययन में अब तक क्या हुआ?
आईसीएमआर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 18 महीनों की समय-सीमा तय की गई है। इसमें विभिन्न चरण हैं, जैसे स्टाफ की भर्ती, सामग्री खरीदना, सैंपल इकट्ठा करना, परिणामों का विश्लेषण और रिपोर्ट बनाना। तीन महीनों में हुए मुख्य काम इस प्रकार हैं। इस कड़ी में स्टाफ की भर्ती में दो प्रोजेक्ट टेक्नीशियन-III को 3 नवंबर 2025 को नियुक्त किया गया।
एक ऑफिस हेल्पर को 4 दिसंबर 2025 को जोड़ा गया। ये सभी अध्ययन के लिए जरूरी हैं। इसके अलावा, रसायनों और सामग्री की खरीद के लिए एसिटोनाइट्राइल, एन-हेक्सेन, मेथनॉल जैसे घोलक (सॉल्वेंट्स), फॉर्मिक एसिड, सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम सल्फेट और एलसी-एमएस ग्रेड पानी खरीद लिए गए हैं। वहीं, तीन मुख्य फ्लेम रिटार्डेंट कंपाउंड्स के लिए प्रमाणित संदर्भ सामग्री (सीआरएम) भी प्राप्त कर ली गई है।
सैंपल इकट्ठा करने और जांचने के लिए सामान की हो रही खरीदारी
रिपोर्ट के अनुसार, फ्लेम रिटार्डेंट्स के मेटाबोलाइट्स (उत्पाद) और अन्य जरूरी सामग्री की खरीद प्रक्रिया में है। सैंपल इकट्ठा करने और जांचने के लिए और सामान भी खरीदा जा रहा है। यही नहीं, अध्ययन में हिस्सा लेने वाले लोगों को शामिल करने के लिए आईसीएमआर की टीम ने अहमदाबाद और गांधीनगर में दो वाहन एजेंसियों का दौरा किया। ये जगहें गर्म और शुष्क इलाकों (हॉट एंड एरिड जोन) में आती हैं, जहां अध्ययन के लिए सैंपल लिए जाएंगे।
साथ ही, जरूरी एलसी-एमएस (लिक्विड क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री) मशीन की खरीद चल रही है। यह मशीन रसायनों की जांच के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आईसीएमआर ने कहा है कि ये सभी काम समय-सीमा के पहले चरण (0-3 महीने) में पूरे हो गए हैं। अगले चरणों में एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) तैयार करना, तरीकों की जांच करना और सैंपल इकट्ठा करना शामिल है।
अध्ययन की समय-सीमा क्या है?
आईसीएमआर ने एनजीटी को सौंपी जानकारी में अपने अध्ययन की पूरी समय-सीमा भी बताई है। योजना के अनुसार, पहले 0 से 3 महीनों में जरूरी स्टाफ की भर्ती की जाएगी और शोध से जुड़ी सामग्री खरीदी जाएगी। इसके बाद 4 से 6 महीनों के दौरान अध्ययन के लिए मानक प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की जाएगी और इस्तेमाल होने वाले तरीकों की जांच की जाएगी। 7 से 9 महीनों में सैंपल एकत्र किए जाएंगे। 10 से 12 महीनों के बीच इन सैंपलों से मिले नतीजों का विश्लेषण और उनकी व्याख्या की जाएगी।
13 से 15 महीनों में पूरी रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जबकि आखिरी चरण में, यानी 16 से 18 महीनों के दौरान रिपोर्ट जमा की जाएगी और उसके निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाएगा। यह अध्ययन पूरा होने पर पता चलेगा कि कारों में इस्तेमाल होने वाले इन रसायनों से ड्राइवरों को कैंसर या अन्य बीमारियों का कितना खतरा है।





