दुखियों की सेवा करो,यहीं सबसे बड़ा धर्म है

लाहौर में एक बहुत अनुभवी चिकित्सक रहता था। वह श्री गुरु गोविंदसिंह जी के दर्शन करने आनंदपुर आया। गुरुजी ने उसे गुरुमंत्र दिया- जाओ, पाओगे।

वह रोपड़ जाकर चिकित्सा करने लगा। जिस समय कोई बीमार आता तभी वह सेवा समझकर बड़े प्रेम के साथ दवाई करता था।दुखियों की सेवा करो,यहीं सबसे बड़ा धर्म है

एक दिन सवेरे बैठा हुआ वह पूजा-पाठ कर रहा था। गुरुजी आनंदपुर से चलकर आए और उसके सामने जाकर बैठ गये। उनका शिष्य ध्यान में इतना लीन था कि वह गुरुजी के आगमन को जान नहीं सका।

किसी ने उसी समय बाहर से आवाज दी- चिकित्सकजी! फलां आदमी बीमार है, चलो उसका इलाज करो।

 ध्यान छूटा, पाठ छूटा और सामने गुरुजी थे। दोनों में से किसको छोडूं? इसका निर्णय करने में उसने गुरुजी के पूर्व कथन पर विचार किया- ‘दुखियों की सेवा करना सबसे पहला काम है। इस सेवा का ही फल है कि आज गुरुजी मेरे पास आए हैं।’

उसने जाने का निश्चय किया और चला गया। रोगी को दवा देकर वापस आया। गुरुजी को प्रतीक्षा करनी पड़ी थी जिसके लिए उसने चरणों में गिरकर माफी मांगी।

गुरुजी ने शिष्य को गले लगा लिया और कहा- ‘बस दुखियों की सेवा ही गुरु को खुश करती है।’

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