#नोटबंदीः रिजर्व बैंक ने भी माना फायदे का सौदा, जाली करेंसी पकड़ने में मिली सफलता, घटी महंगाई

नोटबंदी पर जारी राजनीतिक रस्साकशी के बीच रिजर्व बैंक की वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट इस अभूतपूर्व फैसले को अलग नजरिए से देखने का मौका देती है। इस रिपोर्ट में नोटबंदी और विभिन्न क्षेत्रों में उसके असर को आंकड़ों के आधार पर बताया गया है। अमर उजाला ने अपने पाठकों के लिए इन्हीं जानकारियों का विश्लेषण किया:#नोटबंदीः रिजर्व बैंक ने भी फायदे का सौदा, जाली करेंसी पकड़ने में मिली सफलता, घटी महगाई

महंगाई घटी : खाद्य पदार्थों में 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी घरेलू उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई वस्तुओं एवं सेवाओं का औसत मूल्य बताने वाले सूचकांक का करीब 13 प्रतिशत हिस्सा नष्ट होने वाले उत्पादों या कहें मुख्य तौर से फल-सब्जियां और अन्य प्रमुख खाद्य पदार्थों का है।

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महंगाई दर में खाद्य पदार्थों की महंगाई जून, 2016 में करीब 8 प्रतिशत योगदान दे रही थी। अगस्त, 2016 से इनके दामों में कमी आनी शुरू हो गई थी। लेकिन तीसरी तिमाही में नोटबंदी और  मंडी में ताजा फसल आने के बाद यह गिरावट और तेज हो गई। नवंबर और दिसंबर में यह दर करीब 4.2 प्रतिशत पर आ गई और बाद के महीनों में और गिरी।

पैसा 1 : दो महीने में देशवासियों के हाथ से आधा कैश घट गया

बीते वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में रिजर्व मनी (आरएम : वह पैसा जो इस समय देश में चलन में है, बैंकों द्वारा आरबीआई में जमा कराया गया है और आरबीआई में अन्य तरह से जमा है) सकारात्मक प्रदर्शन कर रहा था।

4 नवंबर, 2016 को देशवासियों के हाथ में 18 लाख करोड़ रुपये थे। यह देश के इतिहास में चलन में मौजूद सबसे बड़ी धनराशि थी, जिसे कैश इन सर्कुलेशन (सीआईसी) कहा जाता है। वहीं कुल आरएम 22.5 करोड़ रुपये हो चुका था। लेकिन चार दिन बाद ही नोटबंदी की घोषणा ने इसे दबाना शुरू दिया।

6 जनवरी, 2017 तक सीआईसी घटकर नौ करोड़ रुपये यानी आधा रह गया। यह छह साल पहले की स्थिति थी जब 2011-12 में सीआईसी 9 करोड़ रुपये हुआ करता था। वहीं आरएम भी 13.8 करोड़ रुपये रह गया।

रीमॉनेटाइजेशन ने हालात को सुधारना शुरू किया। लेकिन इसमें समय लगा। मार्च, 2017 तक सीआईसी 18 करोड़ रुपये के अपने उच्चतम स्तर के करीब 74.3 प्रतिशत पहुंच सका।

पैसा 2 : दो हजार के नए नोट कुल मुद्रा मूल्य का आधा हिस्सा बने
नागरिकों के बीच चलन में मौजूदा रुपयों का कुल मूल्य मार्च, 2017 तक बीते वित्त वर्ष के मुकाबले 20.20 प्रतिशत घट गया था। मात्रा में देखें तो यह गिरावट 13,102 अरब रुपये की है। जबकि इसी दौरान कुल नोटों की संख्या में 11.10 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसकी वजह छोटे नोटों की संख्या बढ़ना है।

10 और 100 रुपये के नोट कुल नोटों का 62 प्रतिशत हिस्सा बन चुके हैं जो इसके पिछले वित्त वर्ष 53 प्रतिशत ही थे। 500 रुपये और इससे बड़े मूल्य के नोट जो मार्च, 2016 तक कुल बैंक नोटों का 86.4 प्रतिशत थे, एक साल में घटकर 73.4 प्रतिशत रह गए।

नए शुरू किए गए 2 हजार रुपये के नोट नागरिकों द्वारा उपयोग किए जा रहे सभी प्रकार के कुल नोटों के मूल्य का 50.20 प्रतिशत हिस्सा बन गए हैं।

पैसा 3 : नए और साफ नोट आए, लेकिन फटे-पुराने भी चले

नोट आखिर नोट होता है। नोट कैसा है, कितना सुंदर है उसका नोट के मूल्य पर कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर भी मुद्रा बदलने की वजह से बीते वर्ष में सरकार ने बड़ी मात्रा में नए नोट जारी किए। 2015-16 में 21.2 अरब नए नोट छाप कर नागरिकों में बांटे गए थे, जबकि बीते वित्त वर्ष यह संख्या 29 अरब पहुंच गई। दूसरी तरफ 12.5 अरब फटे-पुराने (सॉइल्ड) और खराब हो चुके नोट आरबीआई ने जमा किए।

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यह न समझें कि नोटबंदी के बाद ज्यादा तादाद में पुराने नोट जमा हुए होंगे, बल्कि इसमें कमी आई। 2015-16 में तो 16.4 अरब पुराने नोट बदले गए थे। दरअसल ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नोटबंदी से पैदा हुई कैश की कमी से निपटने के लिए 100 रुपये और इससे कम मूल्य के नोट पुराने होने पर भी आरबीआई को चलवाने पड़ गए।

पैसा 4 : जाली करेंसी पकड़ने में ढाई गुनी सफलता

जाली नोट पकड़ने के लिए आरबीआई ने सर्वे के आधार पर नया अनुमान लगाया। इसके लिए 8 नवंबर 2016 के तुरंत बाद करेंसी चेस्ट के स्तर और फिर आरबीआई के स्तर पर जांच करते हुए यह सर्वे कराया गया।

देश के कोने-कोने में मौजूद 19 शहरों (शहरी व ग्रामीण दोनों) की 4,001 करेंसी चेस्ट में से 1,051 करेंसी चेस्ट से 500 और 1000 रुपये मूल्य के 220 करोड़ नोट सैंपल के रूप में मंगवाए गए। जांच में सामने आया कि 500 रुपये के हर एक करोड़ नोटों में 71 नोट नकली हैं। एक हजार रुपये के हर एक करोड़ नोटों में 191 नोट नकली मिले। वहीं आरबीआई के करेंसी वेरिफिकेशन व प्रोसेसिंग सिस्टम पर दूसरी स्टेज में इन नकली नोटों की जांच करवाई गई।

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इसमें पांच सौ रुपये के एक करोड़ नोटों में 55 और एक हजार के एक करोड़ नोटों में 124 नोट नकली निकले। खास बात यह रही कि 2015-16 में आरबीआई की जांच में 500 और हजार के क्रमश: 24 और 58 नोट प्रति एक करोड़ नोट नकली निकल रहे थे। आरबीआई का दावा है कि नोटबंदी के दौरान बड़ी संख्या में नकली नोट पकड़ने में सफलता मिली।

संदिग्ध लेन-देन : छह गुना बढ़ा
साल 2015-16 में बैंकों ने 61,361 संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्ट आरबीआई को दी थी। नोटबंदी के साल में यह संख्या बढ़ा 3,61,214 पहुंच गई। यानी करीब छह गुना वृद्धि।

लिक्विडिटी : बैंकों में पैसा आया
जहां सीआईसी और आरएम घटा, वहीं बैंकों में  नागरिकों द्वारा जमा करवाए कैश की वजह से बैंकों के पास भारी मात्रा में पैसा जमा होने लगा। वित्त वर्ष खत्म होने तक बैंकों का 42,300 करोड़ रुपया आरबीआई के पास जमा हो चुका था। 2016-17 के लिए आरबीआई के बैंकों पर उधार में 6.1 लाख करोड़ रुपये की कमी आई। जबकि 2015-16 में यह यह एक लाख करोड़ रुपये बढ़ गई थी। इन हालात में सिस्टम में कैश लिक्विडी तेजी से बढ़ी।

सोने के आयात पर असर घट गया

2015-16 के मुकाबले बीते वित्त वर्ष में सोने के आयात में गिरावट आई तो इसके पीछे आरबीआई ने चार प्रमुख वजहों में नोटबंदी से पैसा हुई कैश की कमी को भी एक माना। अन्य वजहें एक प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी के विरोध में सुनारों की हड़ताल, आय घोषणा की योजना और सोने की बढ़े हुए दाम बताई गईं।

गरीब कल्याण : जेब से 1,240 करोड़ दे गए लोग
नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार द्वारा 17 दिसंबर को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण डिपॉजिट स्कीम शुरू की गई। 31 मार्च तक चली इस स्कीम का लक्ष्य नागरिकों को टैक्स माफी देना था। रिजर्व बैंक के अनुसार लोगों ने इस योजना में 1,240 करोड़ रुपये जमा किए।

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इस स्कीम के तहत लोग अपनी अघोषित राशि को निर्धारित खातों में जमा करके करीब 50 प्रतिशत टैक्स व जुर्माना चुका बाकी पैसा भविष्य में वापस ले सकते थे।
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