नोट-वोट की सियासत में जिंदगियों को लील रहा है अवैध निर्माण, हर साल जाती है कई लोगों की जान

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अवैध निर्माण का जंजाल हर साल कई जिंदगियों को लील रहा है। मुस्तफाबाद में यह हादसा उस समय हुआ, जब क्षेत्र के ही विधायक और दिल्ली विधानसभा के उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट ने हाल ही में विधानसभा में अवैध निर्माण का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था, लेकिन नोट और वोट की सियासत के आगे यह मुद्दा फिर दब गया और नतीजा एक बार फिर कई जिंदगियों के नुकसान के रूप में सामने आया।
दिल्ली में हर साल कई लाेगों की मौत इमारत गिरने से होती है। जब हादसा होता है तब सभी संबंधित एजेंसियों की ओर से कागजी कार्रवाई के नाम पर हो-हल्ला होता है। जनप्रतिनिधि भी बयानबाजी कर खानापूर्ति करते हैं। इसके बाद सब कुछ मौन की स्थिति में चला जाता है। अवैध निर्माण को लेकर हालात यह हैं कि संबंधित एजेंसियाें के अधिकारी ले-देकर अपनी आंखें बंद कर लेते हैं।
वहीं जनप्रतिनिधी वोट बैंक को देखते हैं जिससे वे अपने राजनीतिक भविष्य की नइयां को पार लगा सकें। इन दोनों प्रमुख वजहों से दिल्ली में अवैध निर्माण का मुद्दा लगातार गहरा होता गया है। अब स्थिति ऐसी है कि दिल्ली में अवैध निर्माण का दायरा काफी व्यापक है। इनमें अनधिकृत कॉलोनियां, बिना मंजूरी के बनी इमारतें, स्वीकृत नक्शे से अधिक निर्माण और जर्जर इमारतें शामिल हैं।
अवैध निर्माण के मामले अधिक, लेकिन कार्रवाई संतोषजनक नहीं
राजधानी में करीब 1,700 अनधिकृत कॉलोनियां हैं जहां लाखों लोग रहते हैं। ये कॉलोनियां बिना सरकारी मंजूरी के विकसित हुईं और इनमें से कई में बुनियादी सुविधाएं जैसे पानी, बिजली और सीवरेज तक सीमित हैं। हाल के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में दिल्ली में 76,000 से अधिक अवैध निर्माण के मामले सामने आए हैं, लेकिन कार्रवाई को देखा जाए तो आधे मामलों में भी ठीक तरह से नहीं हो सकी है। विशेष रूप से मुस्तफाबाद, सीलमपुर, जाफराबाद, सीमापुरी, जामिया, और पुरानी दिल्ली जैसे इलाकों में अवैध निर्माण की बाढ़ है।
नियम हैं, लेकिन पालन नहीं होता
दिल्ली में इमारत के निर्माण के लिए नियम और दिशा-निर्देश दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), नगर निगम (एमसीडी), राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता (एनबीसी) 2016 और दिल्ली मास्टर प्लान जैसे विभिन्न नियामक ढांचों द्वारा निर्धारित किए गए हैं। ये नियम सुनिश्चित करते हैं कि निर्माण सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल और शहरी नियोजन के अनुरूप हो। कोई भी निर्माण शुरू करने से पहले डीडीए, एमसीडी या संबंधित स्थानीय निकाय से भवन नक्शे की मंजूरी लेना अनिवार्य है।
दिल्ली को विभिन्न जोन (आवासीय, वाणिज्यिक, औद्योगिक, संस्थागत) में बांटा गया है। निर्माण केवल निर्धारित जोन के अनुसार ही हो सकता है, जैसे कि आवासीय क्षेत्र में केवल आवासीय भवन बनाए जा सकते हैं, जब तक कि विशेष अनुमति न हो। विशेष बात यह है कि राजधानी में नियमित काॅलोनियों में निर्माण के लिए नक्शा पास कराने पर ही निर्माण किया जा सकता है। अनधिकृत काॅलोनियों में निर्माण होने पर निगम इसके लिए 48 घंटे पहले नोटिस देकर गिरा सकता है, लेकिन इन नियमों का पालन ठीक से नहीं किया जा रहा।
अवैध निर्माण पर इन विभागों की है सीधी जिम्मेदारी
दिल्ली विकास प्राधिकरण : भूमि उपयोग और मास्टर प्लान के अनुसार निर्माण की मंजूरी
नगर निगम : स्थानीय स्तर पर भवन निर्माण की निगरानी और अनधिकृत निर्माण पर कार्रवाई
दिल्ली पुलिस : अवैध निर्माण की सूचना संबंधित निकायों को देना और कार्रवाई में सहयोग
लोक निर्माण विभाग : सरकारी जमीन पर अतिक्रमण की निगरानी
हाल के वर्षों में राजधानी में इमारतें गिरने के कुछ मामले
28 जनवरी 2025 को बुराड़ी के सैनिक एन्क्लेव में बनाई जा रही पांच मंजिला इमारत गिरने से पांच लोगों की मौत।
8 अगस्त 2024 को किराड़ी के प्रेम नगर में इमारत का छज्जा गिरने से दंपती की मौत।
3 अगस्त 2024 को जहांगीरपुरी में तीन मंजिला इमारत गिरने से तीन लोगों की मौत।
24 अगस्त 2023 को ओखला में निर्माणाधीन इमारत गिरने से दो लोगों की मौत।
9 सितंबर 2022 को आजाद मार्केट में निर्माणाधीन इमारत गिरने से तीन लोगों की मौत।
8 अक्तूबर 2022 काे फराश खाना में इमारत गिरने से चार लोगाें की मौत।
2 सितंबर 2019 को सीलमपुर में चार मंजिला इमारत गिरने से दो लोगों की मौत।
15 नवंबर 2010 को लक्ष्मी नगर में इमारत गिरने से 67 लोगों की मौत।
भूमाफिया, एमसीडी व पुलिसकर्मियों की मिलीभगत से अवैध निर्माण जारी : ममगाई
नगर निगम के पूर्व चेयरमैन जगदीश ममगाई का कहना है कि पुरानी कच्ची कॉलोनियां नियमित नहीं की गईं और अवैध निर्माण निरंतर जारी हैं। कार्रवाई के नाम पर सरकार लीपापोती करती रहेगी, ऐसे ही लोग मरते रहेंगे। नक्शा पास कराकर जनता वैध निर्माण करा नहीं सकती तो चोरी छिपे निर्माण कराएगी और ऐसे जानलेवा हादसे होंगे। भूमाफिया, एमसीडी व पुलिसकर्मियों की मिलीभगत से अवैध निर्माण जारी हैं, धारणा है कि निगम के बिल्डिंग विभाग कर्मी, पार्षद एवं पुलिसकर्मी इनसे उगाही करते हैं।
इसके लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई। अप्रैल 2006 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों एवं व्यक्तियों को नामजद कर कार्रवाई के लिए सीबीआई जांच के आदेश दिए पर केंद्र सरकार ने प्रक्रिया आरंभ नहीं की। मई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में हुए लाखों अनधिकृत निर्माण के लिए जिम्मेदार विभिन्न सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों पर आपराधिक मुकद्दमा दर्ज करने, निलंबन की कार्रवाई के निर्देश दिए, पर कार्रवाई नहीं हुई।