नवरात्रि 2019: नवरात्रि के इन 9 दिनों में कलश स्थापना और अखंड ज्योति के साथ करे देवी दुर्गा की पूजा
नवरात्रि में मां के सामने अपनी श्रद्धा प्रकट करने के तमाम तरीके हैं और इन्हीं में एक है अखंड ज्योति का जलाना। ये वो ज्योति है तो मां के आगे नवरात्रि में दिन-रात लगातार जलती है। इसे कभी बुझने नहीं देना चाहिए। लगातार जलने की वजह से ही इसे अखंड ज्योति कहा जाता है। अगर आप ऐसा करते हैं तो याद रखें कि इस दौरान घर में कभी ताला नहीं लगाना चाहिए। इसके पीछे धारणा यही है कि परिवार के सदस्यों की गैर-मौजूदगी में अगर ये ज्योति बुझ जाए तो अपशकुन होता है।
बता दें कि नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के जिन स्वरूपों की पूजा होती है उनमें माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि देवी हैं। नवरात्रों में नौ दिनों तक देवी माता जी का विशेष श्रृंगार करना चाहिए। चोला, फूलों की माला, हार और नए कपड़ों से माता जी का श्रृंगार किया जाता है। वहीं नवरात्र में देशी गाय के घी से अखंड ज्योति जलाना मां भगवती को बहुत प्रसन्न करने वाला कार्य होता है। लेकिन अगर गाय का घी नहीं है तो अन्य घी से माता की अखंड ज्योति पूजा स्थान पर जरूर जलानी चाहिए।
जानें अखंड ज्योति का महत्व
हर पूजा में दीपक का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि पूजा में यह भक्त की भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक होता है। इसलिए दीपक के बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं होती। नवरात्रि क्योंकि नौ दिनों की होती है इसलिए इसमें अखंड ज्योति जलाई जाती है अर्थात् यह पूरे 9 दिनों तक दिन-रात जलने वाला दीपक होता है।
ऐसी मान्यता है कि अगर संकल्प लेकर कलश स्थापना करते हुए अखंड ज्योति जलाई गई है तो व्रत की समाप्ति तक इसे बुझना नहीं चाहिए। यह पूजा में विघ्न का प्रतीक है और आने वाले समय में संकटों का संकेत देता है। इसलिए जब भी नवरात्रि का संकल्प लेकर अखंड दीपक जलाएं तो इसके नियमों का पालन अवश्य करें।
कैसे पात्र में जलाएं अखंड ज्योति
अक्सर लोगों को लगता है कि अखंड ज्योति सिर्फ पीतल के दीप पात्र में ही जलाया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं है। पीतल को शुद्ध माना जाता है, इसलिए पूजा में इससे बने पात्रों को प्रयोग किया जाता है। अगर आप पीतल का दीया नहीं जला सकते, तो मिट्टी का दीप-पात्र ले सकते हैं।
अगर मिट्टी का दीपक जला रहे हैं, तो इसमें अखंड ज्योति लगाने से 24 घंटे पहले इसे साफ जल से भरे किसी बरतन में पानी में पूरी तरह डुबोकर रखें। दरअसल भट्टी से निकले हुए मिट्टी के बरतन सोख्ते की तरह काम करते हैं। इसलिए अगर पानी में भिगोये बिना आप इसे इस्तेमाल करेंगे तो जितना तेल जलने में इस्तेमाल होगा उतना ही यह पात्र सोख लेगा। इसलिए 24 घंटे भिगोने के बाद उसे पानी से निकालें और और किसी साफ कपड़े से पोंछकर सुखा लें।
अखंड ज्योति जलाने की विधि
अखंड ज्योति का यह दीया कभी खाली जमीन पर नहीं रखा जाता। इसलिए चाहे आप चौकी या पटरे पर इसे जला रहे हों या देवी के सामने जमीन पर रख रहे हों, दीये को रखने के लिए अष्टदल अवश्य बनएं। यह अष्टदल आप गुलाल या रंगे हुए चावलों से बना सकते हैं। पीले या लाल चावलों से चित्रानुसार अष्टदल बना लें।
अखंड ज्योति में जलाने वाला दीया कभी बुझना नहीं चाहिए, इसलिए इसकी बाती विशेष होती है। यह रक्षासूत्र से बनाई जाती है। सवा हाथ का रक्षासूत्र (पूजा में प्रयोग किया जानेवाला कच्चा सूत) लेकर उसे सावधानीपूर्वक बाती की तरह दीये के बीचोंबीच रखें।
घी या तेल का करें अखंड ज्योति में प्रयोग
किसी भी पूजा में दीपक के लिए शुद्ध घी का प्रयोग किया जाना अच्छा माना जाता है, लेकिन अगर घी ना जला सकें तो तिल या सरसों का तेल भी जलाया जा सकता है। बस इतना ध्यान रखें कि इनमें अन्य तेलों की मिलावट ना हो और ये पूरी तरह शुद्ध हों।
अखंड ज्योति को कहां रखें
आप घी या तेल का दीपक जला रहे हैं, इसी से देवी के सामने दीपक रखे जाने का स्थान तय होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर घी दीपक जलाया जाए, तो यह देवी की दाईं ओर रखा जाना चाहिए, लेकिन अगर दीपक तेल का है तो इसे बाईं ओर रखें।
अखंड ज्योति जलाने का है तरीका
दीपक जलाने से पूर्व की सभी तैयारियां पूरी होने के पश्चात् अब इसे जलाए जाने की बारी आती है। इसके लिए भी एक खास नियम का पालन किया जाना आवश्यक है। सबसे पहले हाथ जोड़कर श्रीगणेश, माता दुर्गा और शिवजी का ध्यान करें।
अगर किसी विशेष मनोकामना के साथ यह अखंड ज्योति जला रहे हों तो उसे भी मन में सोच लें और माता से प्रार्थना करें कि पूजा की समाप्ति के साथ ही वह पूर्ण हो जाए अब मां दुर्गा का मंत्र – ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। का उच्चारण करते हुए दीपक जलाएं।