दिल्ली में भले ही तिहाड़ के अलावा रोहिणी व मंडोली जेल में 17 कैदी कर रहे हैं फांसी का इंतजार…

 दिल्ली की विभिन्न जेलों में 17 ऐसे दोषी बंद हैं, जिन्हें अदालतों की ओर से फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। इनमें चार दोषी वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म मामले के हैं। अक्टूबर में चारों दोषियों को जेल प्रशासन की ओर से दया याचिका दायर करने की बात कही गई थी, ताकि सजा को अंतिम अंजाम तक पहुंचाया जा सके। इस नोटिस के बाद से ही तिहाड़ व मंडोली जेल परिसर में अलग अलग मामलों में फांसी की सजा पाए कैदियों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

कैदियों की हो रही काउंसिलिंग

जेल प्रशासन समय-समय पर इन कैदियों की काउंसिलिंग भी कर रहा है ताकि उनमें घबराहट की स्थिति नहीं हो। जेल सूत्रों का कहना है कि विभिन्न जेलों में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि जिन कैदियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है, उनके मामले में अंतिम निर्णय की स्थिति शीघ्र आ सकती है। तमाम चर्चाओं के बीच सभी की निगाहें जेल संख्या तीन पर टिकी है।

फांसी देने की सजा सिर्फ तिहाड़ जेल में

दिल्ली में भले ही तिहाड़ के अलावा रोहिणी व मंडोली जेल परिसर बने हुए हैं, लेकिन फांसी देने की व्यवस्था सिर्फ तिहाड़ जेल संख्या तीन में ही है। यहीं पर फांसी दी जाती है। फांसी घर खुली जगह पर है। आमतौर पर इसके दरवाजे को तभी खोला जाता है, जब फांसी दी जानी हो।

अफजल को मिली थी आखिरी फांसी

बता दें कि तिहाड़ में फांसी के फंदे पर लटकाया जाने वाला आखिरी दोषी अफजल गुरु था। पिछले करीब तीन दशक में अफजल से पहले तिहाड़ में रंगा, बिल्ला, सतवंत सिंह, केहर सिंह, करतार सिंह, उजागर सिंह को फांसी के फंदे पर लटकाया जा चुका है। अफजल से पहले सतवंत सिंह, केहर सिंह को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। लेकिन सतवंत सिंह, केहर सिंह के बाद फांसी के फंदे पर दोषी को लटकाने का कार्य किसी जल्लाद ने नहीं बल्कि जेल के कर्मी ने ही निभाई।

जल्‍लाद ना होने के कारण जेल कर्मी निभा रहे ड्यूटी

जल्लाद के न होने पर अफजल को सेल से लेकर काल कोठरी तक लाने व फंदे तक पहुंचाने तक का काम जेल के ही कर्मी ने किया था। तिहाड़ जेल में 35 वर्ष तक कार्यरत रहे सुनील गुप्ता बताते हैं कि जरूरी नहीं कि फांसी देने का कार्य जल्लाद ही करे। इस प्रक्रिया में कई लोग शामिल रहते हैं। यहां जेल अधीक्षक, उप अधीक्षक, सुरक्षाकर्मी, एसडीएम, चिकित्सा अधिकारी सभी रहते हैं।

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