दिल्ली: पतंगबाजी का शौक बढ़ा रहा बेजुबानों का दर्द, चार दिनों में 250 पक्षी घायल

1 से 4 अगस्त के बीच 250 से अधिक पक्षियों को बचाया गया। मांझे से गहरे घाव, टूटे हुए अंग या आंखों की रोशनी जाने की घटनाएं शामिल हैं। इनमें से अधिकतर मामले प्रतिबंधित चाइनीज मांझे से हुए हैं।

स्वतंत्रता दिवस से पहले पतंगबाजी अपने चरम पर होती है, ऐसे में पतंगबाजी का शौक बेजुबानों का दर्द बढ़ा रहा है। 1 से 4 अगस्त के बीच 250 से अधिक पक्षियों को बचाया गया। मांझे से गहरे घाव, टूटे हुए अंग या आंखों की रोशनी जाने की घटनाएं शामिल हैं। इनमें से अधिकतर मामले प्रतिबंधित चाइनीज मांझे से हुए हैं। दिल्ली-एनसीआर में चौबीसों घंटे पक्षी एम्बुलेंस सेवाएं चलाने वाले एक गैर-सरकारी संगठन को चार दिनों की अवधि के दौरान 250 से अधिक की सूचना मिली है। ऐसे में आने वाले दिनों में पशु चिकित्सकों और वन्यजीव बचाव समूहों ने पक्षियों के घायल होने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि की सूचना दी है।

जिविद्या सागर जीव दया परिवार के अनुसार, चाइनीज मांझा एक सिंथेटिक धागा होता है, जिस पर अक्सर कांच या धातु का पाउडर चढ़ा होता है। इससे यह इतना नुकीला हो जाता है कि जानलेवा चोट लग सकती है। आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित होने के बावजूद, राजधानी के बाजारों में इसकी बिक्री जारी है। उन्होंने बताया कि औसतन उन्हें रोजाना 75 से 100 कॉल आते थे। वह हर दिन लगभग 50 पक्षियों को बचा पाते थे। कभी-कभी हर 50 में से कम से कम पांच पक्षी इतनी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं कि वे बच नहीं पाते।

एनजीओ के निदेशक अभिषेक जैन ने कहा कि इनमें वे मामले भी शामिल हैं, जहां बिना भोजन या पानी के घंटों लटके रहने से पंख कट जाते हैं या आंतरिक चोटें बहुत गंभीर हो जाती हैं। चांदनी चौक के दिगंबर जैन लाल मंदिर में स्थित पक्षियों के धर्मार्थ चिकित्सालय में मांझे की चपेट में आने वाले 20 से 30 परिंदों को रोजाना भर्ती कराया जा रहा है। इनमें से कई पक्षियों की अधिक खून बहने से मौत भी हो रही है। इनमें कबूतर, चील, तोता, कौवा शामिल हैं।

90 प्रतिशत से अधिक चोटें चीनी मांझे के कारण
एनजीओ के अध्यक्ष अमित जैन ने बताया कि कबूतर सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, उसके बाद चील, तोते और कभी-कभी मोर भी इन जानलेवा चाइनीज मांझे की चपेट में आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि कबूतरों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है, वे अधिकतर किसी भी स्थिति में जीवित रहते हैं। लेकिन अन्य पक्षी प्रजातियों को काफी संघर्ष करना पड़ता है। निजी पशु चिकित्सक डॉ. रामेश्वर ने बताया कि उन्हें रोजाना लगभग 50 से 80 पक्षियों के घायल होने के मामले मिलते हैं।

ऐसे रखें अपना ध्यान
जिन इलाकों में पतंगबाजी ज्यादा होती है, वहां गुजरते समय अपने गले को अच्छे से ढक लें
दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट का शीशा जरूर बंद रखें
मांझा गले या शरीर के किसी भी हिस्से में फंस जाए, तो उसे झटके से अलग न करें
फ्लाइओवर के आसपास वाहन की रफ्तार धीमी रखें
कहीं मांझा दिखता है, तो पुलिस को सूचित करें

हर साल औसतन दो से तीन लोगों गंवा रहे अपनी जान
राजधानी में जुलाई से शुरू होने वाला पतंगबाजी का दौर 15 अगस्त के बाद तक जारी रहता है। इस दौरान हर साल औसतन दो से तीन लोगों की मौत चाइनीज मांझे की चपेट में आने से हो जाती है। वहीं, 40 से ज्यादा लोग घायल होते हैं। चोरी-छिपे इनकी बिक्री जारी है।

दिल्ली के जीटीबी अस्पताल, स्वामी दयानंद अस्पताल, खिचड़ीपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जग प्रवेश चंद्र अस्पताल में हर साल मांझे से घायल करीब 20 से 25 लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं। सबसे ज्यादा पतंगबाजी भी पूर्वी दिल्ली, उत्तर-पूर्वी दिल्ली और शाहदरा क्षेत्र में होती है। जीटीबी अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि जुलाई और अगस्त दो माह में चाइनीज मांझे से घायल होने के मामले सबसे ज्यादा आते हैं।

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