ट्रिपल तलाक की सफलता के बाद अब उठी यह बड़ी मांग
ट्रिपल तलाक़ बिल के बाद मुंबई स्थित मुस्लिम महिलाओं के एक ग्रुप ने हिन्दू और ईसाई कानूनों की तरह मुस्लिम महिलाओं के लिए बराबरी सुनिश्चित करने की मांग की है. ग्रुप ने सरकार से संसद में ‘मुस्लिम फैमिली लॉ’ लाने की मांग की है. भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA) ने केंद्रीय क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को इस संबंध में चिट्ठी लिखी है. ग्रुप का कहना है कि लैंगिक न्याय (Gender justice) और लैंगिक समानता (Gender equality) के लिए मुस्लिम फैमिली लॉ होना ज़रूरी है.
BMMA की दलील है कि मुस्लिम फैमिली लॉ के ज़रिए मुस्लिम महिलाओं के लिए क़ानूनी इंसाफ़ सुनिश्चित किया जाए. वैसे ही जैसे हिन्दू और ईसाई महिलाओं के लिए संसद में पास हिन्दू मैरिज एक्ट और अन्य क़ानूनों के जरिए किया गया.
BMMA की संस्थापक ज़किया सोमन ने कहा, “हिन्दू मैरिज एक्ट और ईसाई मैरिज एक्ट दोनों ही संसद की ओर से पास किए गए और संशोधित किए गए. ये सिर्फ मुस्लिम फैमिली लॉ ही है जो संसद में नहीं गया है. हमारे पास जो है वो ब्रिटिश हुकूमत की ओर से 1937 में पास किया गया एक कानून है. हिंदू और ईसाई महिलाओं की तरह मुस्लिम महिलाओं को कानूनी बराबरी हासिल नहीं है. कुरान पर महिलाओं को मेहर, संपत्ति और तलाक के अधिकार दिए जाते हैं, लेकिन इन अधिकारों के संरक्षण के लिए कोई कानूनी ढांचा उपलब्ध नहीं है.”
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मुस्लिम महिला ग्रुप ने बीते हफ्ते केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद को चिट्ठी भेजी. ग्रुप की इसी मुद्दे पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से भी मुलाकात हो चुकी है.
चिट्ठी में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक को खत्म करने की मुहिम ‘मुस्लिम महिला (शादी के अधिकार का संरक्षण) बिल’ के पास होने से कामयाब हुई. लेकिन बहुविवाह, हलाला, शादी की उम्र जैसे मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं. सोमन ने कहा कि मौजूदा सरकार मुस्लिम महिलाओं से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए गंभीर है.
सोमन ने कहा, “हम इन अधिकारों के लिए वर्षों से मांग कर रहे हैं लेकिन इस सरकार ने ही इन मुद्दों में दिलचस्पी दिखाई. हम ये भी मांग कर रहे हैं कि ‘स्किल इंडिया’ और ‘स्टैंडअप इंडिया’ जैसी योजनाओं से मुस्लिम महिलाओं को जोड़ने के लिए सरकार पहल करे. मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा का स्तर सबसे पिछड़ा है. वो पढ़ना चाहती हैं और सरकार की सुविधाएं इस काम में उनकी मदद करेंगी.”
चिट्ठी 10 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित हैं जिसमें 5,000 मुस्लिम महिलाओं ने हिस्सा लिया. ये डेटा 2015 में जारी किया गया था. सर्वेक्षण के अनुसार 91.7 प्रतिशत महिलाओं ने बहुविवाह के खिलाफ प्रतिक्रिया दी थी. उनका कहना था कि पहली पत्नी की रज़ामंदी हो या नहीं, बहुविवाह की अनुमति नहीं होनी चाहिए. सर्वेक्षण में महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्य कवर किए गए.
बता दें कि BMMA की ओर से हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के लिए भी सफल अभियान चलाया गया था.