टीम इंडिया में फिर नहीं हुई वापसी, तो सुसाइड करने निकल पड़ा ये दिग्गज बॉलर
नई दिल्ली। पिछले कुछ समय में दुनिया के कई बड़े क्रिकेटर्स ने मानसिक तनाव और दूसरी समस्याओं के चलते कुछ समय के लिए खेल से दूरी बना ली। पिछले साल ऐसे मामले काफी सुनने में आए और प्लेयर्स ने खुलकर इस पर बात भी की। कोई खराब प्रदर्शन के कारण तो कुछ टीम इंडिया से बाहर किए जाने के कारण इसके शिकार हुए। एक समय अपनी रफ्तार से दुनिया के धाकड़ बल्लेबाजों के मन में खौफ पैदा करने वाले टीम इंडिया के तेज गेंदबाज प्रवीण कुमार भी इन्हीं खिलाड़ियों में से एक हैं, जो मानसिक परेशानी से जूझ रहे हैं।
एक खबर के अनुसार, भारत की ओर से 84 इंटरनेशनल मैच खेलने वाले प्रवीण कुमार दो महीने पहले सुसाइड करने चले गए थे। प्रवीण को इंडिया की ओर से खेले हुए आठ साल हो गए हैं। टीम में वापसी ना कर पाने के कारण वे इतने अधिक अवसाद से घिर गए थे कि एक दिन उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म करने की ठान ली और घर से चले गए। प्रवीण कुमार ने बातचीत में अवसाद के साथ अपनी लड़ाई के बारे में बताया। कैसे वो उस पल तक पहुंच गए थे, जहां एक और कदम आगे बढ़ाते ही उनकी जिंदगी खत्म हो जाती, मगर अब उन्होंने अपनी दूसरी जिंदगी शुरू कर ली है।
प्रवीण कुमार ने भारत की ओर से 6 टेस्ट मैच, 68 वनडे और 10 टी20 मैच खेले हैं। मार्च 2012 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ टी20 मैच उनके इंटरनेशनल करियर का आखिरी मैच था। उसके बाद टीम में उनकी वापसी नहीं हो पाई। भारत के लिए आखिरी बार गेंदबाजी किए हुए उन्हें आठ साल हो गए हैं।
मेरठ में एक सर्द सुबह प्रवीण घरवालों को सोता छोड़ अपना मफलर पहनकर, हाथ में पिस्टल लिए अपनी गाड़ी में आए और हरिद्वार हाईवे पर निकल गए। वह जीवन से इतना अधिक निराश हो गए थे कि उन्होंने गलत फैसला ले लिया। अंधेरी सड़क पर वह अपनी गाड़ी में बैठे रहे। वहां उनके बगल में ही पिस्टल रखी थी। प्रवीण ने उस समय खुद से ही कहा कि क्या है ये सब? बस खत्म करते हैं।
प्रवीण कुमार ने बताया कि जब उनके दिमाग में ये सब बातें घूम रही थी, तभी उनकी नजर कार में रखी अपने बच्चों की फोटो पर पड़ी, जिसमें उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। उस फोटो को देखने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि वह अपने मासूम बच्चों के लिए यह नहीं कर सकते और उन्होंने उस विचार को दिमाग से निकाल दिया और वापस आ गए।
इसके बाद 33 साल के प्रवीण के कुछ ऐसा किया, जो उनके जैसे खिलाड़ियों और खासकर क्रिकेटर्स के लिए असंभव था। जिनके करियर की लंबाई मैदान के अंदर और बाहर उनकी छवि पर निर्भर करती है। मगर इन सब के बावजूद प्रवीण ने थैरेपी लेनी शुरू की। अवसाद से बाहर निकलने के लिए इलाज शुरू किया और वह अभी भी दवाईयां ले रहे हैं। मगर अब वह मस्तमौला होकर जीना सीख गए हैं।