जेएनयू के बाद अब इस कैंपस में बवाल का खतरा, इकट्ठे हो गए सैकड़ों छात्र
नई दिल्ली। दिल्ली के जेएनयू के बाद अब बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) कैंपस में बवाल का खतरा मंडरा रहा है। 6 जनवरी की सुबह आईआईएससी के नोटिस बोर्ड पर एक पोस्टर लगाया गया था, जिस पर लिखा था कि यदि आप अन्याय के वक्त तटस्थ हैं, तो आपने उत्पीड़न करने वाले का पक्ष चुना है।
बता दें कि यह मैसेज व्हाटसएप सहित कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तेजी से वायरल हुआ और छात्रों से आग्रह किया गया कि ‘ जेएनयू में राज्य प्रायोजित हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन’ में शामिल हों। जेएनयू में हुए हमले के करीब 24 घंटे बाद उसी दिन शाम में शिक्षकों और छात्रों का एक समूह इकट्ठा हुआ और परिसर में विरोध दर्ज किया।
यह एक प्रमुख विज्ञान संस्थान है। यहां राजनीतिक मामलों पर दखलअंदाजी और बयानबाजी न के बराबर होती है। ऐसे में यह एक दुर्लभ घटना थी। इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल साइंस (आईसीटीएस) में सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर सुव्रत राजू ने मार्च की शुरुआत पर छात्रों को संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि यह अभूतपूर्व था। मैंने कभी भी आईआईएससी के छात्रों को उन मुद्दों के बारे में मुखर नहीं देखा, जिनसे वे सीधे प्रभावित होते हैं। जामिया मिलिया इस्लामिया से लेकर एएमयू और अब जेएनयू तक छात्रों पर हुए हमले कितने चौंकाने वाले हैं, ये विरोध ही उसे मापने का एक पैमाना है।
यह मार्च किसी छात्र इकाई द्वारा आयोजित नहीं किया गया था क्योंकि आईआईएससी में कोई छात्र संगठन नहीं है। लेकिन जब कुछ छात्रों को लगा कि अब ‘सीमा रेखा पार हो चुकी है’, तो उन्होंने इसकी पहल की।
जीवविज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई कर रहे एक प्रदर्शनकारी छात्र ने कहा कि यह उस विश्वविद्यालय पर फासीवादी हमला था जहां गरीब बच्चों को शिक्षा मिलती है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम नागरिक के रूप में आवाज उठाएं। कौन कह सकता है कि आगे ऐसा आईआईएससी में नहीं होगा? प्रदर्शन में शामिल लोगों के अनुसार करीब 300 से 400 की संख्या में छात्रों ने हिस्सा लिया।
ऐसा नहीं है कि संस्थान को पूरी तरह से देश में होने वाली घटनाओं से अलग रखा गया है। दिसंबर महीने में जामिया में पुलिस कार्रवाई के खिलाफ में छात्रों ने मूक प्रदर्शन किया था। साथ ही सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे लोगों की गिरफ्तारी पर भी मूक प्रदर्शन किया गया था।