जानें कौन थे ‘सावरकर’, जो भारत के लिए हैं हीरो भी और विलेन भी…

महाराष्ट्र चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न दिलाने का वादा किया है. इस वादे के साथ ही सावरकर को लेकर चर्चाओं का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया है.

सावरकर की पूरी कहानी आप इस विवेचना में पढ़ सकते हैं 

अक्तूबर, 1906 में लंदन में एक ठंडी शाम चितपावन ब्राह्मण विनायक दामोदर सावरकर इंडिया हाउज़ के अपने कमरे में झींगे यानी ‘प्रॉन’ तल रहे थे.

सावरकर ने उस दिन एक गुजराती वैश्य को अपने यहाँ खाने पर बुला रखा था जो दक्षिण अफ़्रीका में रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के प्रति दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराने लंदन आए हुए थे.

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उनका नाम था मोहनदास करमचंद गांधी. गाँधी सावरकर से कह रहे थे कि अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ उनकी रणनीति ज़रूरत से ज़्यादा आक्रामक है. सावरकर ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा था, “चलिए पहले खाना खाइए.”

बहुचर्चित किताब ‘द आरएसएस-आइकॉन्स ऑफ़ द इंडियन राइट’ लिखने वाले नीलांजन मुखोपाध्याय बताते हैं, “उस समय गांधी महात्मा नहीं थे. सिर्फ़ मोहनदास करमचंद गाँधी थे. तब तक भारत उनकी कर्म भूमि भी नहीं बनी थी.”

“जब सावरकर ने गांधी को खाने की दावत दी तो गांधी ने ये कहते हुए माफ़ी माँग ली कि वो न तो गोश्त खाते हैं और न मछली. बल्कि सावरकर ने उनका मज़ाक भी उड़ाया कि कोई कैसे बिना गोश्त खाए अंग्रेज़ो की ताक़त को चुनौती दे सकता है? उस रात गाँधी सावरकर के कमरे से अपने सत्याग्रह आंदोलन के लिए उनका समर्थन लिए बिना ख़ाली पेट बाहर निकले थे.”

साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के छठवें दिन विनायक दामोदर सावरकर को गाँधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ़्तार कर लिया गया था. हाँलाकि उन्हें फ़रवरी 1949 में बरी कर दिया गया था.

इसे एक विडंबना ही कहा जाएगा कि कभी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ के सदस्य न रहे वीर सावरकर का नाम संघ परिवार में बहुत इज़्ज़त और सम्मान के साथ लिया जाता है.

वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्पति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया था.

नीलांजन मुखोपाध्याय बताते हैं, “26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी शपथ लेते हैं. उसके दो दिन बाद ही वीर सावरकर की 131वीं जन्म तिथि पड़ती है. वो संसद भवन जा कर सावरकर के चित्र के सामने सिर झुका कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं. हमें मानना पड़ेगा कि सावरकर बहुत ही विवादास्पद शख़्सियत थे.”

“हम नहीं भूल सकते कि गाँधी हत्याकांड में उनके ख़िलाफ़ केस चला था. वो छूट ज़रूर गए थे, लेकिन उनके जीवन काल में ही उसकी जाँच के लिए कपूर आयोग बैठा था और उसकी रिपोर्ट में शक की सुई सावरकर से हटी नहीं थी. उस नेता को सार्वजनिक रूप से इतना सम्मान देना मोदी की तरफ़ से एक बहुत बड़ा प्रतीकात्मक कदम था.”

 
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