ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है, इसलिए इस दिन दान-पुण्य और स्नान का अत्याधिक महत्व है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी। इस पवित्र नदी में स्नान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। इस दिन विष्णुपदी, पुण्यसलिला माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ, अतः यह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) या लोकभाषा में जेठ का दशहरा के नाम से जाना जाता है।
सिर्फ दर्शन से दूर होते हैं कष्ट
माना गया है-‘गंगे तव दर्शनात मुक्तिः’ अर्थात् श्रद्धा और निष्कपट भाव से गंगाजी के दर्शन कर लेने मात्र से जीवों को कष्टों से मुक्ति मिलती है और वहीं गंगाजल के स्पर्श से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पाठ, यज्ञ, मंत्र, होम और देवदर्शन आदि समस्त शुभ कर्मों से भी जीव को वह गति नहीं मिलती, जो गंगाजल के सेवन मात्र से ही प्राप्त होती है। इनकी महिमा का यशोगान करते हुए भगवान शिव श्री विष्णु से कहते हैं- हे सृष्टि के पालनहार! ब्राह्मण के श्राप से अत्याधिक कष्ट में पड़े हुए जीवों को गंगा के सिवा दूसरा कौन स्वर्गलोक में पहुंचा सकता है, क्योंकि माँ गंगा शुद्ध, विद्यास्वरूपा, इच्छाज्ञान, एवं क्रियारूप, दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों को शमन करने वाली, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरूषार्थों को देने वाली शक्ति स्वरूपा हैं। इसलिए इन आनंदमयी, धर्मस्वरूपणी, जगत्धात्री, ब्रह्मस्वरूपणी अखिल विश्व की रक्षा करने वाली गंगा को में अपने शीश पर धारण करता हूँ।
यदि न लगा पाएं गंगा में डुबकी
कलियुग में काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर, ईर्ष्या आदि समस्त विकारों का संपूर्ण नाश करने में गंगा के समान और कोई नहीं है। विधिहीन, धर्महीन, आचरणहीन मनुष्यों को भी यदि मां गंगा का सान्निध्य मिल जाए तो वे भी मोह एवं अज्ञान के संसार सागर से पार हो जाते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है, यदि कोई मनुष्य पवित्र नदी तक नहीं जा पाता, तब वह अपने घर के पास की किसी नदी पर माँ गंगा का स्मरण करते हुए स्नान करे और यह भी संभव नहीं हो तो माँ गंगा की कृपा पाने के लिए इस दिन गंगाजल का स्पर्श और सेवन अवश्य करना चाहिए।
दस पापों से मिलती है मुक्ति
शास्त्रों के अनुसार गंगा अवतरण के इस पावन दिन गंगा जी में स्नान एवं पूजन-उपवास करने वाला व्यक्ति दस प्रकार के पापों से छूट जाता है। इनमें से तीन प्रकार के दैहिक, चार वाणी के द्वारा किए हुए एवं तीन मानसिक पाप, ये सभी गंगा दशहरा के दिन पतितपावनी गंगा स्नान से धुल जाते हैं।गंगा में स्नान करते समय स्वयं श्री नारायण द्वारा बताए गए मन्त्र-”ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः” का स्मरण करने से व्यक्ति को परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
दस-दस सामग्री का महत्व
गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालुजन जिस भी वस्तु का दान करें, उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें, उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए, ऐसा करने से शुभ फलों में वृद्धि होती है। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए। जब गंगा नदी में स्नान करें, तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए।
संकल्प लेकर ऐसे प्रकट करें माँ गगा के प्रति श्रद्धा
गंगा मैया हम भारतवासियों के लिए देवलोक का महाप्रसाद हैं। माँ गंगा हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। हमारे यहां मृत्यु से ठीक पूर्व गंगा जल की कुछ बूंदें मुंह में पड़ जाना मोक्ष का पर्याय माना जाता है।इसके जल में स्नान करने से जीवन के सभी संतापों से मुक्ति मिलती हैं। जीवन में एक बार भी गंगा में स्नान नहीं कर पाना जीवन की अपूर्णता का घोतक माना जाता है, लेकिन हम देशवासियों का यह दुर्भाग्य हैं कि अधिकांश लोग इस परम-पवित्र देवनदी की स्वच्छता को बनाए रखने की बात को नहीं सोचते हैं। अक्सर देखा जाता कि पूजन के उपरांत जितना भी चढ़ावा फूल, नारियल, पन्निया और अन्य सामग्री होती है, सभी को नदी में ही प्रवाहित कर दिया जाता है, इससे गंगा मैली होती जा रही है।
तन-मन की शुद्धि का महापर्व
सरकारी प्रयास के साथ इस पवित्र नदी को स्वच्छ बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सब की भी है। किसी भी प्रकार से इसे दूषित न करने का संकल्प लेना होगा। नदी की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए गंगाजी में स्नान करते समय साबुन का प्रयोग नहीं करें और न ही साबुन लगाकर कपड़े धोना चाहिए। गंगा दशहरा तन के साथ-साथ मन की शुद्धि का पर्व भी है, इसलिए इस दिन गंगाजी में खड़े होकर अपनी पूर्व में की हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए और भविष्य में कोई भी बुरा कार्य नहीं करने का संकल्प लेना चाहिए।