जानिए किन लोगों का होता है दोबारा अपने ही परिवार में जन्म…

पूर्वजन्म में जातक ने जैसे कर्म किये होते हैं, अपने उन्ही कर्मों के आधार पर वह पृथ्वी पर नया जन्म लेता है। उसी के आधार पर भगवान उसे परिवार व सगे सम्बन्धी देता है। जातक अपने पूर्व जन्म के कर्मों की पोटली लेकर ही यह जन्म प्राप्त करता है, लेकिन इस जन्म में किये जाने वाले कर्मों से वह अपने भविष्य को सुधार सकता है। अपना आगे का जीवन बेहतर बना सकता है। आइए जानते हैं आखिर हमें यह जन्म क्यों प्राप्त हुआ है? क्या उद्देश्य है इसका और क्या लिखा है हमारी तकदीर में? यह सब बताती है आपकी कुंडली। आइये जानते हैं कैसे:जानिए किन लोगों का होता है दोबारा अपने ही परिवार में जन्म...

किसी भी जातक के इस जन्म से जुड़े राज को हम दो तरह से देख सकते हैं। पहला उसकी कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति को देखा जाता है। जातक की पत्रिका में बृहस्पति ग्रह किस भाव में है, उसकी स्थिति के अनुसार जातक के पूर्वजन्म के कर्म तथा वर्तमान का उद्देश्य पता चलता है —

लग्न भाव : यदि जातक की जन्मपत्रिका में बृहस्पति लग्न में स्थित हो तो जातक का जन्म किसी के आशीर्वाद या श्राप फलस्वरूप हुआ होता है और जातक को उसी के अनुसार सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। एकांत में जब जातक चिंतन मनन करता है, तब उसे इसका भान होता रहता है।

द्वितीय व अष्टम भाव : यदि कुंडली में बृहस्पति ग्रह द्वितीय या अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक पूर्वजन्म में संत महात्मा रहा होता है। वर्तमान में यह धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनका जन्म अच्छे परिवार में होता है। यह इच्छापूर्ति हेतु इस जन्म में आये होते हैं।

तृतीय भाव : यदि गुरु तृतीय भाव में उपस्थित हों तो जातक का जन्म किसी महिला के आशीर्वाद या श्राप के कारण हुआ होता है और यह महिला वर्तमान जन्म वाले परिवार की ही होती है। इनका जीवन आशीर्वाद के फलस्वरूप सुखमय या श्राप के फलस्वरूप कष्टों से भरा होता है।

चतुर्थ भाव : कुंडली में बृहस्पति ग्रह का चतुर्थ भाव में स्थित होना उसके पूर्वजन्म में इसी परिवार का होने का संकेत देता है, जो किसी उद्देश्य की पूर्ती हेतु दोबारा उसी परिवार में जन्म लेता है और अपने उद्देश्य की पूर्ति कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

नवम भाव : गुरु ग्रह का नवम भाव में उपस्थित होना पितरों की कृपादृष्टि उनके आशीर्वाद को दर्शाता है। ऐसे व्यक्ति इस जीवन में त्याग व ब्रह्म ज्ञान की प्रवृत्ति रखता है तथा भाग्यशाली होता है।

दशम भाव : जन्मपत्रिका में गुरु का दशम भाव में स्थित होना पूर्व में धार्मिक विचारों वाला होना बतलाता है। इस जन्म में वह समाज सुधारक का कार्य करता है। वह उपदेशक होता है, लेकिन पूजा-पाठ का दिखावा नहीं करता।

पंचम/एकादश भाव : गुरु यदि पंचम या एकादश भाव में उपस्थित हो तो जातक पूर्व जन्म में तंत्र-मंत्र एवं गुप्त विद्या का जानकार होता है। जिसके कारण इस जन्म में उसे मानसिक अशांति बनी रहती है तथा दुष्ट आत्माओं द्वारा कष्ट व परेशानी पाता रहता है। जातक को संतान सुख भी कम प्राप्त होता है।

दशम भाव – बृहस्पति का दशम भाव में उपस्थित होना जातक का जन्म गुरु का ऋण चुकाने  के उद्देश्य से होता है। वह धार्मिकता से जीवन जीता है तथा उसके निवास के आसपास मंदिर आदि होता है।

बृहस्पति द्वारा जहां पूर्व जन्मों के कृत्य जाने जाते हैं, वहीं शनि की स्थिति द्वारा भाग्य-कुभाग्य अथवा प्रारब्ध देखा जाता है। जिसे जातक की कुंडली के निम्न भावों में स्थिति को देखकर पता लगाया जा सकता है —

प्रथम भाव : यदि शनि और राहु जातक की जन्मपत्रिका के प्रथम भाव में होता है तो जातक पूर्वजन्म में जड़ी-बूटियों का जानकार होता है। वर्तमान जन्म में ऐसा जातक एकांतप्रिय व शांत स्वभाव का होता है तथा इन्हें अदृश्य शक्तियों से सहायता प्राप्त होती है।

द्वितीय भाव: शनि या राहु की द्वितीय भाव में स्थिति जातक के पूर्व जन्म में व्यक्तियों के सताने व कष्ट पहुंचने के विषय में बतलाती है। जिसके परिणाम स्वरुप जातक शारीरिक बाधा में रहता है और इनका बचपन आर्थिक कष्टों में गुजरता है।

तृतीय भाव: यदि जातक के तृतीय भाव में शनि या राहु हों तो जातक घर की अंतिम संतान होता है। जातक को भविष्य का ज्ञान अदृश्य शक्तियों द्वारा होता रहता है।

चतुर्थ भाव:  इस भाव में शनि या राहु उपस्थित हो, जातक मानसिक रूप से परेशान रहता है तथा उदर रोग से पीड़ित होते हैं, इन्हें सर्प भय लगा रहता है, बहुधा यह सर्पों के विषय में जानकारी रखना पसंद करते हैं।

षष्ठ भाव: वर्तमान में ये जातक भ्रमित अथवा संतान सम्बन्धी कष्टों से घिरे रहते हैं। इनकी शिक्षा में रुकावटें आती रहती हैं। इससे पूर्व जन्म का जातक द्वारा हत्या अपराध के दोष से ग्रसित होना पाया जाता है।

सप्तम भाव: इस भाव में शनि या राहु पूर्वजन्म में विपरीत लिंग से संबंधित दुर्व्यवहार को दर्शाते हैं।   

अष्टम भाव: इस भाव में शनि-राहु होने से जातक पूर्वजन्म में तंत्र-मंत्र करने वाला रहा होता है। यही कारण है कि इस जन्म में उसे अनावश्यक भय लगा रहता है, बहुधा ये मानसिक रूप से ग्रसित पाए जाये जाते हैं।

दशम भाव: इस भाव में शनि व्यक्ति का कर्मठ व मेहनती होना बताता है। पूर्वजन्म में इसने घोर यातनाएं पायी होती हैं। जिसके चलते इस जीवन में यह व्यक्ति बहुत सफल जीवन जीता है परन्तु इसकी तरक्की धीरे-धीरे ही हो पाती है।

द्वादश भाव: ऐसे जातक का जन्म सर्पो के आशीर्वाद से होता है तथा यह अपने गृहस्थान से दूर कामयाब होते हैं। पूर्वजन्म में इन्हें निम्न योनी की प्राप्ति हुई होती है लेकिन इस जीवन में यह समस्त सुख प्राप्त करते हैं।

यदि किसी की पत्रिका में शनि राहु इकठ्ठे किसी भी भाव में हों तो जातक प्रेत-दोष का शिकार होता है। जिस कारण जातक का शरीर हमेशा भारीपन लिए तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां बनी रहती हैं। ये आलसी एवं क्रोधी स्वभाव के होते हैं तथा पूजा-अर्चना के समय इन्हें नींद व उबासी आती रहती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button