जलवायु परिवर्तन पर भारत ने वैश्विक मंच से विकसित देशों को फिर घेरा

जलवायु परिवर्तन से निपटने के अपने लक्ष्यों को हासिल करने में तेजी से जुटे भारत ने विकसित देशों को पेरिस समझौते के तहत किए गए अपने वादों को पूरा न करने को लेकर एक बार फिर घेरा है।

विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का बोझ सहना पड़ रहा है
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में दुनिया की कुल आबादी का लगभग 25 प्रतिशत लोग रहते है जबकि कार्बन उत्सर्जन में हिस्सेदारी सिर्फ चार प्रतिशत है। बावजूद इसके विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का बोझ असमान रूप से झेलना पड़ रहा है।

केंद्रीय मंत्री यादव शुक्रवार को हिमालय व अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के इकोसिस्टम को संरक्षित करने के लिए नेपाल के काठमांडू में आयोजित पहले सागरमाथा संवाद को संबोधित कर रहे थे।

पेरिस समझौते पर कही ये बात
उन्होंने कहा कि पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए विकासशील देशों को वित्तीय मदद देनी थी। इस समझौते के तहत शुरूआत में प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर देना था, बाद में इस राशि को 2035 तक बढ़ाकर 300 बिलियन डॉलर तक करना था।

इसके साथ ही तकनीकी और क्षमता निर्माण भी उन्हें मदद देनी थी। कांफ्रेंस आफ पार्टीज (कॉप) 29 में भी भारत ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। हालांकि अमेरिका जैसे विकसित देशों की ओर से पेरिस समझौते से पीछे हटने से इस पहल को बड़ा झटका लगा है। इस संवाद में भारत के साथ नेपाल और चीन ने भी प्रमुखता से हिस्सा लिया था।

हिमालयी प्रजातियों के संरक्षण के लिए करना होगा काम
संवाद में भारत ने हिमालय क्षेत्र के संरक्षण के लिए जैव विविधता पर जोर दिया। साथ सही हिमालयी देशों से इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस से जुड़ने और सहयोग बढ़ाने की मांग की, ताकि हिम तेंदुआ, बाघ और तेंदुए जैसी प्रजातियों के संरक्षण के लिए मिल कर काम किया जा सके।

वैश्विक कार्रवाई को लेकर रूपरेखा तैयार
संवाद में यादव ने पर्वतीय क्षेत्रों की साझा चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक कार्रवाई हेतु एक पांच सूत्रीय रूपरेखा भी प्रस्तुत की। जिसमें उन्नत वैज्ञानिक सहयोग, जलवायु अनुकूलन उपायों का निर्माण, पर्वतीय समुदायों को सशक्त बनाना, ग्रीन फाइसेंस मुहैया कराने व पर्वतीय परिप्रेक्ष्य का मान्यता देना शामिल है।

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