जयपुर में 27वां राष्ट्रीय श्वसन रोग सम्मेलन नैपकॉन 2025 शुरू

बढ़ते प्रदूषण ने अब इंसानी सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। हवा की खराब गुणवत्ता के कारण लोगों की साँसें छोटी पड़ रही हैं, फेफड़े सिकुड़ रहे हैं और श्वसन संबंधी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। इन बीमारियों की बढ़ती चुनौती पर चर्चा के लिए दुनिया भर के श्वसन रोग विशेषज्ञ जयपुर में जुटेंगे।

इंडियन चेस्ट सोसाइटी (ICS) के तत्वावधान में 27वां राष्ट्रीय श्वसन रोग सम्मेलन नैपकॉन 2025 का आयोजन 13 से 16 नवम्बर 2025 तक बी. एम. बिड़ला ऑडिटोरियम, जयपुर में किया जाएगा। आयोजन सचिव डॉ. नितिन जैन ने बताया कि इस वर्ष सम्मेलन का विषय है — “एरा ऑफ पल्मोनरी रिवोल्यूशन: बैक टू पिंक।”

प्रदूषण से सिकुड़ रहे फेफड़े, घट रही आयु

डॉ. जैन के अनुसार, जब बच्चा जन्म लेता है, तो उसके फेफड़े गुलाबी (पिंक) रंग के होते हैं, लेकिन बढ़ते प्रदूषण के कारण वे धीरे-धीरे काले पड़ने लगते हैं। यही प्रदूषण इंसान की औसत आयु कम कर रहा है। हालांकि, आधुनिक चिकित्सा तकनीक की वजह से अब श्वसन संबंधी रोगों का इलाज पहले की तुलना में आसान हो गया है।

बच्चों और बुजुर्गों पर सबसे ज्यादा असर

कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित

बच्चों में फेफड़ों का विकास रुक जाता है

बुजुर्ग जल्दी बीमारियों की चपेट में आते हैं

हृदय रोग, स्ट्रोक, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस का खतरा बढ़ता है

स्वास्थ्य क्षमता घटती है और जीवनकाल कम होता है

हर साल बढ़ रही श्वसन बीमारियां

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक मृत्यु दर में सीओपीडी (COPD) दूसरा सबसे बड़ा कारण है, जबकि टीबी (क्षय रोग) बारहवां। राजस्थान में सबसे अधिक मौतें सीओपीडी के कारण होती हैं। देशभर में लगभग 13% मौतें श्वसन रोगों से होती हैं। आईसीएमआर के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में पुरुषों में सीओपीडी की दर 7.4% तक पहुंच गई है। वाहनों से बढ़ता धुआं, वायु और धूल प्रदूषण तथा युवाओं में बढ़ता धूम्रपान इसका प्रमुख कारण हैं।

3,000 से अधिक चिकित्सक होंगे शामिल

आयोजन अध्यक्ष डॉ. के.के. शर्मा ने बताया कि सम्मेलन में पल्मोनरी मेडिसिन, क्रिटिकल केयर, स्लीप मेडिसिन, फेफड़ों के संक्रमण और इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी पर सत्र होंगे। इसमें 30 अंतरराष्ट्रीय और 900 राष्ट्रीय विशेषज्ञों सहित 3,000 से अधिक चिकित्सक भाग लेंगे। सम्मेलन के दौरान उत्कृष्ट शोध कार्यों को “नैपकॉन ओरिजिनल रिसर्च अवार्ड्स” से सम्मानित किया जाएगा, जिसके तहत इस वर्ष 22 मौलिक शोध पत्रों को पुरस्कृत किया जाएगा।

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