जम्मू-कश्मीर में दुश्मन से ज्यादा घर के भेदियों से चुनौती; ओजीडब्ल्यू नेटवर्क से आतंकियों को मिल रही ताकत

एक कहावत है घर का भेदी लंका ढाए। जम्मू कश्मीर में आतंकियों को खाद पानी ऐसे ही घर के भेदियों से मिल रही है। सुरक्षाबलों ने इन्हें ओजीडब्ल्यू (ओवर ग्राउंड वर्कर) का नाम दिया है। इनका विस्तार इतना है कि सुरक्षाबलों के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
इनके नेटवर्क का अंदाजा लगाना इसलिए मुश्किल हो रहा है कि ये जाहिरा तौर पर निष्क्रिय रहते हैं। इसलिए इनको स्लीपिंग सेल भी कहा जाता है, मगर अपने आतंकी आकाओं के लिए ये आंख, कान हैं। सीमाओं के साथ साथ समूचे प्रदेश में इनकी उपस्थिति दहशतगर्दों की बहुत बड़ी ताकत और सुरक्षाबलों के लिए उतना ही बड़ा सिरदर्द है।
आतंकवाद की जड़ में ओवर ग्राउंड वर्कर की भूमिका
जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को जिंदा रखने में ओवर ग्राउंड वर्करों की हमेशा ही भूमिका सामने आती रही है। भारत पाकिस्तान सीमा और एलओसी से घुसपैठ के बाद पहाड़ी इलाकों तक पहुंचने के लिए मदद, असलह पहुंचाने और खान आदि मुहैया करवाने के अलावा मुखबिरी कर सुरक्षाबलों की मूवमेंट की जानकारी के लिए आतंकी ओवर ग्राउंड वर्करों का इस्तेमाल करते रहे हैं।
पिछले एक दशक में जम्मू कश्मीर में सामने आए कई मामलों में सरकारी नौकरी में शामिल लोगों के भी ओवर ग्राउंड वर्कर होने के मामले सामने आते रहे हैं। यहीं नहीं यह ओवरग्राउंड वर्कर आतंकियों को पनाह देने और सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचाने में भी मदद करते रहे हैं।
ड्रोन के जरिए हथियारों की सप्लाई का खुलासा
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तीन साल पहले तक हथियार, गोला बारूद और नकदी आतंकियों तक पहुंचाने के लिए पाकिस्तान ड्रोन का इस्तेमाल करता नजर आया। बाकायदा इन ड्रोन के लिए लोकेशन तय होती और यहां से ओवर ग्राउंड वर्कर सामान आतंकियों तक पहुंचाते रहे हैं।
सुरक्षाबलों की जांच में यह भी साफ हो चुका है कि इससे पहले आतंकी घुसपैठ के बाद हाईवे पर सुरक्षित सफर करने के लिए कई ट्रक चालकों को भी ओवर ग्राउंड वर्करों के रूप में इस्तेमाल कर चुके हैं। ट्रक में कैविटी बनाकर कश्मीर तक ले जाने के इस मामले का भंडाफोड़ झज्जर कोटली इनकाउंटर में हो चुका है।
जम्मू संभाग में फिर सक्रिय हुआ आतंकवाद
इसी तरह से जम्मू संभाग में आज के समय में फिर पिछले एक साल में सिर उठा चुके आतंकवाद में लंबे समय तक आतंकियों के पहाड़ों पर छिपे रहने, राशन आदि की सप्लाई रखने से लेकर सुरक्षित ठिकानों तक मूवमेंट करने में भी स्लीपर सेल और ओवरग्राउंड वर्करों की मदद सामने आती रही है। कठुआ में ऐसे नेटवर्क का पिछले एक साल में सुरक्षा एजेंसियां भंडाफोड़ भी कर चुकी हैं।