‘जब तक बच्चे बड़े न हो जाएं’- क्यों तलाक का फैसला टालते रहते हैं माता-पिता

क्या आपने कभी सोचा है कि दो लोग, जो सालों से नाखुश हैं, अलग क्यों नहीं होते? अक्सर इसका जवाब एक ही होता है- “बच्चों के बड़े होने तक रुक जाते हैं।” जी हां, भारतीय समाज में, यह एक अलिखित नियम जैसा है। माता-पिता यह मानते हैं कि इस बलिदान से वे अपने बच्चों को टूटे हुए घर के दर्द से बचा लेंगे, लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? आइए जानते हैं इसपर एक्सपर्ट की राय।

भारतीय समाज में तलाक सिर्फ दो लोगों का फैसला नहीं माना जाता, बल्कि यह पूरे परिवार, रिश्तेदारों और समाज की सोच से जुड़ा हुआ मुद्दा बन जाता है। यही कारण है कि कई कपल सालों तक कोशिश करते रहते हैं कि किसी तरह यह रिश्ता चलता रहे- कम से कम तब तक, जब तक बच्चे “थोड़े बड़े” यानी समझदार न हो जाएं। आइए, डॉ. नीतू तिवारी (एमबीबीएस, एमडी साइकियाट्री, सीनियर रेजिडेंट, NIIMS मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा) से इससे जुड़ी वजहों के बारे में जानते हैं।

‘पूरे परिवार’ की सोशल इमेज का दबाव

डॉ. नीतू का कहना है कि भारतीय संस्कृति में आदर्श परिवार की छवि- माता, पिता और बच्चे को बहुत महत्त्व दिया जाता है। माता-पिता अक्सर डरते हैं कि तलाक के बाद समाज उनके बच्चों को कैसे देखेगा। कहीं स्कूल में सवाल न उठें, रिश्तेदार ताने न दें या पड़ोस में चर्चा न हो। कई जगह तलाक को अभी भी एक असफलता की तरह देखा जाता है, न कि एक समझदारी भरा फैसला। माता-पिता यह सामाजिक बोझ खुद उठाते हैं और बच्चों को इससे बचाने की कोशिश में तलाक को सालों तक टालते रहते हैं।

छोटे बच्चों की भावनात्मक सुरक्षा का डर

ज्यादातर पेरेंट्स का मानना होता है कि कम उम्र के बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं और तलाक उनकी मानसिकता पर गहरा असर डाल सकता है। उन्हें लगता है कि अलगाव से बच्चों में डर, उलझन या असुरक्षा पैदा हो सकती है। हालांकि विशेषज्ञों का अनुभव बताता है कि बच्चे लगातार झगड़े, तनाव और ठंडी लड़ाइयों वाले घर में ज्यादा प्रभावित होते हैं, बजाय एक शांत और सम्मानजनक अलगाव के। शांत वातावरण बच्चों को कहीं अधिक स्थिरता देता है।

गिल्ट और खुद को दोष देने की आदत

भारतीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए त्याग करने को अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। कई बार वे सोचते हैं कि तलाक से “बच्चों का घर टूट जाएगा”, इसलिए वे अपनी मानसिक शांति और खुशियों को पीछे रख देते हैं, लेकिन लगातार कलह वाले माहौल में पले बच्चे अक्सर भविष्य में रिश्तों से डरने लगते हैं, आत्मविश्वास कम हो सकता है और भावनात्मक अस्थिरता विकसित हो सकती है। यानी जिस दर्द से माता-पिता उन्हें बचाना चाहते हैं, वही दर्द धीरे-धीरे उनके जीवन का हिस्सा बन जाता है।

आर्थिक निर्भरता और जिम्मेदारियां

विशेषकर महिलाओं के लिए आर्थिक निर्भरता एक बड़ा कारण होती है। कई माताएं तब तक शादी में बनी रहती हैं, जब तक बच्चे बड़े न हो जाएं या अपने पैरों पर न खड़े हो जाएं। वहीं, कई पिता तलाक इसलिए टालते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का डर होता है कि कहीं बच्चे उनसे दूर न हो जाएं या कानूनी प्रक्रिया जटिल न बन जाए।

भावनात्मक जिम्मेदारी का बोझ

कई माता-पिता अच्छी तरह जानते हैं कि रिश्ते में खुशियां खत्म हो चुकी हैं, लेकिन वे अपने बच्चों के लिए टिके रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी जिम्मेदारी है कि घर को किसी तरह संभालें, भले ही इसके लिए अपनी मानसिक सेहत की कीमत क्यों न चुकानी पड़े। यह कर्तव्य का भाव, सामाजिक उम्मीदें और बच्चों के प्रति प्रेम- सब मिलकर तलाक को लगातार टालते रहते हैं।

बच्चों के लिए असल में क्या जरूरी है?

एक्सपर्ट का मानना है कि बच्चों को “परफेक्ट फैमिली” की नहीं, बल्कि “शांत और सुरक्षित माहौल” की जरूरत होती है। अगर माता-पिता एक-दूसरे का सम्मान नहीं कर पा रहे हों, लगातार तनाव में हों या घर का वातावरण भारी हो, तो यह बच्चों के लिए कहीं ज्यादा नुकसानदायक होता है।

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