घाटी में मौसम बना मुसीबत: जंगल हो रहे पेड़ों से खाली… बढ़ रहा तबाही का मंजर

पिछले 13 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की 168 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो औसतन हर साल 13 बार सामने आती हैं। जलवायु परिवर्तन, बढ़ता तापमान और जंगलों की कटाई इसके प्रमुख कारण हैं, जिससे पहाड़ी इलाकों में तबाही का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
उत्तर भारत के राज्यों में बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। जलवायु परिवर्तन, चढ़ते पारे सहित अन्य कारणों से बादलों की चाल बदल रही है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी जंगलों की लगातार कटान के चलते बादल फटने पर भारी तबाही हो रही है।
इसका पहाड़ों के साथ जमीन पर प्रभाव दिख रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार विकास की आड़ में हरियाली की लगातार कटौती और बढ़ते प्रदूषण से भविष्य में मौसम संबंधी चुनौतियां और बढ़ेंगी। मौसम विज्ञान केंद्र श्रीनगर के पिछले 13 वर्षों (2010 से 2022) के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो जम्मू-कश्मीर में 168 अचानक बाढ़ आने की घटनाएं हुईं, यानी हर साल बादल फटने की औसतन 13 घटनाएं हो रही हैं और ये लगातार बढ़ रही हैं। इसका अधिकांश प्रभाव पहाड़ी क्षेत्रों में मानसून के दौरान नजर आता है।
इन वर्षों में किश्तवाड़, अनंतनाग, गांदरबल और डोडा जिला सबसे अधिक अचानक बाढ़ की घटनाओं से प्रभावित हुआ है, जबकि जिला जम्मू, श्रीनगर, अनंतनाग और कठुआ भारी बारिश की श्रेणी में रहा है। इन इलाकों में 100 से 200 मिलीमीटर की श्रेणी बारिश दर्ज की गई है।
पहाड़ी क्षेत्रों में भी जंगलों की लगातार कटान अचानक भारी बारिश के दबाव और रफ्तार को कम नहीं कर पा रही है, जिससे निचले मैदानी इलाकों में तबाही के मंजर बढ़ रहे हैं। इस मानसून में पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि में बादल फटने की घटनाओं से भारी तबाही हो चुकी है। प्रदेश में भी ताजा घटनाओं में कठुआ, चिनैनी, गुरेज, पुंछ आदि क्षेत्रों में बादल फटे हैं।
जंगल हो रहे पेड़ों से खाली, बढ़ रहा तबाही का मंजर
पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक ओपी शर्मा का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से लगातार बादलों की बनावट में परिवर्तन आ रहा है। पहले जंगलों में खूब पेड़, घास, झाड़ियां आदि होते थे, जिससे बादल फटने के दौरान ऊपर से तेज दबाव से आने वाले पानी की गति कम हो जाती थी, लेकिन अब पहाड़ों पर भी पेड़ों की लगातार कटान से बादल फटने पर पानी अपने साथ मलबा लेकर नीचे आ रहा है, जिससे तबाही का स्तर बढ़ रहा है।
एक घंटे में बरसता है कहर बनकर पानी
एक ही घंटे में आसमान से 100 मिलीमीटर पानी बरस जाताबादल फटने की घटना में एक सीमित जगह पर बादलों से वर्टिकल रूप से एक घंटे के भीतर 100 मिलीमीटर तक बारिश हो जाती है। यह बारिश अचानक बाढ़ का रूप ले लेती है। पानी का दबाव इतना होता है कि उसके आगे आने वाली हर चीज बहकर चली जाती है और अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को तबाह कर देती है। इस स्थिति में एक सीमित जगह पर हवा में भारी नमी रहती है, जिससे उसी जगह पर बादलों का सारा पानी गिर जाता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ रहा खतरा
मौसम विज्ञान केंद्र श्रीनगर के निदेशक डॉ. मुख्तियार अहमद के अनुसार बादलों के फटने की घटनाओं से पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक खतरा बढ़ रहा है। इसके लिए हरियाली को बढ़ावा देने के साथ पर्यावरण संतुलन बनाए रखना जरूरी है।