गुरु नानक देव जी से कैसे जुड़ा है यह स्थान?

गुरुद्वारा, जिसका अर्थ है “गुरु का स्थान” या “गुरु का घर”। यह सिखों का एक पवित्र धार्मिक स्थल है। भारत व अन्य कई देशों में भी प्रमुख गुरुद्वारे स्थापित हैं, जिनका इतिहास भी काफी अद्भुत रहा है। आज हम आपको पत्थर साहिब गुरुद्वारा के बारे में बताने जा रहे हैं। चलिए जानते हैं इस गुरुद्वारे का इतिहास।
क्या है इतिहास
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार, लोगों के कल्याण हेतु सन् 1517 में लद्दाख यात्रा के दौरान श्री गुरु नानक देव जी भूटान, नेपाल, चीन से होते हुए लद्दाख पहुंचे। तब वहां के लोगों ने उन्हें पहाड़ी पर रहने वाले एक राक्षस के बारे में बताया, जो लोगों को बहुत परेशान करता था। तब गुरु नानक देव जी ने नदी के किनारे ही अपना आसन लगा लिया।
एक दिन जब वह प्रभु के ध्यान में लीन थे, तभी राक्षस ने नुकसान पहुंचाने की मंशा से नानक देव जी पर पहाड़ से एक बड़ा पत्थर गिरा दिया। लेकिन गुरु जी से स्पर्श से वह पत्थर मोम जैसा नरम हो गया। इससे गुरु जी के शरीर के पिछले हिस्से की छाप पत्थर पर आ गई।
राक्षस ने मांगी माफी
यह देखकर राक्षस हैरान रह गया और पहाड़ से नीचे उतरा। गुस्से में आकर राक्षस ने अपना एक पैर पत्थर पर मारा, लेकिन उसका पैर पत्थर में धंस गया। तब उसे यह एहसास हुआ कि वह कोई आम व्यक्ति नहीं हैं। अपनी गलती की माफी मांगते हुए वह गुरु जी के चरणों में गिर पड़ा। गुरु नानक देव के उपदेशों से राक्षस का भी हृदय परिवर्तित हो गया और उसने लोगों को तंग करना बंद कर दिया।
ये हैं गुरुद्वारे से जुड़ी खास बातें
गुरुद्वारे में पत्थर में धंसा श्री गुरु नानक देव जी के शरीर का निशान आज भी पत्थर पर मौजूद हैं, जिसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। इसके साथ ही राक्षस के पैर के निशान भी पत्थर पर देखे जा सकते हैं। इसी कारण से इस स्थान को गुरुद्वारा पत्थर साहिब के नाम से जाना जाता है।
इस समय गुरुद्वारा पत्थर साहिब की जिम्मेदारी भारतीय सेना के पास है। यह गुरुद्वारा न केवल सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, बल्कि हिंदुओं और बौद्धों के लिए भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बना हुआ है।





