गाजीपुर लैंडफिल हटाना बड़ी चुनौती, 2026 है सरकार का लक्ष्य, MCD की ऐसी है हालत

गाजीपुर लैंडफिल साइट पर 82 लाख मीट्रिक टन कचरे का निपटान धीमी गति से हो रहा है। जिससे दिल्ली सरकार का 2026 तक कूड़ा मुक्त करने का लक्ष्य मुश्किल लग रहा है। भलस्वा और ओखला में प्रगति बेहतर है। लेकिन गाजीपुर की ऊंचाई, घनत्व और संसाधनों की कमी इसे सबसे बड़ी पर्यावरणीय चुनौती बनाए हुए हैं।
एमसीडी की तमाम कोशिशों के बावजूद गाजीपुर सेनेटरी लैंडफिल साइट राजधानी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्या बनी हुई है। राजधानी की भलस्वा व ओखला लैंडफिल साइट की तुलना में यहां से कचरा हटाने का कार्य काफी धीमा चल रहा है।
ऐसे में अगले साल के अंत तक पूरी तरह कचरा हटना मुश्किल है। दिल्ली सरकार ने एमसीडी को अगले साल दिसंबर तक कूड़ा मुक्त करने के निर्देश दिए हैं जबकि एमसीडी ने दिसबंर 2027 तक यहां से पूरी तरह कूड़ा हटाने का लक्ष्य रखा हुआ है।
एमसीडी के अनुसार, जून 2022 के ड्रोन सर्वे के अनुसार गाजीपुर लैंडफिल साइट पर 85 लाख मीट्रिक टन कचरा जमा था। इसके बाद जुलाई 2022 से अगस्त 2025 तक 20 लाख मीट्रिक टन कचरा और गाद यहां डाली गई। तीन वर्षों से अधिक समय में एमसीडी केवल 23 लाख मीट्रिक टन कचरे की ही बायो-माइनिंग कर सकी है। नतीजा यह है कि आज भी यहां 82 लाख मीट्रिक टन कचरा पड़ा है। यहां स्थिति इतनी गंभीर है कि दिल्ली सरकार के आदेश के तहत दिसंबर 2026 तक इसे पूरी तरह कूड़ा मुक्त करने का लक्ष्य मात्र कागजी साबित होता दिख रहा है। मौजूदा रफ्तार से अगले सवा साल में इतने बड़े कचरे के पहाड़े का निपटान कर पाना असंभव प्रतीत हो रहा है।
गाजीपुर साइट इसलिए बनी सबसे बड़ा संकट
गाजीपुर में दशकों से लगातार कचरा डाला जा रहा है। यहां ऊंचाई और घनत्व इतना बढ़ चुका है कि बायो-माइनिंग की प्रक्रिया धीमी पड़ गई है। मशीनरी व संसाधनों की कमी और पर्याप्त निगरानी न होने से काम की गति बेहद सुस्त है। प्रदूषण, बदबू और जहरीली गैसों से स्थानीय लोगों का जीना मुहाल है। यही वजह है कि गाजीपुर आज भी दिल्ली की सबसे बड़ी कचरा समस्या बना हुआ है।
गाजीपुर के लिए भावी योजना
35 एकड़ में एसडब्ल्यूएम (ठोस अपशिष्ट प्रबंधन) सुविधाएं विकसित होंगी।
15 एकड़ में 2000 टन प्रतिदिन क्षमता का वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट लगाया जाएगा।
10 एकड़ में 500 टन प्रतिदिन क्षमता का बायोमेथेनेशन/बायो-सीएनजी प्लांट स्थापित होगा।
10 एकड़ क्षेत्र में घना जंगल विकसित किया जाएगा।
भलस्वा और ओखला में उम्मीदें
भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट पर काम की गति कहीं बेहतर है। भलस्वा में 63 लाख मीट्रिक टन और ओखला में 42 लाख मीट्रिक टन कचरे का निपटान किया जा चुका है। यहां जुलाई 2026 व दिसंबर 2026 की समयसीमा के भीतर सफाई पूरी होने की संभावना मजबूत मानी जा रही है।