गजब: भारत का एक शहर जहाँ सब्जियों के भाव मिलता है काजू

जैसे  योग, प्राणायाम, दूध, पौष्टिक आहार आदि | सूखे मेवों का प्रयोग भी उनमें से एक है, जो सेहत के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है इनका प्रयोग तरह तरह के पकवान और मिठाई आदि बनाने में भी किया जाता है जैसे काजू की कतली, बादाम की कतली, बादाम का हलवा, गाजर, बादाम और मूंग के हलवे में काजू, किसमिस, पिस्ता आदि का प्रयोग किया जाता है |

गजब: भारत का एक शहर जहाँ सब्जियों के भाव मिलता है काजू

 

इसके अतिरिक्त नमकीनों में भी काजू, किसमिस और बादाम आदि का प्रयोग किया जाता है | लौंग, इलायची, छिवारा, अखरोट, चिरोंजी  मुनक्का आदि का भी प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है |

भारत में अधिकांश शहरों में इन सूखे मेवों के भाव सुनकर लोग अपनी जेबों में देखने लगते हैं कि इन्हें कैसे ख़रीदा जाय? या दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यह गलत नहीं होगा कि ये सभी तरह के सूखे मेवे देश की अधिकांश आबादी की क्रय क्षमता के बाहर हैं, वे चाहकर भी इन्हें नहीं खरीद सकते क्योंकि इनके दाम बहुत अधिक होते है | मेरे विचार में शायद ही कोई मेवा ऐसा होगा जिसका भाव आठ सौ से एक हज़ार रूपया प्रति किलो से कम हो | अगर कोई हमें कहे कि इन्हीं सूखे मेवों में से एक और सर्वाधिक स्वादिष्ट मेवा जिसे सभी ‘काजू’ के नाम से जानते है, वह भारत के ही एक शहर में कोडियों के मोल बिकता है, तो आपको इसके दाम सुनकर विश्वास ही नहीं होगा | आप दाम सुनकर दांतों तले अंगुली दबा लेंगे क्योंकि इस शहर में काजू के दाम हमारी सोच से बहुत कम हैं |

क्या आप विश्वास करेंगे कि भारत में हज़ार के भाव बिकने वाला काजू यहाँ महज 10 से 20 रुपये किलो मिलता है | क्या……10 से 20 रुपये किलो?  जी हाँ, 10 से 20 रुपये किलो | इसके लिए हमें कोई विदेश जाने की आवश्यकता नहीं है | हमारे ही देश के झारखण्ड राज्य के जामताड़ा जिले में काजू के दाम आलू-प्याज और अन्य सब्जियों के बराबर हैं |

अब आप जानना चाहेंगे कि यहाँ पर काजू इस कदर कम दाम पर कैसे बिकते हैं, तो दोस्तों आपको इसका राज़ बताते हैं कि जामताड़ा में काजू के इतना सस्ता होने के पीछे क्या कारण है?

जामताड़ा जिला मुख्यालय से लगभग चार किमी. की दूरी पर 49 एकड़ के विशाल भू भाग पर काजू के बागान हैं, जहाँ प्रतिवर्ष हजारों टन काजू पैदा होता है और यहाँ बागानों में इसकी खेती करने वाले पुरुष और औरतें इन्हें सस्ते भाव पर बेच देते हैं | काजू की फसल से मिलने वाले लाभ और देश के अन्य प्रान्तों में इसके आसमान छूते भाव को देखते हुए भारी संख्या में लोगों का काजू की खेती के प्रति झुकाव निरन्तर बढ़ रहा है

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आश्चर्य की बात है कि इतने विशाल भाग में काजू की खेती और इतनी अच्छी फसल महज कुछ वर्षों में किये गए प्रयासों का प्रतिफल है | जामताड़ा के इस क्षेत्र के लोगों का कहना है कि कुछ साल पहले जामताड़ा के एक्स डिप्टी कमिश्नर कृपानंद झा यहाँ आए, उन्हें काजू बेहद पसंद थे पर उसके दाम बहुत अधिक होने के कारण उनके मन में काजू की खेती का विचार आया और उन्होंने उड़ीसा के कृषि वैज्ञानिकों से भू परिक्षण कराकर यहाँ खेती शुरू कराई और चंद सालों में विशाल भू भाग पर काजू के बागान नज़र आने लगे | 

हर साल होती है यहाँ हजारों क्विंटल काजू की फसल

मि. झा के यहाँ से जाने के बाद महज तीन लाख रुपए की राशि के बदले निमाई चन्द्र घोष एंड कंपनी को रख रखाव और निगरानी का काम सौंपा गया पर वो इतने विशाल बागान की पूरी तरह से निगरानी कर पाने में कामयाब नहीं है | जिसके चलते निगरानी के अभाव में जामताड़ा के स्थानीय निवासी और यहाँ से गुजरने वाले राहगीर मुफ्त में यहाँ से काजू तोड़कर ले जाते हैं|

 सरकार से सुरक्षा की गुहार बेनतीजा

काजू की खेती से जुड़े लोग अनेकों बार राज्य सरकार से सुरक्षा के लिए कह चुके हैं पर अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला | राज्य सरकार कृषि विभाग की सहायता से विशाल भू भाग पर काजू की पौध लगाने की तैयारी कर रही है पर अभी तक कार्य आरम्भ नहीं हुआ है |

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