अमृतसर.धर्म कोई भी हो वह इंसान को इंसान से जोड़ता है। इसी कहावत को चरितार्थ करती है हाल बाजार की ऐतिहासिक महत्ता वाली जामा मस्जिद खैरुद्दीन, जिसे बड़ी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। हालगेट के जरिए शहर में प्रवेश करते ही चंद कदम की दूरी पर स्थित यह मस्जिद अपनी समृद्ध वास्तु शैली का नमूना है वहीं हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई भाईचारे का जीता-जागता सबूत भी है। आजादी में भी किरदार निभाया…
इसके गेट पर पहुंचते ही इसके आपसी सद्भाव वाले स्वरूप को महसूस किया जा सकता है। हर शुक्रवार को जब यहां पर पूरे शहर के लोग नमाज अदा करने आते हैं तो उनके जोड़ों की सेवा सरदार बलजिंदर सिंह निभाते हैं। बलजिंदर यह काम साल-दो साल नहीं, बल्कि 40 सालों से करते रहे हैं। उनका कहना है कि हर शुक्रवार को वह दोपहर की नमाज के वक्त यहां पहुंच आते हैं। वह कहते हैं कि रब तो हरेक जगह है और उसी रब की सेवा के साथ लोगों को मानवता का संदेश देने के लिए वह जोड़ों की सेवा निभाते हैं।
गेट पर हिंदू भाइयों की निगहबानी
सैकड़ों साल पुरानी इस मस्जिद ने देश की आजादी में अहम किरदार निभाया था। 1919 में 13 अप्रैल को हुए जलियांवाला बाग कांड से पहले लोगों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ निकाले गए जुलूस पर जब बर्तानवी हुकूमत ने गोलियां चलवाई थी तब उन लाशों को इस मस्जिद में नहला करके जुलूस निकाल तत्कालीन सरकार की खिलाफत की गई है। यहां आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले इकट्ठे होते और सभाएं करते थे। यहां सेवा करते रहे अनवारुल हुदा करते हैं कि वर्तमान में भी यह मस्जिद सेवा भावना और आपसी सद्भाव के लिए मशहूर है।
हाल बाजार स्थित जामा मस्जिद खैरुद्दीन में जोड़ों की सेवा करने वाले बलजिंदर सिंह, गेट पर पहरेदारी निभाने वाले हरीश कुमार और मस्जिद के सेवादार अनवारुल हुदा। मस्जिद के मेन गेट पर दो लोगों की दुकानें लगती हैं। कस्तूरी लाल और तिलकराज महाजन की। यह लोग उस वक्त से हैं जब बंटवारे के बाद मस्जिद खाली हो गई थी। इस वक्त यहां पर कस्तूरी लाल के बेटे हरीश कुमार और महाजन के बेटे अजय कुमार यह काम करते हैं। मस्जिद के लोगों का कहना है कि कई बार शरारती लोगों ने यहां गड़बड़ पैदा करने की कोशिश की, लेकिन इन हिंदू परिवारों ने मस्जिद को संभाला और सद्भावना की मिसाल पेश की। आज भी यह लोग मस्जिद की देखरेख अपने धर्म स्थान की तरह से करते हैं। हरीश कहते हैं कि परमात्मा तो वही है उसे चाहे मंदिर में पूजा या मस्जिद में।