क्या होता है पूर्ण राज्य का दर्जा, जिसकी लद्दाख में हो रही है मांग? जानिए क्या हैं इसके फायदे

लद्दाख में पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग जोर पकड़ रही है। यह दर्जा मिलने पर राज्य को अपनी सरकार, विधानसभा और अधिक स्वायत्त अधिकार मिलते हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें…

Poorna Rajya: लद्दाख में पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग लगातार जोर पकड़ रही है। छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा और लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर लेह में बंद और बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें हालात तनावपूर्ण हैं। प्रदर्शन के दौरान कुछ युवाओं के उग्र हो जाने के बाद पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने और लाठीचार्ज करना पड़ा।

इस बीच यह जानना जरूरी है कि पूर्ण राज्य का दर्जा वास्तव में क्या होता है, इससे राज्यों को कौन-कौन से लाभ मिलते हैं, और पूर्ण राज्य व केंद्र शासित प्रदेश के बीच क्या अंतर है। ये सभी ऐसे सवाल हैं जिनकी जानकारी हर छात्र के लिए जरूरी है।

क्या होता है पूर्ण राज्य का दर्जा?
पूर्ण राज्य का दर्जा किसी प्रदेश को पूरा राज्य बनाने का अधिकार होता है। इसका मतलब है कि उस प्रदेश की अपनी विधान सभा, मुख्यमंत्री और राज्य सरकार होती है, जो अपने राज्य के नियम और फैसले खुद बनाती है। राज्य अपने ज्यादातर काम खुद करता है और केंद्र सरकार केवल कुछ मामलों में मदद या नियंत्रण करती है।

उदाहरण के लिए, भारत के 28 राज्य पूर्ण राज्य का दर्जा रखते हैं, जबकि केंद्र शासित प्रदेश जैसे लद्दाख और दिल्ली पर सीधा केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है और उन्हें यह पूरा अधिकार नहीं मिलता।

पूर्ण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में अंतर
पूर्ण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में मुख्य फर्क उनके सशक्त शासन और अधिकार में है। पूर्ण राज्य के पास अपनी विधानसभा, मुख्यमंत्री और राज्य सरकार होती है, जो राज्य के नियम, कानून और फैसले खुद बनाती और लागू करती है। राज्य अपने ज्यादातर मामलों में स्वतंत्र होता है और केंद्र सरकार केवल कुछ मामलों में ही हस्तक्षेप करती है।

केंद्र शासित प्रदेश पर मुख्य रूप से केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है। इसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक चलाते हैं और अधिकांश फैसले केंद्र सरकार तय करती है। कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा होती है, लेकिन वे अपने फैसलों में पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं होते।

क्या हैं इसके फायदे?
स्वायत्त शासन: राज्य अपनी विधान सभा और मुख्यमंत्री के जरिए खुद के कानून और नियम बना सकता है।
विकास के निर्णय: राज्य अपने विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के फैसले स्वतंत्र रूप से ले सकता है।
स्थानीय प्रशासन पर नियंत्रण: राज्य के पास अपने जिले, पंचायत और नगरपालिकाओं पर निर्णय लेने का अधिकार होता है।
राजस्व का अधिकार: राज्य अपने कर और संसाधनों से मिलने वाली आय का खुद प्रबंधन कर सकता है।
केंद्र पर कम निर्भरता: राज्य ज्यादातर मामलों में केंद्र सरकार पर कम निर्भर रहता है।

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