कैसे और कहां किया जाता है अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध?

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व है। इस दौरान पितृ भूलोक पर वास करते हैं। पितरों की पूजा करने से व्यक्ति के सुख सौभाग्य और वंश में वृद्धि होती है। साथ ही व्यक्ति अपने जीवन में तरक्की और उन्नति की राह पर अग्रसर रहता है।

हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। आसान शब्दों में कहें तो आश्विन माह का कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित होता है। इस दौरान पितृ भूलोक पर निवास करते हैं। इसके लिए पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है। वहीं, भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भी श्राद्ध कर्म किया जाता है।

गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। कहते हैं कि पितरों की मोक्ष न मिलने पर पितृ प्रेतयोनि में भटकते रहते हैं। इसके लिए पितृपक्ष के दौरान पितरों का तर्पण और पिंडदान कर उनको प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाई जाती है। बिहार के गयाजी में फल्गु नदी के तट पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से तीन पीढ़ी के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध फल्गु नदी के तट पर नहीं किया जाता है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

पितृ पक्ष 2025 कब से है?
भाद्रपद पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। वहीं, आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर समापन होता है। इस साल 07 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा है। इसके अगले दिन यानी 08 सितंबर से पितरों का तर्पण किया जाएगा। वहीं, 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या है। इस दिन पितृपक्ष का समापन होगा। इसके बाद पितृ अपने लोक लौट जाएंगे।

पितृ पक्ष 2025 तिथियां
8 सितंबर के दिन प्रतिपदा श्राद्ध है।

9 सितंबर के दिन द्वितीया श्राद्ध है।

10 सितंबर के दिन तृतीया और चतुर्थी श्राद्ध है।

11 सितंबर के दिन पंचमी श्राद्ध है।

12 सितंबर के दिन षष्ठी श्राद्ध है।

13 सितंबर के दिन सप्तमी श्राद्ध है।

14 सितंबर के दिन अष्टमी श्राद्ध है।

15 सितंबर के दिन नवमी श्राद्ध है।

16 सितंबर के दिन दशमी श्राद्ध है।

17 सितंबर के दिन एकादश श्राद्ध है।

18 सितंबर के दिन द्वादशी श्राद्ध है।

19 सितंबर के दिन त्रयोदशी श्राद्ध है।

20 सितंबर के दिन चतुर्दशी श्राद्ध है।

21 सितंबर के दिन सर्वपितृ अमावस्या है।

कैसे और कहां किया जाता है अकाल मृत्यु का पिंडदान?
अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध और पिंडदान गयाजी स्थित प्रेतशिला पर्वत पर किया जाता है। प्रेतशिला पर्वत के शिखर पर एक वेदी है, जो प्रेतशिला वेदी के नाम से प्रसिद्ध है। अकाल मृत्यु वाले पितरों का प्रेतशिला वेदी पर ही श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया जाता है।

धार्मिक मान्यता है कि प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने से अकाल मृत्‍यु वाले पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है। अकाल मृत्यु वाले पितरों का सत्तू से पिंडदान किया जाता है। इस पर्वत पर संध्याकाल के बाद ठहरने की मनाही है। इसके लिए सूर्यास्त के बाद पिंडदान और श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है।

पितृ पक्ष में कब करें श्राद्ध?
गरुड़ पुराण में पितृपक्ष के दौरान आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने की सलाह है। इसके लिए अष्टमी तिथि पर अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध कर्म और पिंडदान करना चाहिए। अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध कर्म और पिंडदान के लिए प्रकांड पंडित से अवश्य सलाह लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button