कर्नाटक के मंच से यूपी पर निशाना
लम्बी उठापटक के बाद बुधवार को जब कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह शुरू हुआ तो भाजपा विरोधी करीब करीब सभी पार्टियों के बड़े नेता वहां मौजूद थे. शपथ ग्रहण के लिए सजे विशाल मंच पर भारतीय राजनैतिक रंगमंच के बड़े कलाकारों की तस्वीरों ने जो कोलाज बनाया वह भारतीय राजनीति के एक नए परिद्रश्य की विहंगम झलक थी.
करीब 25 साल बाद यह पहला अवसर था जब समाजवादी पार्टी के नए सुप्रीमो अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती सार्वजनिक मंच पर न केवल एक साथ आये बल्कि इनके बीच सहजता का रसायनशास्त्र साफ़ दिखाई दे रहा था. दोनों नेताओं ने मंच पर एक दूसरे से न केवल गर्मजोशी से मुलाकात की बल्कि एक साथ खड़े हो कर जनता का अभिवादन हाथ हिलाकर किया. इससे पहले ऐसा दृश्य तब दिखा था जब यूपी में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम एक साथ मंच पर आये थे और एक नए सियासी नारे “ मिले-मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम” ने यूपी की राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया था.
अखिलेश और मायावती की ये तस्वीर भले ही यूपी से करीब एक हजार किलोमीटर की दूरी पर बन रही थी मगर इस एक तस्वीर ने यूपी की राजनीति को बड़ा सन्देश दे दिया. गोरखपुर और फूलपुर की संसदीय सीटो पर सपा को बसपा ने भले ही समर्थन दिया था मगर बसपा ने पूरे उपचुनावों के दौरान सपा के साथ मंच साझा नहीं किया था. बैंगलोर में जब माया और अखिलेश एक साथ मंच से हाथ हिला रहे थे तो उसका सन्देश बैंगलोर से बहुत दूर यूपी के कैराना तक जा रहा था जहाँ आने वाली 28 तारीख को लोकसभा सीट के लिए वोट पड़ने हैं.
साझा विपक्ष की मदद की लड़ रही उम्मीदवार तबस्सुम बेगम पूर्व बीएसपी सांसद की पत्नी हैं और सपा से जुड़ी हैं. लेकिन वह राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर लड़ रही हैं. उन्हें समर्थन देने के लिये बीएसपी और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारे हैं. कैराना में कुल 17 लाख वोटर हैं. जिसमें मुसलमानों की संख्या 5 लाख है और जाटों की संख्या 2 लाख है वहीं, दलितों की संख्या 2 लाख है और ओबीसी की संख्या दो लाख है, जिनमें गूजर, कश्यप और प्रजापति शामिल हैं
योजना लोकदल के पारंपरिक जाट वोटों के साथ ही मुस्लिम और दलित वोटों को अपने साथ लेने की है, इस बीच कैराना में नारा बदल गया है और वहां विपक्ष का नया नारा है “जिन्ना नहीं गन्ना चलेगा”.
बंगलोर के मंच पर दूसरी तस्वीर बनी जब सोनिया गाँधी ने हाथ पकड़ कर मायावती को राहुल गाँधी से मिलवाया. मायावती राहुल को जो कुछ भी समझा रही थी उसे राहुल ने बहुत ध्यान से सुना. इसके बाद माया की बातों का समर्थन करती सोनिया ने भी राहुल को कुछ कहा और मुस्कुराते हुए राहुल ने जब मायावती का हाथ जोड़ कर अभिवादन किया तो यह साफ़ होने लगा कि बसपा और कांग्रेस के बीच की दूरियाँ फिलहाल की राजनीति को देखते हुए काफी हद तक मिट चुकी हैं और आने वाले लोकसभा चुनावो में इन दोनों के साथ आने पर ज्यादा संशय करने की जरुरत नहीं. कुछ ऐसी ही केमिस्ट्री मायावती और ममता बनर्जी के बीच देखने को मिली.
मोदी लहर पर सवार हो कर दिग्विजय यात्रा पर निकली भाजपा के लिए हालात लगातार प्रतिकूल हो रहे हैं. कांग्रेस मुक्त भारत का नारा ऊपर से भले ही कामयाब दिखाई दे रहा हो मगर ध्यान से देखने पर स्थिति अलग है. भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत 29 मे से केवल 10 राज्य में है. देश के दस राज्यों मे भाजपा दोहरे अंक में भी नहीं है.
मिजोरम, सिक्किम, तमिलनाडू के 234 विधान सभा सीटों मे से भाजपा की एक भी सीट नही है. आंध्र मे 294 मे से 9, केरल 140 मे से 1, मेघालय 60 मे से 2 पंजाब मे117 से 3 और पश्चिम बंगाल 294 मे से 3, तेलंगाना 119 मे से 5 और दिल्ली 70 मे से 3 सीट भाजपा की है. इसका अर्थ आंध्रप्रदेश, तेलंगणा, केरळ, पंजाब तथा पश्चिम बंगाल, दिल्ली इन छह प्रमुख राज्य मे भाजपा नगण्य है. देश के कुल 4139 विधायक मे से 1516 विधायक भाजपा के हैं उसमें भी 950 विधायक गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश आदि 6 राज्य से हैं. अब तो महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान मे सत्ता के खिलाफ वातावरण है और उत्तर प्रदेश के हालात भी सुखद नहीं हैं.
2014 के लोकसभा चुनावो में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया था लेकिन उसके बाद हुए उपचुनावों में पार्टी की लगातार हार हुयी जबकि कांग्रेस ने 5 और सपा ने 2 सीटे उससे छीन ली. अब जबकि मायावती, अखिलेश, लालू, कुमारस्वामी, राहुल करीब करीब एक साथ हैं और ममता,शरद पवार,चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव के साथ करूणानिधि भी इस साझा मोर्चे में आने वाले हैं तो फिर भाजपा के लिए इस साझा विपक्ष और सरकार के प्रति जनता की बेचैनी की काट खोज पाना कठिन होगा.