कर्ण के इस बाण से चिंता में पड़ गए थे भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को बचाने के लिए चली ये चाल

अर्जुन और कर्ण दोनों ही महाभारत के श्रेष्ठ योद्धा रहे हैं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। ऐसा कहा जा सकता है कि यदि भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन का साथ न देते तो कर्ण धनुर्धर अर्जुन पर भारी पड़ता। आज हम आपको महाभारत से जुड़े उस प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने इस चाल से अर्जुन के प्राण बचाए थे।

कुंती पुत्र कर्ण को एक श्रेष्ठ धनुर्धर होने के साथ-साथ महादानी की उपाधि भी दी जाती है। अर्जुन को एक दिव्य शक्ति बाण मिला हुआ था, जिसके प्रहार से बचना किसी के लिए भी नामुमकिन था। उसने यह बाण विशेष रूप से अर्जुन के लिए ही रखा था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने एक ऐसी चाल चली कि वह अपने इस का इस्तेमाल अर्जुन पर नहीं कर सका। चलिए जानते हैं इस बारे में।

कैसे मिला शक्ति बाण
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, जब इंद्र देव एक वृद्ध ब्राह्मण का वेश कर्ण के पास दिव्य कवच और कुंडल मांगने के लिए आए, तब कर्ण अपने कवच और कुंडल देने के लिए तैयार हो गया, लेकिन साथ ही उसने इंद्र देव से वासवी शक्ति नामक अमोघ शस्त्र की मांग की।

यह एक ऐसा शस्त्र था, जो अचूक और कभी न विफल होने वाला था। देवराज इंद्र ने कर्ण को शक्ति बाण देते हुए कहा कि तुम इस बाण का इस्तेमाल केवल एक ही बार कर सकोगे। तुम्हारे उपयोग के बाद यह मेरे पास वापस आ जाएगा।

भगवान श्रीकृष्ण ने चली ये चाल
महाभारत के युद्ध के दौरान एक समय ऐसा आया जब कर्ण, अर्जुन पर भारी पड़ने लगा था। वह अपने इंद्र देव द्वारा प्राप्त शक्ति बाण का उपयोग अर्जुन पर करना चाहता था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने एक चाल चली और भीम व हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच को लड़ने के लिए कौरवों की सेना की तरफ भेजा। घटोत्क ने कौरवों की सेना में हाहाकार मचा दिया। उसपर नियंत्रण पाना किसी के लिए भी मुश्किल था।

इसलिए करना पड़ा अमोघ बाण का इस्तेमाल
भीष्म पितामह भी घटोत्कच पर विजय प्राप्त नहीं कर सके। कौरवों को लगने लगा था कि इस तरह तो घटोत्कच उनकी सेना को खत्म कर देगा। तब दुर्योधन और दुशासन ने मिलकर कर्ण को घटोत्कच पर शक्ति बाण का इस्तेमाल करने के लिए कहा। न चाहते हुए भी कर्ण को घटोत्कच पर अपने इस अमोघ बाण का इस्तेमाल करना पड़ा। तब कर्ण ने अपने शक्ति बाण से घटोत्कच का वध किया। इस तरह वह अपने अमोघ अस्त्र का इस्तेमाल अर्जुन पर नहीं कर सका।

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