एससी-एसटी कानून बैंक के बंधक अधिकारों में नहीं डालता बाधा

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल किसी बैंक को उसके वैध बंधक अधिकारों का प्रयोग करने से रोकने के लिए नहीं किया जा सकता। कानून के ये प्रावधान, एससी-एसटी समुदाय के लोगों की जमीन पर गलत तरीके से कब्जा या बेदखली रोकने से संबंधित हैं।

जस्टिस सचिन दत्ता ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की ओर से एक्सिस बैंक, उसके प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही पर रोक लगाते हुए की। जस्टिस दत्ता ने 16 अक्तूबर को पारित आदेश में कहा, मामले में अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3(1)(एफ) और (जी) लागू नहीं होती हैं क्योंकि याचिकाकर्ता के बंधक अधिकार के प्रयोग को रोकने के लिए इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

एक व्यक्ति ने एससी-एसटी कानून का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए आयोग के सामने अभ्यावेदन दिया था। आयोग ने बैंक के एमडी और सीईओ को पेश होने का आदेश दिया था। कानून की धारा 3(1)(एफ) एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य की भूमि पर गलत तरीके से कब्जा करने या खेती करने पर दंड का प्रावधान करती है, जबकि धारा 3(1)(जी) किसी सदस्य को उसकी भूमि या परिसर से गलत तरीके से बेदखल करने की सजा से संबंधित है।

संपत्ति गिरवी रख लिया करोड़ों का कर्ज, चुकाया नहीं
अदालत के समक्ष दायर याचिका के अनुसार, एक्सिस बैंक ने 2013 में महाराष्ट्र के वसई की संपत्ति गिरवी रखकर सनदेव अप्लायंसेज लि. को 16.69 करोड़ रुपये का लोन दिया था। उधार लेने वाले के भुगतान न करने पर, 2017 में खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया और बैंक ने गिरवी रखी संपत्ति को अपने अधिकार में लेने के लिए कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल किया।

आयोग की कार्यवाही उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर
हाईकोर्ट ने यह कहते हुए आदेश पर रोक लगा दी कि आयोग के समक्ष लंबित कार्यवाही उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने समन जारी कर बैंक के एमडी और सीईओ को उसके समक्ष उपस्थित होने को कहा था।

हाईकोर्ट ने कहा कि आयोग ने समन जारी करने के पीछे कोई तर्क दर्ज नहीं दिया है। हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई अगले साल 5 फरवरी के लिए निर्धारित कर दी।

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