उत्तराखंड के CM ने ‘मनहूस’ बंगले के मिथक को तोड़ा, अब क्या योगी आदित्यनाथ भी नोएडा आएंगे?
उत्तराखंड के नए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देहरादून के न्यू कैंट रोड स्थित बंगले में प्रवेश कर इसके ‘मनहूस’ होने के मिथक को तोड़ दिया है. अब नोएडा में भी ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी नोएडा से जुड़े मिथक को तोड़ेंगे?
उत्तर प्रदेश के पिछले कई मुख्यमंत्री नोएडा आने से बचते रहे हैं. नोएडा से पिछले कई साल से ये ‘अपशकुन’ जुड़ा है कि यहां जो भी मुख्यमंत्री आता है उसकी कुर्सी चली जाती है. शायद इसी वजह से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने कार्यकाल के दौरान कभी नोएडा नहीं आए? अब देखना ये है कि उत्तर प्रदेश के नए सीएम योगी आदित्यनाथ नोएडा आने को लेकर क्या रुख अपनाते हैं?
बता दें कि मुख्यमंत्री रहते रमेश पोखरियाल निशंक (मई 2011 से सितंबर 2011), बीसी खंडूरी (सिंतबर 2011 से मार्च 2012) और विजय बहुगुणा (मार्च 2012 से जनवरी 2014) इस घर में रह चुके हैं लेकिन तीनों ही अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गृह प्रवेश से संबंधित सामान्य पूजा पाठ कर बंगले में प्रवेश किया. उनका परिवार 60 में से सिर्फ 5 कमरों का इस्तेमाल करेगा. बंगले में किसी महंगे फर्नीचर का इस्तेमाल नहीं होगा. इसके अलावा पानी की बर्बादी को रोकने के लिए सीएम ने बंगले के स्वीमिंग पूल को भी बंद करने का आदेश दिया है.
उत्तराखंड के बंगले की तरह नोएडा को लेकर भी अफवाह रही है कि यहां जो भी मुख्यमंत्री आता है उसकी गद्दी चली जाती है. पिछले कुछ चुनावों से नोएडा में बीजेपी का वर्चस्व है. यहां के सांसद महेश शर्मा केंद्र में मंत्री हैं. हाल में संपन्न यूपी विधानसभा चुनाव में नोएडा विधानसभा सीट से केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को भारी मतों से जीत मिली. अब ऐसे में एक सवाल नोएडा के लोगों की जुबान पर है कि क्या उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नोएडा आएंगे?
नोएडा को लेकर अफवाह फैली है कि जो भी मुख्यमंत्री यहां आता है उसकी कुर्सी चली जाती है. मायावती के साथ ऐसा ही हुआ. अखिलेश यादव ने भी मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा ना आकर कई योजनाएं लखनऊ से ही रिमोट के ज़रिये शुरू की. साल 2012 में यमुना एक्सप्रेसवे , 2016 में राष्ट्रपति के आगमन पर और ऐसे कई मौक़ो पर अखिलेश ने नॉएडा से दूरी बना के रखी.
नोएडा के बारे में कहा जाता है कि 1988 में वीर बहादुर सिंह ने नोएडा आने के बाद कुर्सी खो दी थी. इसी तरह 1989 में नारायण दत्त तिवारी और 1999 में कल्याण सिंह की नोएडा आने के बाद कुर्सी चली गयी थी. 1995 में मुलायम सिंह की भी नोएडा आने के कुछ दिन बाद कुर्सी चली गयी थी. नोएडा में अब सभी की दिलचस्पी इसी में है कि योगी आदित्यनाथ कब नोएडा आ कर नोएडा के माथे पर लगे ‘अपशकुन’ के कलंक को मिटाते हैं.