इस चाल से टूट गया 2019 के लिए प्लान किया गया विपक्ष का ये सपना!
रामनाथ कोविंद को जब NDA ने राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया उसी दिन नीतीश कुमार ने अपने इरादे साफ कर दिए थे और आज तो समर्थन का एलान करके अपने इरादे पर औपचारिक मुहर भी लगा दी.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन से पहले ही कोविंद का जीतना तय था लेकिन अब जीत बंपर होने वाली है. बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA के पास 5 लाख 32 हजार वोट हैं. बीजेपी को दक्षिण भारत की दो प्रमुख पार्टियां वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस का समर्थन हासिल है. वाईएसआर कांग्रेस का वोट मूल्य 17 हजार 574 और टीआरएस का वोट मूल्य 22 हजार 48 वोट है. नीतीश की पार्टी के जेडीयू ने कोविंद का समर्थन किया है, जिसका वोट मूल्य 20,779 है यानि अब कोविंद के समर्थन में कुल 5 लाख 92, 401 वोट हो गए हैं. जो जीत के आंकड़ें से कहीं ज्यादा हैं.
ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजेडी भी रामनाथ कोविंद का समर्थन कर सकती है क्योंकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक से समर्थन मांगा है. तमिलनाडु की पार्टी एआईडीएमके का भी समर्थन बीजेपी को मिल सकता है.
बीजेडी के कुल सांसदों और विधायकों के वोट का मूल्य 37,257 है यानि अब रामनाथ कोविंद के समर्थन में 6 लाख,29,658. इस आकंड़े के साथी ही विपक्ष का प्लान अब फेल होता नजर आ रहा है क्योंकि नीतीश के साथ ही उद्धव ठाकरे को हथियार बनाकर विपक्ष अपनी चाल चलने की तैयारी में था. लेकिन आज नीतीश और कल उद्धव ठाकरे ने विपक्ष की चाल को ही चौपट कर दिया.
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उद्धव ठाकरे तो इस वक्त भी एनडीए में हैं जबकि नीतीश पहले एनडीए में रह चुके हैं. 2012 में प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे तब शिवसेना और नीतीश दोनों ने ही बीजेपी के साथ रहते हुए भी कांग्रेस का साथ दिया था. लेकिन इस बार कांग्रेस के साथ बिहार में सरकार चला रहे नीतीश राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के साथ खड़े हो गये हैं.
भविष्य की राजनीति पर इसका क्या असर पड़ने वाला ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन आज नीतीश कुमार ने जो कहा है कि उसके कई मायने निकाले जा सकते हैं. मंत्री रामकृपाल यादव अभी बीजेपी में हैं जबकि श्याम रजक नीतीश के साथ. इस उदाहरण के साथ ही नीतीश ने राजनीति में इधर उधर आने जाने की गुंजाइश का रास्ता खुला रखा है. वैसे भी समय समय पर नीतीश के बीजेपी के करीब जाने की खबरें उड़ती रहती हैं.
राष्ट्रपति चुनाव के बहाने कांग्रेस की कोशिश 2019 के लिए विपक्षी एकता को मजबूत करने की थी. लेकिन नीतीश की चाल से कांग्रेस की रणनीति चित हो गई है और नीतीश के बीजेपी उम्मीदवार के साथ जाने के साथ ही कांग्रेस का संयुक्त विपक्ष का भी सपना टूट गया.