इंसानी दांतों का इतिहास खोज रहे थे साइंटिस्ट्स, खुला चौंकाने वाला राज

इंसान को जैविक तौर पर विकसित होने में करोड़ों साल लगे थे. वैसे तो इंसान के धरती पर आए कुछ लाख साल ही हुए हैं, लेकिन उसके विकास की प्रक्रिया की नीव जीवन की शुरुआत से ही मानी जाती है. वैज्ञानिक यह भी पता लगाने का प्रयास करते रहते हैं.मानव की हर अंग सबसे पहले किस जीव में विकसित हुआ था और बाद में किस तरह से आकार लेता हुआ आज के हाल में पहुंच सका? विकास के इस क्रम को जान कर वैज्ञानिकों इंसानों के भी कई तरह के रहस्य जानने की कोशिश करते हैं इंसानो के दांतों के इतिहास पर वैज्ञानिकों ने एक रोचक खुलासा किया है. उनका दावा है कि दातों की अंदरूनी परत, जो संवेदनशीलता के जानी जाती है उसका प्राचीन मछलियों में एक अलग ही काम के लिए विकास हुआ था.
चबाने के काम नहीं आते थे दांत?
जी हां पहले ये दांत मछलियों में विकसित हुए और भी उनके वंशजों और उनसे पनपी नई प्रजातियों के आते आते इंसानों तक दातों ने आज का आकार और कार्यशैली अपनाई थी. शिकागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 46.5 करोड़ साल पुराने जीवाश्मों का अध्ययन कर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है. हमारे दांतों की आंतरिक परत पहले प्राचीन मछलियों में एक अलग काम के लिए विकसित हुई थी. दांतों की इस आंतरिक परत को डेंटाइन कहते हैं. उस ऑर्डोविशियन काल में डेंटाइन का उपयोग चबाने के लिए नहीं होता था.
क्या काम था डेंटाइन का?
आपको जान कर अजीब लगेगा, लेकिन डेंटाइन काम मछलियों को पानी में हलचल और बदलाव महसूस करने में मदद करना था. प्राचीन मछलियों के बाहरी कवच में डेंटाइन की परत थी जो दांत नहीं, बल्कि संवेदी उपकरण थे. ये मछलियों को उनके आसपास के खतरे को समझने में मदद करते थे. यह आज के जानवरों की त्वचा या एंटीना की तरह काम करता था.
दोनों तरह के जानवरों में ऐसे गुण
वैज्ञानिकों ने और भी पुराने जीवाश्मों का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि रीढ़ वाले और बिना रीढ़ वाले जानवरों ने अलग अलग यह कवच विकसित किया. उन्होंने पाया कि पुराने समय की मछलियां इस कवच का इस्तेमाल अपनी रक्षा करने के करती थीं. और शोधकर्ताओं ने ऐसा रीढ़ और बिना रीढ़ दोनों तरह के जानवरों में पाया.
दांत कैसे पैदा हुए और पनपे?
यह अध्ययन दांत कैसे पैदा हुए, यह समझने के लिए नया नजरिया देता है. दांतों की पैदाइश के दो सिद्धांत हैं. एक कहता है कि दांत पहले मुंह में बने और फिर कवच पर आए. दूसरा कहता है कि वे पहले बाहरी संवेदी ढांचे थे, जो बाद में दांत बने. नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ यह अध्ययन दूसरे सिद्धांत का समर्थन करता है.