आमरस या आमझोरा नहीं, यहां मिलती है आम की शराब, चाव से पीते हैं लोग, यूं होता है तैयार

गर्मी का मौसम और आम की मिठास हर किसी को लुभाती है. आमरस, आम पन्ना और आमझोरा जैसे पेय तो हर घर में आम हैं, लेकिन क्या आपने कभी आम की शराब के बारे में सुना है? छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र में यह अनोखी और स्वादिष्ट शराब बनाई जाती है, जिसे स्थानीय आदिवासी समुदाय बड़े चाव से पीता है.

अबूझमाड़, बस्तर जिले का एक घना जंगली और आदिवासी क्षेत्र, अपनी इस परंपरागत शराब के लिए जाना जाता है. यह शराब ना केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि इसकी तैयारी की प्रक्रिया भी पूरी तरह प्राकृतिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है.अबूझमाड़ में आम की शराब बनाने की परंपरा माड़िया और गोंड जनजातियों में पीढ़ियों से चली आ रही है. यह शराब कच्चे और पके आमों के मिश्रण से तैयार की जाती है, जिसमें सुल्फी (पाम ट्री से निकलने वाला रस) और महुआ (महुआ के फूलों से बनी शराब) का उपयोग होता है. स्थानीय लोग इसे ‘जंगल का अमृत’ कहते हैं, क्योंकि इसका स्वाद मीठा-खट्टा और ताज़ा होता है.

ऐसे बनती है शराब
आम की शराब बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक और पारंपरिक है. सबसे पहले, कच्चे और पके आमों को जंगल या स्थानीय बगीचों से इकट्ठा किया जाता है. कच्चे आमों का खट्टापन और पके आमों की मिठास इस शराब को एक संतुलित स्वाद देती है. आमों को छीलकर उनका गूदा निकाला जाता है और इसे मिट्टी के घड़ों, लकड़ी के बर्तनों या स्टील के कंटेनरों में डाला जाता है. इसके बाद, इसमें सुल्फी या महुआ का मिश्रण मिलाया जाता है, जो फर्मेंटेशन प्रक्रिया को शुरू करता है. फर्मेंटेशन के लिए मिश्रण को 5 से 15 दिनों तक ठंडी और छायादार जगह पर रखा जाता है. इस दौरान, आमों की प्राकृतिक शर्करा और सुल्फी या महुआ में मौजूद यीस्ट के कारण अल्कोहल बनना शुरू हो जाता है.

अलग-अलग है तरीका
कुछ समुदाय इसमें साल के पत्ते, इमली या अन्य स्थानीय जड़ी-बूटियां भी मिलाते हैं, जो शराब को एक खास सुगंध और स्वाद देती हैं. फर्मेंटेशन पूरा होने के बाद, मिश्रण को छानकर मटकों या बोतलों में भरा जाता है. तैयार शराब हल्के पीले से गुलाबी रंग की होती है और इसका स्वाद हल्का मादक और झनझनाहट भरा होता है. आम की शराब अबूझमाड़ में आदिवासी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसे सामाजिक समारोहों में मेहमानों को परोसा जाता है और यह समुदाय के एकजुट होने का प्रतीक है. हालांकि, यह शराब अवैध शराब की श्रेणी में आती है, क्योंकि छत्तीसगढ़ में शराब के उत्पादन और बिक्री पर सख्त नियम हैं. पुलिस और आबकारी विभाग अक्सर अबूझमाड़ के गांवों में छापेमारी करते हैं, जिससे स्थानीय लोगों को परेशानी होती है. फिर भी, यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आदिवासी समुदाय इसे अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानता है.

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