आजम खान के समर्थन के लिए मुलायम सिंह के मैदान में उतरने बाद भी कम नहीं हो रही मुसीबत, पढ़े पूरी खबर

समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भले ही रामपुर सांसद आजम खान के समर्थन में खुलकर उतरे हों, लेकिन इससे भी उनकी मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है. प्रशासन का शिकंजा आजम खान के खिलाफ लगातार कसता जा रहा है. प्रशासन ने अब आजम खान की जौहर यूनिवर्सिटी से 17.5 एकड़ की जमीन वापस लेने का आदेश दिया है.

चकरोड की जमीन कब्जाने के मामले में एक केस मुरादाबाद कमिश्नर के कोर्ट में चल रहा था.  कोर्ट में सुनवाई पूरी करते हुए कमिश्नर यशवंत राव ने एसडीएम टांडा के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसके तहत चकरोड की जमीन मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी को आवंटित कर दी गई थी. साथ ही कमिश्नर ने तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का आदेश दिया है.

बता दें कि रामपुर के टांडा तहसील के तत्कालीन एसडीएम  रमेश चंद्र शुक्ला ने जौहर यूनिवर्सिटी को 13 सितंबर, 2012 को सामुदायिक उपयोग की 17.5 एकड़ चकरोड की भूमि विनिमय की अनुमति देकर आजम के ट्रस्ट को दे दी थी. इसके बाद इस जमीन को जौहर यूनिवर्सिटी में समाहित कर लिया गया था.

उत्तर प्रदेश समाजवादी सरकार के जाने के बाद सूबे में बीजेपी सरकार सत्ता में आई तो 20 सितंबर 2017 को आकाश सक्सेना नाम के शख्स ने इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की. इसके बाद यह मामला रामपुर के तत्कालीन डीएम शिव सहाय अवस्थी को भेजा गया.

तत्कालीन रामपुर डीएम शिव सहाय अवस्थी ने राजस्व बोर्ड परिषद से आजम खान के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमित मांगी थी. राजस्व बोर्ड परिषद ने केस चलाने की अनुमति दे दी थी. इस आदेश को आजम ने हाई कोर्ट में चैलेंज किया था. हाई कोर्ट ने राजस्व बोर्ड परिषद के फैसले को सही करार देते हुए आजम की याचिका 26 अगस्त, 2018 को खारिज कर दी थी.

कमिश्नर मुरादाबाद ने मामले की सुनवाई करते हुए जौहर यूनिवर्सिटी के बीच स्थित चकरोड और सार्वजनिक भूमि को दूसरी भूमि से बदलने के तत्कालीन एसडीएम रमेश चंद्र शुक्ला के आदेशों को गलत ठहराते हुए निरस्त करने के आदेश दिया. कमिश्नर ने जमीन वापस लेने के साथ ही तत्कालीन लेखपाल के खिलाफ कार्रवाई का भी आदेश दिया, जिसने जांच के बाद जमीन को जौहर यूनिवर्सिटी के नाम आवंटित करने का आदेश दिया था.

मंडल आयुक्त मुरादाबाद के इन आदेशों के बाद जौहर यूनिवर्सिटी में शामिल कर ली गई चकरोड की भूमि एक बार फिर सार्वजनिक उपयोग की भूमि मानी जाएगी और सरकार की संपत्ति होगी. इस चकरोड पर आम किसानों को गुजरने का अधिकार होगा.

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