आइए जानते हैं सारासर बाला जी मंदिर के इतिहास और महत्व के बारे में..

आज यानी गुरुवार 6 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव का त्योहार मनाया जा रहा है। मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। राजस्थान के सालासर बालाजी धाम में तो आज के दिन सबसे ज्यादा श्रद्धालु पहंचते हैं। ऐसा मानते हैं यहां आने से हर मनोकामना होती है पूरी।

हनुमान भक्तों के लिए सालासर बालाजी धाम का बहुत बड़ा महत्व है। जो राजस्‍थान के चुरू ज‌िले में स्थित बहुत ही जाना-माना मंद‌िर है। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में दर्शन और पूजा करने से बजरंग बलि हर मनोकामना पूरी करते हैं और सारे रोग-दोष दूर करते हैं। तो आइए जानते हैं सारासर बाला जी मंदिर के इतिहास और महत्व के बारे में।

भारत में दो बालाजी मंदिर फेमस हैं। एक आंध्रप्रदेश में स्थित तिरूपति बालाजी का मंदिर और दूसरा राजस्थान स्थित सालासर बालाजी का मंदिर। जिसकी मान्यता दूर-दूर तक मशहूर है। सालासर बालाजी मंदिर आकर हनुमान जी का एक अलग ही रूप देखने को मिलेगा। यहां बजरंग बलि गोल चेहरे के साथ दाढ़ी और मूछ में विराजमान हैं। जिसके पीछे की कहानी बड़ी ही रोचक है। हर साल चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। इस दौरान यहां का नजारा महाकुंभ जैसा नजर आता है।

तो इस वजह से हनुमान जी की है दाढ़ी-मूंछ

बताया जाता है कि सालासर बालाजी मंदिर में हनुमानजी ने पहली बार महात्मा मोहनदास महाराज को दाढ़ी मूछों वाले भेष में ही दर्शन दिए थे। तब मोहनदास ने बालाजी को इसी रूप में प्रकट होने की बात कही थी। इसी वजह है कि यहां हनुमानजी की दाढ़ी और मूछों में मूर्ति स्थापित है। 

नारियल के चढ़ावे मात्र से हो जाते हैं प्रसन्न

ऐसा माना जाता है कि सालासर बालाजी जी बस नारियल के चढ़ावे मात्र से खुश हो जाते हैं। लेकिन भक्त गण नारियल के साथ उन्हें ध्वजा भी चढ़ाते हैं। इसी मान्यता की वजह से नारियल यहां श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है। इस मंदिर में हर साल तकरीबन 25 लाख नारियल चढ़ाए जाते हैं। इन नारियल को दोबारा इस्तेमाल न हो सके इसकी भी खास व्यवस्था की गई है। इन्हें खेत में गड्‌ढा खोदकर दबा दिया जाता है। करीब 200 सालों से भक्त मंदिर परिसर में ही लगे खेजड़ी के पेड़ पर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लाल कपड़े में नारियल बांधते आ रहे हैं। रोजाना यहां 5 से 7 हजार नारियल चढ़ाए जाते हैं। मेले के दिनों में इनकी संख्या चार पांच गुना बढ़ जाती है। 

श्री सालासर बालाजी धाम मंदिर का इतिहास 

जब सालासर बालाजी मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की गई थी। सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास मै हनुमान भगवान बड़े ही चमत्कारिक ढंग से यहां प्रकट हुए थे। इसके पीछे की कथा भी बड़ी रोचक है। घटना 1754 की है जब नागपुर जिले में असोटा गांव में एक जाट किसान अपना खेत जोत रहा था। तभी उसका हल किसी नुकीली पथरीली चीज से टकराया। उसने खोदा तो देखा कि यहां एक पत्थर था। उसने पत्थर को अपने अंगोछे से साफ किया तो देखा कि पत्थर पर बालाजी भगवान की छवि बनी है। उसी समय जाट की पत्नी खाना लेकर आई, तो उसने भी मूर्ति को अपनी साड़ी से साफ किया और दोनों दंपत्ति ने पत्थर को साक्षात नमन किया। तब किसान ने बाजरे के चूरमे का पहला भोग बालाजी को लगाया। सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास से लेकर अब तक सालासर बालाजी मंदिर में बाजरे के चूरमे का ही भोग लगाया जाता है।

मूर्ति के प्रकट होने की बात पूरे गांव के साथ गांव के ठाकुर तक पहुंच गई। एक रात असोटा के ठाकुर को सपने में बालाजी ने मूर्ति को सालासर ले जाने के लिए कहा। वहीं दूसरी तरफ सपने में हनुमान भक्त सालासर के महाराज मोहनदास को बताया कि जिस बैलगाड़ी से मूर्ति सालासर जाए, उसे कोई रोके नहीं। जहां बैलगाड़ी अपने आप रूक जाए, वहीं उनकी मूर्ति स्थापित कर दी जाए। सपने में मिले इन आदेशों के बाद भगवान सालासर बालाजी की मूर्ति को वर्तमान स्थान पर ही स्थापित कर दिया गया।

मंदिर दर्शन का समय

सालासर बालाजी मंदिर भक्तों के लिए सुबह 4 बजे खोल दिया जाता है। यहां मंगल आरती सुबह 5 बजे पुजारियों द्वारा की जाती है। सुबह 10:3 बजे राजभोग आरती होती है। लेकिन ये आरती केवल मंगलवार के दिन होती है। इसलिए अगर आप इस आरती में शामिल होना चाहते हैं तो मंगलवार के दिन यहां आएं। शाम को 6 बजे धूप और मेाहनदास जी की आरती होती है। इसके बाद 7:30 बजे बालाजी की आरती और 8:15 पर बाल भोग आरती होती है। यहां आप रात के 10 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। 10 बजे शयन आरती के बाद मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं, जो अगले दिन फिर भक्तों के लिए सुबह 4 बजे खुलते हैं। मंदिर में बालाजी की मूर्ति को बाजरे के चूरमे का खास भोग लगाया जाता है।

कैसे पहुंचे सालासर बालाजी

– सालासर के लिए कोई नियमित उड़ान नहीं है, लेकिन इससे कुछ दूरी पर संगानेर एयरपोर्ट है। जहां से सालासर की दूरी करीब 138 किमी है। सांगानेर से सालासर जाने के लिए आपको बस या टैक्सी मिल जाएगी।

– अगर आप ट्रेन से सालासर बालाजी मंदिर जाना चाहते हैं तो यहां के लिए कोई रेलवे स्टेशन भी नहीं है। इसके लिए आपको तालछापर स्टेशन जाना पड़ेगा, जहां से सालासर की दूरी 26 किमी है। जबकि सीकर से इसकी दूरी 24 किमी है और लक्ष्मणगढ़ से ये मंदिर 30 किमी की दूरी पर बसा हुआ है।

– अगर सालासर बालाजी मंदिर बस से जाना है तो आपको किसी भी शहर से सालासर के लिए सीधी बस मिल जाएंगी, जो सीधे आपको सालसर ही छोड़ेंगी। बस से जयपुर से सालासर बालाजी की दूरी 150 किमी है, जहां पहुंचने के लिए 3.5 घंटे का समय लगता है।

– अगर आप खुद की गाड़ी से जा रहे हैं तो दिल्ली से जयपुर होते हुए सीकर और फिर सालासर वाला रूट अपनाना होगा। 

अगर आप इस धाम में जा रहे हैं, तो आपके रूकने से लेकर खाने-पीने तक की पूरी व्यवस्था यहां मौजूद है। यहां ठहरने के लिए कई ट्रस्ट और धर्मशालाएं बनी हुई हैं।

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