अटल जयंती: अटल जी की वो कविताएं जो आज भी देती हैं जीवन जीने की प्रेरणा, अगर अपने…

देश की राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम हमेशा अमर रहेगा। वो एक ऐसी शख्सियत थे जो अपनी पार्टी के नेताओं के साथ-साथ दूसरी पार्टी के नेताओं के लिए भी एक आदर्श के समान थे। विरोधी भी जनता में अटल बिहारी वाजपेयी की तरह अपनी छवि को निखारना चाहते थे। यदि ये कहा जाए कि अटल जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी नेता थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वो एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। इसके अलावा भाजपा में एक उदार चेहरे के रूप में उनकी पहचान भी थी।
जीवन परिचय
उनका जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनका परिवार शिक्षा से जुड़ा हुआ था। उनके पिता कृष्णबिहारी वाजपेयी हिन्दी व ब्रज भाषा के कवि थे। इस वजह से ये कहा जाता है कि कविता लिखना और सुनाने की कला उनको विरासत में मिली थी। वैसे शुरुआत में उन्होंने अपना करियर एक पत्रकार के रूप में शुरू किया था, पत्रकारिता के दौरान उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
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अटल जी का राजनीतिक जीवन
वाजपेयी जी ने अपने छात्र जीवन के दौरान पहली बार 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। वह राजनीति विज्ञान और लॉ के छात्र थे और कॉलेज के दिनों में ही उनकी रुचि विदेशी मामलों के प्रति बढ़ी। अटल जी 1951 में भारतीय जन संघ में शामिल हो गए थे उसके बाद उन्होंने पत्रकारिता छोड़ दी। आज की भारतीय जनता पार्टी को पहले जन संघ के नाम से ही जाना जाता था। वाजपेयी जी राजनीति के क्षेत्र में लगभग चार दशकों तक सक्रिय रहे। वह लोकसभा में नौ बार और राज्यसभा में दो बार चुने गए जोकि अपने आपमें ही एक कीर्तिमान है। वो 1980 में गठित भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे। उनकी एक प्रेरणादायक कविता:-
‘बाधाएं आती हैं आएं,
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।’
पहली बार प्रधानमंत्री बने
अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। वे 1996 में बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री बने थे। इसके अलावा वो विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में चुने गए। उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पुरस्कार और सम्मान
अटल जी को 2015 में सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत के प्रति निस्वार्थ समर्पण और समाज की सेवा के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया। 1994 में उन्हें भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ चुना गया। इनके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार, सम्मान और उपाधियों से नवाजा गया।
परमाणु परीक्षण
अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में ही भारत ने साल 1998 में राजस्थान के पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण की एक खास बात ये थी कि इसकी जानकारी अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआइए को भी नहीं लग पाई थी। अटल जी नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लंबे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी रहे। अटल ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।
खाने-पीने के शौकीन
वाजपेयी खाने-पीने के शौकीन थे। आगरा में वाजपेयी-मुशर्रफ शिखर वार्ता का आयोजन हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री अपनी पसंद-नापसंद किसी पर थोपते नहीं थे, बस शर्त रखी कि खाने का जायका नायाब होना चाहिए। वह कभी नहीं छिपाते थे कि वह मछली-मांस चाव से खाते हैं। दक्षिण दिल्ली में ग्रेटर कैलाश-2 में उनका प्रिय चीनी रेस्तरां था जहां वह प्रधानमंत्री बनने से पहले अकसर दिख जाते थे।
पुराने भोपाल में मदीना के मालिक बड़े मियां शान से बताते थे कि वह वाजपेयी जी का पसंदीदा मुर्ग मुसल्लम पैक करवा कर दिल्ली पहुंचवाया करते थे। वो मिठाइयों के गजब के शौकीन थे। उनके पुराने मित्र ठिठोली करते कि ठंडाई छानने के बाद भूख खुलना स्वाभाविक है और मीठा खाते रहने का मन करने लगता है।
किडनी में हुआ था संक्रमण, इस वजह से हुई मौत
अटल बिहारी वाजपेयी जी का किडनी में संक्रमण हो गया था। इसके अलावा कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के चलते अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया था। वो एक सुलझे हुए और सभी की पसंद के राजनेता थे।