युधिष्ठिर का भीष्म पितामह से प्रश्न, संभोग में ज्यादा आनंद कौन लेता है स्त्री या पुरूष? जानिए भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को क्या? दिया उत्तर

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार एक बार युधिष्ठिर तीरों की शय्या पर लेटे अपने पितामह भीष्म के पास जाते हैं और भीष्म पितामह से पूछते हैं कि, “हे पितामह! क्या आप मुझे एक दुविधा से निकाल सकते हैं? क्या आप मुझे बता सकते हैं कि संभोग के दौरान ज्यादा आनंद कौन महसूस करता है? एक स्त्री या फिर पुरुष? युधिष्ठिर के इस सवाल को सुनकर भीष्म पितामाह ने उनको एक कथा सुनाई. इस सवाल का जवाब जानने के लिए आप भी जानिए क्या थी वो कथा?युधिष्ठिर

कथा की शुरुआत में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि, “इस सवाल के जवाब में मैं तुम्हें आज राजा भंग स्वाना और शकरा की कहानी सुनाता हूं. तो सुनो, बहुत समय पहले की बात है एक राजा भंग स्वाना हुआ करता था. ये राजा बहुत ही न्यायप्रिय और साफ दिल का था, लेकिन उसके घर कोई पुत्र नहीं था. ऐसे में एक बालक की इच्छा में राजा ने एक अग्नि अनुष्ठान किया. कहा जाता है कि सिर्फ अग्नि की स्तुति करने के कारण देवराज इंद्र राजा से क्रोधित हो गए और उन्होंने  राजा को किसी न किसी तरह से बर्बाद करने की योजना बनानी शुरू कर दी, लेकिन राजा इतना न्यायप्रिय था कि उससे कोई गलती होती ही नहीं थी.

अब इससे इंद्र का गुस्सा और बढ़ गया लेकिन 1 दिन उन्हें आखिरकार ऐसा मौका मिल ही गया. जब राजा जंगल में शिकार करने के लिए गए तभी इंद्र ने सोचा कि राजा को सबक सिखाने का यह मौका सबसे अच्छा है. अब इंद्र ने उन्हें अपनी शक्ति से सम्मोहित कर दिया जिसके कारण राजा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था ना ही उन्हें कुछ याद था. सम्मोहन के कारण अब राजा को ना ही अपनी सेना दिखाई दे रही थी और ना ही कुछ और. अब बस राजा एक दिशा में चले जा रहे थे कि तभी उन्हें एक नदी दिखाई दी जहाँ जाकर राजा ने उस नदी में पहले अपने घोड़े को पानी पिलाया और फिर खुद पानी पिया.

..लेकिन जैसे ही राजा ने उस नदी का पानी पिया राजा धीरे-धीरे बदलने लगा और वह स्त्री रूप में आ गया. अब राजा स्त्री के रूप में आने के बाद ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा और शर्मसार हो गया. अब राजा सोचने लगा कि मैं अब अपने राज्य में कैसे जाऊंगा? कैसे अपने 100 पुत्रों को और अपनी पत्नियों को मुंह दिखाऊंगा? तब राजा विलाप करते हुए अपने राज्य पहुंचा उसने अपनी सभी पत्नियों को अपने पुत्रों को और अपने मंत्रियों को बुलाकर यह कहा कि अब मैं इस राज्य का राज्य करने लायक नहीं हूं, इसलिए आप इस राज्य को संभालो.

इतना सब कहने के बाद राजा वहां से जंगल की ओर चल दिया और जब राजा स्त्री रूप में जंगल पहुंचा तो उसने एक ऋषि के साथ अपना घर बसा लिया. अब उस ऋषि और स्त्री रुपी राजा के कई पुत्र उत्पन्न हुए. तब राजा ने उन पुत्रों को लेकर अपने राज्य पहुंचा और कहा कि यह मेरे वह पुत्र है जो मुझे स्त्री रूप में प्राप्त हुये हैं और अब आप सभी मिलकर इस राज्य को अच्छे से संभालना. राजा की इस बात को देखकर राजा इंद्र का क्रोध और बढ़ गया क्योंकि उसने सोचा कि राजा पर मेरे श्राप का कोई असर नहीं हुआ वह तो स्त्री रूप में और ज्यादा खुश लग रहा है तब इंद्रा ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और उसके राज्य में आ गया और सभी भाइयों को भड़का कर एक दूसरे के खिलाफ करवा दिया तब सभी भाइयों ने एक दूसरे की हत्या कर दी.

अब जब स्त्री रुपी भंग स्वाना को यह पता चला कि उसके सारे पुत्रों की मौत हो गयी है तब वह रो- रो कर विलाप करने लगी. उस वक़्त देवराज इंद्र ब्राह्मण के रूप में स्त्री रुपी राजा के सामने प्रकट हुए और उनसे पूछे कि तुम क्यों रो रही हो? जवाब में राजा ने बताया कि मेरे सारे पुत्रों की हत्या हो गयी है. राजा की ऐसी बात सुनकर इंद्र ने अपना असली रूप स्त्री रुपी राजा के सामने दिखाया और उसने कहा कि तुमने सिर्फ अग्नि का अनुष्ठान किया और मेरा अनादर किया इसलिए तुम्हें यह कष्ट भोगने पड़ रहे हैं. ऐसा सुनकर भंग स्वाना इंद्रा के चरणों में गिर गई और उनसे अपनी अनजाने में की गई भूल की क्षमा मांगी. राजा का ऐसा हाल देखकर इंद्र को भंग स्वाना पर दया आई और उसने उसके पुत्रों को जीवित होने का वरदान दे दिया लेकिन इंद्र ने इसके लिए राजा के सामने एक शर्त रखी कि मैं तुम्हारे पुत्रो को जीवित कर सकता हूं अब तुम बताओ कि तुम किस पुत्र को जीवित कराना चाहती हो?

इंद्र की बात सुनकर भंग स्वाना ने कहा कि मैं उन पुत्रों को जीवित करना चाहती हूं जो मुझे स्त्री रूप में प्राप्त हुए हैं. राजा का ये जवाब सुनकर इंद्र ने उससे पूछा कि तुम ऐसा क्यों करना चाहती हो इसका कारण बताओ. तब स्त्री रुपी भंग स्वाना ने बताया कि, “हे इंद्र! एक स्त्री का प्रेम पुरुष के प्रेम से कई गुना अधिक होता है इसलिए मैं अपने उन बच्चों को जीवित करना चाहती हूं जो मैंने स्त्री रुप में प्राप्त किए हैं. आप कृपया करके उन बच्चों को जीवित कर दें.” राजा की इस बात को सुनकर इंद्र को दया आ गई और उसने उसके सभी बच्चों को जीवन दान दे दिया जो उसने स्त्री रूप में प्राप्त किये थे और उन्हें भी और जो उसने पुरुष रुप में प्राप्त करे थे वह भी. इतना ही नहीं अब इंद्र ने आगे भंग स्वाना का श्राप भी हटा कर उससे कहा कि मैं तुम्हारे ऊपर जो श्राप दिया है उसको वापस लेना चाहता हूं और मैं चाहता हूं कि तुम्हें तुम्हारा पुरुषत्व दे दिया जाए.” लेकिन तब भंग स्वाना ने कहा कि मैं स्त्री ही रहना चाहता हूं. यह सुनकर इंद्र की उत्सुकता और बढ़ गई और वह जानने लगे कि आखिर तुम स्त्री क्यों रहना चाहती हो तुम वापस पुरुष बन कर अपने राज्य में नहीं जाना चाहते हो तुम अपने राज्य को नहीं संभाल ना चाहते हो. तब स्त्री रुपी भंग स्वाना ने कहा कि, “हे इंद्र! मैंने स्त्री रूप में यह जाना कि संभोग के समय स्त्री को पुरुष से कई गुना ज्यादा आनंद, तृप्ति और सुख की प्राप्ति होती है इसलिए मैं इस रूप में ही रहना चाहती हूं.” तब इंद्र ने उसको वरदान दिया कि तुम स्त्री रुप में ही रहोगे.

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इसके बाद पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि युधिष्ठिर इससे यह पता चलता है कि संभोग के समय स्त्री को पुरुष से कई गुना आनंद ,सुख और संतुष्टि की प्राप्ति होती है।

 
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