क्यों भगवान शिव जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से हो जाते हैं शीघ्र प्रसन्न?

सनातन धर्म में भगवान शिव को सबसे उच्च स्थान प्राप्त है। सप्ताह के सभी दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित है। धार्मिक मत है कि विधिपूर्वक भगवान शिव और मां लक्ष्मी की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है और सोमवार व्रत करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशियों का आगमन होता है। शिवलिंग के पूजन से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

इस तरह हुई शिवलिंग की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के मुताबिक, चिरकाल में एक बार जगत के पालनहार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच श्रेष्ठता को लेकर द्वंद हो गया है। वजह यह थी कि दोनों में से कौन ज्यादा शक्तिशाली है।

इस दौरान आसमान में एक चमकीला पत्थर दिखा और आकाशवाणी हुई कि जो इंसान इस पत्थर का अंत ढूंढ निकालेगा। वह बेहद शक्तिशाली माना जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि वह पत्थर शिवलिंग ही था।

इसके पश्चात श्री हरि और ब्रह्मा जी उस पत्थर का अंत ढूंढने का प्रयास करने लगे, लेकिन दोनों को ही पत्थर का अंत नहीं मिला। भगवान विष्णु ने थककर हार स्वीकार की, लेकिन ब्रह्मा जी ने सोचा कि यदि मैं भी इस कार्य के लिए हार मान लूंगा, तो विष्णु अधिक शक्तिशाली कहलाएगा। इस वजह से ब्रह्मा जी ने झूठे में बोल दिया कि उनको पत्थर का अंत मिल गया है। इस दौरान एक बार फिर से आकाशवाणी हुई कि मैं शिवलिंग हूं और मेरा न कोई अंत है, न ही शुरुआत और उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए। धार्मिक मत है कि शिवलिंग का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से जातक की सभी मुरादें पूरी होती हैं और महादेव प्रसन्न होते हैं। यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।

क्या है शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ
शिवलिंग दो शब्दों से बना है। शिव और लिंग। ‘शिव’ का अर्थ है ‘परम कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ होता है ‘सृजन’। लिंग शब्द का इस्तेमाल प्रयोग चिन्ह या प्रतीक के लिए होता है। इस तरह शिवलिंग का अर्थ शिव का प्रतीक है।

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