श्रीकृष्ण के रहते हुए अपना अधिकार पाने के लिए पांडवों को क्यों करना पड़ा था संघर्ष
आप सभी ने कृष्णा जी से जुडी कई कथा और कहानियां सुनी होंगी। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं महाभारत के बारे में। क्या आपने कभी सोचा है महाभारत काल में तो भगवान स्वयं ही पांडवों के मित्र थे, फिर पांडवों को अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए इतना संघर्ष क्यों करना पड़ा? अगर आप इस बात को सोचते हैं और आपको इसके बारे में नहीं पता है तो आइए, ऐसे सवालों के लिए हम आपको बताते हैं एक प्रसंग। इसमें स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा अपने मित्र उद्धव से कुछ बातें कही गई थी जो रोचक थी।
उद्धव गीता में लिखा हुआ है- उद्धव भगवान श्रीकृष्ण से सवाल पूछते हैं कि कृष्ण आप तो पांडवों के सखा थे, आप हर कष्ट और समस्या में उनका साथ देने की बात कहते थे, फिर आपने क्यों उन्हें द्रुत क्रीणा (जुआ) में हारने दिया? क्यों आपने द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित हो जाने दिया? कहते हैं कि आपने द्रौपदी का चीरहरण नहीं होने दिया, एक स्त्री का भरी सभा में इतना अपमान होने पर आपने क्या बचाया कृष्ण? इतना कहते हुए उद्धव का गला रुंध गया। अपने मित्र उद्धव की बात सुनकर कान्हा मुस्कुराए और बोले, उद्धव मैं सचमुच पांडवों के साथ था।
मैंने सदैव उनका हित करना चाहा। मैं सदैव अपने हर भक्त के साथ रहता हूं। मेरी उपस्थिति पर संदेह मत करो और ना ही मेरी नीयत पर। उद्धव! युधिष्ठिर और दुर्योधन में सिर्फ एक ही अंतर था, जिस कारण गलत राह पर होते हुए भी दुर्योधन जीता और युधिष्ठिर हार गए। उद्धव ने कहा, कृष्ण अगर आप युधिष्ठिर के साथ थे तो उन्हें भला किसी और चीज की क्या आवश्यकता थी? और आखिर वह अंतर क्या था? इस पर कान्हा कहते हैं, उद्धव वह अंतर विवेक का अंतर था।
दुर्योधन को द्रुत क्रीणा नहीं आती थी लेकिन उसने अपने विवेक का उपयोग किया और कहा कि उसकी तरफ से शकुनी यह खेल खेलेंगे। यह खेल पांडवों को भी नहीं आता था लेकिन वे स्वयं खेलने लगे। सोचो, अगर युधिष्ठिर अपने विवेक का उपयोग करते हुए कहते कि उनकी तरफ से मैं यह खेल खेलूंगा… तो पासे शकुनी के अनुसार आते या मेरे अनुसार? उद्धव श्रीकृष्ण से कहते हैं कि चलिए मान लिया पांडवों ने आपको क्रीणा में सम्मिलित नहीं किया तो क्या आप अपनी शक्ति से पासे नहीं पलट सकते थे? इस पर कान्हा कहते हैं, उद्धव मैं बिल्कुल ऐसा कर सकता था। लेकिन मैं करता कैसे? पांडवों ने मुझे अपनी प्रार्थना में बांध लिया था। वे द्रुत क्रीणा मुझसे छिपकर खेलना चाहते थे। उन्हें लगा कि मुझे पता नहीं चलेगा कि वे लोग अंदर क्या कर रहे हैं।
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उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना में बांधकर कहा, जब तक आपको पुकारा ना जाए आप अंदर नहीं आएंगे। अब बताओ मैं अंदर कैसे आता?अब उद्धव आगे कहते है, कृष्ण हमने माना आप अंदर नहीं आ सकते थे लेकिन जिस समय द्रौपदी को अपमानित करते हुए सभा में लाया जा रहा था और फिर भरी सभा में उसका शील भंग किया गया तब आपने अपनी शक्ति क्यों नहीं दिखाई? इस पर कान्हा ने कहा, उद्धव द्रौपदी ने भी तो मुझे नहीं पुकारा था! जब उसे अपमानित करते हुए उसके कक्ष से सभा तक लाया गया तो वह अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ जूझती रही लेकिन उसने भी मुझे भुला दिया था। जब उसे लगा कि अब बात उसके वश से बाहर है तब सभा के भीतर उनसे मुझे पुकारा और मैं तुरंत वहां उपस्थित हो गया।
उद्धव अगला सवाल पूछते हैं तो कृष्ण ये बताइए कि आपने पांडवों को गलती करने से क्यों नहीं रोका? माना प्रार्थना में बंधने के कारण आप उन्हें जिता नहीं सकते थे तो आपने उन्हें गलतियां करने से क्यों नहीं रोका? इस पर कान्हा कहते हैं, उद्धव मैं भी कुछ नियमों में बंधा हूं। जो अपने विवेक का उपयोग करता है, वही जीतता है। द्रुत क्रीणा के दौरान भी पांडव अपने भाग्य को कोसते रहे, एक बार भी याद करते कि कृष्ण सहायता करो और तब मैं उनकी सहायता नहीं करता तो मेरी गलती होती उद्धव। उद्धव श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि अगर विवेक ही सबकुछ है तो फिर आप हर व्यक्ति के साथ केवल उसके कर्मों का लेखा-जोखा रखने के लिए रहते हैं?
क्या अपने भक्त को गलत कार्य करने से रोकना आपका दायित्व नहीं? इस पर कान्हा कहते हैं ‘उद्धव, जिस समय सभी लोग कोई भी कार्य करते समय इस बात का ध्यान रखेंगे कि मैं उनके साथ हूं और सब देख रहा हूं। तो तुम ही बताओ उद्धव, यह जानकर वे कोई गलत कार्य कर पाएंगा क्या? मनुष्य गलत कार्य करते तभी हैं, जब दुनियादारी में खोकर वे मुझे भुला देते हैं और मेरी उपस्थिति को अनदेखा कर देते हैं।’