क्यों होता है गेम एडिक्शन और कैसे बनता है बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट…

 आज के डिजिटल युग में हर कोई अपना ज्यादा से ज्यादा समय टेक्नोलॉजी और गेजेट्स के बीच ही बिताता है। बच्चे हो या बड़े सभी अपने साथ कोई न कोई डिजिटल डिवाइस लिए नजर आते हैं। हालांकि, हर वक्त इन डिवाइस के बीच रहने से कई तरह की समस्याएं भी होने लगती हैं। खासकर बच्चों को इन दिनों मोबाइल और गेम्स की आदत सी लग गई है। अपने काम में बिजी पेरेंट्स अक्सर बच्चों का मन बहलाने के लिए उन्हें मोबाइल या कोई गेम पकड़ा देते हैं, जिससे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। गेमिंग एडिक्शन इन्हीं समस्याओं में से एक है।

इन दिनों कई बच्चे गेमिंग एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं। गेमिंग एडिक्शन एक बहुत ही गंभीर समस्या बन के उभर रहा है। खासतौर से विकसित होते बच्चों के दिमाग के लिए गेमिंग एडिक्शन बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। ये ड्रग एडिक्शन की तरह बच्चों के ब्रेन से खेलने के बाद उनके शरीर से खिलवाड़ करता है। आइए जानते हैं इससे बचने के कुछ उपाय-

क्यों होता है गेम एडिक्शन ?

गेम हर एक टास्क के बाद नए टास्क और चैलेंज को स्वीकार करने की चुनौती देता है जिससे मानव मानसिकता अपनी क्षमता साबित करने के लिए अगले चरण तक जाती रहती है, जब तक उसे विजेता घोषित न कर दिया जाए। इससे मिलने वाली खुशी को महसूस करने के लिए ये मामूली से दिखने वाले गेम्स एडिक्शन का रूप ले लेते हैं। बच्चे आसान बोरिंग गेम्स खेलना नहीं चाहते, वे चुनौतियां स्वीकार कर के उपलब्धि हासिल करने वाले गेम पर ज्यादा फोकस करते हैं, जिससे आसानी से एडिक्शन हो जाता है।

कम समय के लिए मिलने वाली वर्चुअल उपलब्धि उन्हें किसी मिशन का हिस्सा बनने जैसा महसूस कराती है, जिसे वे उत्सुकता से खेलते रहते हैं और ये एडिक्शन में तब्दील हो जाता है।

गेम एडिक्शन का असर

बच्चों से जब गेम को बंद करने को कहा जाता है, तो उन्हें वास्तविक दुनिया बड़ी सामान्य और बोरिंग लगने लगती है और कोई भी काम उनके गेम जैसा दिलचस्प नहीं लगता है, जिससे वे चिड़चिड़ा व्यवहार करना शुरू करते हैं। फिर दोबारा गेम मिलने पर वे सामान्य हो जाते हैं और एक हीरो जैसा महसूस करते हैं, जो दुनिया को बचाने निकला हो। फिर वे जितना ज्यादा गेम खेलते हैं, उतना ही अधिक कठिन इस एडिक्शन से निकलना होते जाता है।

गेम एडिक्शन से बच्चों को कैसे बचाएं?

फेक या नकली चैलेंज फेस करने की जगह बच्चों को असल जीवन में हीरो बनने की सीख दें। उन्हें असल जीवन में ऐसे चैलेंज दें, जिसमें वे खुद को व्यस्त रख सकें और गेमिंग जैसे उपलब्धि वाले अनुभव उन्हें असलियत में हों। इससे उनके पर्सनेलिटी में भी सुधार होगा, वे असल जीवन की चुनौतियों को समझेंगे और उन्हें हैंडल करना सीखेंगे।

बच्चे जिस भी एप पर गेम खेलता है, उसे ओटीपी या पासवर्ड से कंट्रोल करें, जिसे बच्चा आसानी से न खोल पाए।

अधिकतम एक से दो घंटे की गेम लिमिट तय करें और इसमें किसी भी प्रकार का संशोधन बर्दाश्त न करने का सख्त नियम बनाएं।

गेम खेलने की एज लिमिट खुद समझें और तभी डाउनलोड करने की परमिशन दें।

न्यूडिटी, ब्लडशेड, हिंसक और आक्रामक गेम्स कतई न खेलने दें।

बच्चे को आउटडोर गेम्स, सनलाइट एक्सपोजर और एक्सरसाइज के लिए प्रेरित करें, जिनसे वो स्वस्थ और मजबूत बनें और इतना व्यस्त रहें कि गेम खेलने की उन्हें फुरसत ही न मिले।

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