कौन हैं तारामंडल के सप्तर्षि? ब्रह्मा जी से है इनका संबंध

सनातन धर्म में हर किसी का विशेष स्थान है। वैसे ही ऋषि-मुनियों को भी पूजनीय माना गया है। वहीं, ऋषि-मुनियों में सप्तर्षियों को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। ऐसा कहा जाता है कि वे आज भी ब्रम्हांड के संचालन का कार्य कर रहे हैं। सप्तर्षियों को ईश्वर के भाव से पूजा जाता है, तो चलिए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं कि आखिर कौन हैं सप्तर्षि (Saptarshi) और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई?

कैसे हुआ सप्तर्षियों का जन्म?
वेदों में सप्तर्षियों की श्रेणी में वशिष्ठ, विश्वामित्र, कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, ऋषि आदि ऋषियों को रखा गया है। पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा देव के मस्तिष्क से हुई है। इसलिए इन्हें ज्ञान, धर्म, मोक्ष, ज्योतिष और योग का स्वामी माना जाता है।

पुराणों और ग्रंथों सप्तर्षियों की महिमा बखान मिलता है, जिससे यह भी पता चलता है कि ब्रह्मा जी ने संसार में धर्म की स्थापना करने और सनातन संस्कृति में संतुलन बनाए रखने के लिए सप्तर्षियों की उत्पत्ति की थी। इसके साथ ही भगवान शंकर ने इन्हें सभी प्रकार दिव्य ज्ञान से अवगत कराया था।

क्या है सप्तर्षियों का कार्य?
इन महान ऋषियों को सप्तर्षि तारामंडल से भी जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये आकाश में सात तारों के रूप में आज भी मौजूद हैं। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि ये आगे चलकर तारामंडल का हिस्सा बने, जिसका जिक्र वेदों और पुराणों में मिलता है। जानकारी के लिए बता दें, सप्तर्षियों का कार्य धर्म और मर्यादा की रक्षा करना और ब्रह्मांड के सभी कार्यों का संचालन सही तरीके से होने देना है। लोगों का यह मानना है कि वे अपनी योग और तपस्या से संसार में सुख-शांति बनाए रखते हैं।

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