क्या सौर ऊर्जा व विद्युत उर्जा आदि से चलते थे विमान !

SMS के वैज्ञानिक प्रोफ. भरत राज सिंह ने महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित विमान शास्त्र के चौंकाने वाले प्रमाण दिये

लखनऊ : स्कूल ओफ मैनेजमेंट साइंसेज (SMS) लखनऊ के वैदिक विज्ञान केंद्र के अध्ययन के माध्यम से प्रोफ. भरत राज सिह ने महर्षि भारद्वाज जो प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक थे, के विषय में चौंकाने वाली जानकारी दी है। महर्षि भारद्वाज को भारतीय विमान शास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने यंत्र सर्वस्व नामक ग्रंथ लिखा था, जिसका एक भाग विमान शास्त्र है। उसमें सभी प्रकार के विमानों को बनाने और यंत्र को बनाने और चलाने की विधि का विस्तारित रूप से वर्णन किया गया है।

आज विमान टेक्नोलॉजी बहुत ही विकसित हुई है, पर भारत में यही टेक्नोलॉजी (विमान-शास्त्र (चार से पांच हजार साल या महाभारत काल से भी पूर्व इसकी रचना और विकास हुआ था। इसके बारे मे अब बहुत से विद्वतगणॉ का और वैज्ञानिको का विश्वास बैठ चुका है, जिनके उदाहरण और प्रमाण भी अधिक संख्या में मिल रहे है, और जिस पर नासा जैसी स्पेस एजेंसी भी भारत के पौराणिक ग्रंथो की खोज जुट गया है। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओ ने प्राचीन पाण्डुलिपि की खोज की, उनको जो ग्रंथ मिले उनके आधार पर ”विमान शास्त्र” की उपलब्ध जानकारी मिली । इस ग्रंथ की रचना महान भारतीय आचार्य ”महर्षि भारद्वाज” ने की थी महर्षि भारद्वाज हमारे उन प्राचीन वैज्ञानिको मे से एक महान वैज्ञानिक थे, और उनके पास विज्ञान की महान दृष्टि थी।

डा. भरत राज सिह, महानिदेशक, वैदिक विज्ञान केंद्र, SMS, लखनऊ

“विमान-शास्त्र” ग्रंथ के आठ अध्यायो मे विमान बनाने की प्रक्रिया है और इन आठ अध्यायो मे 100 खण्ड है। जिसमे विमान बनाने के टेक्नोलॉजी का विस्तारित रूप से वर्णन किया है। महर्षि भारद्वाज ने इसमें 500 प्रकार के विमान बनाने के विधि का उल्लेख किया है, यानी 500 सिद्धांत से विमान बनाने की प्रक्रिया और चौका देने वाली बात ये है की, यही 500 प्रकार के विमान, 32-तरीके से बनाये जा सकते है, जिसका भी वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। वेदों में विमान संबंधी उल्लेख अनेक स्थलों पर मिलते है. वाल्मीकि रामायण में पुष्पक विमान, ऋगवेद में कम से कम 100 से 200 बार विमानों का उल्लेख किया गया है। महर्षि भारद्वाज ने विमान की परिभाषा की थी कि पक्षियों के समान वेग होने के कारण इसे विमान कहते है।

विमान शास्त्र ग्रंथ का गहन अध्ययन करने के बाद आठ प्रकार के विमानों का पता चला

  1. शक्त्युद्गम: बिजली से चलने वाला विमान।
  2. भूत वाह: अग्नि से ,जल से और वायु से चलने वाला विमान।
  3. धुमयान: गैस से चलने वाला विमान।
  4. शीकोद्गम: तेल से या पारे से चलने वाला विमान।
  5. अंश वाह: सूर्य की किरणों से चलने वाला विमान।
  6. तारा मुख: चुंबक से चलने वाला विमान।
  7. मणि वाह: चंद्रकांत ,सूर्यकान्त मनियोसे चलने वाला।
  8. मरुत्सखा: केवल वायु से चलने वाला विमान।

वैसे तो विमान की रचना 56-प्रकार की गई थी, मगर इनमे से कुछ प्रमुख आकार के निम्नलिखित रूप में वर्णित थे

  1. रुकमा विमान: नोकीले आकार के और सोने के रंग के थे।
  2. सुंदर विमान: रॉकेट की आकार वाले और रजत उक्त थे।
  3. त्रिपुर विमान: तीन मंजिला वाले।
  4. शकुन विमान: पक्षी के जैसे आकार वाले।

इस वैमानिक शास्त्र ग्रंथ में विमान चालको का प्रशिक्षण, उड़ान मार्ग, पार्ट्स, उपकरण, चालक और यात्रीओ के परिधान और भोजन किस प्रकार का होना चाहिये इस बारे मे भी विस्तारित रूप से लिखा गया है, और धातु को साफ करने की प्रक्रिया उस के लिए प्रयोग करने वाले द्रव्य और रसायन, विमान में प्रयोग करने वाले तेल तापमान इन सभी विषयों पर लिखा गया है। इसके विद्युत और सौर ऊर्जा से चलने के प्रमाण मिलते हैं । यही नही इनमे उपयोग आने वाले सात प्रकार के इंजनों का भी वर्णन किया गया है। यह विमान आज के विमानों की तरह सीधे, ऊची उड़ान भरने तथा उतरने, आगे पीछे तिरछा चलने में भी सक्षम थे। उन विमानों में आज के विमानों की तरह 32- प्रकार के आधुनिक यंत्र लगाए गए थे और इनका कार्य क्या है इसका भी वर्णन किया है। खोजकर्ताओं ने इस प्रकार के बहुत सारे सबूतो और प्रमाणों की खोज भी की है, ऐसा लगता है की आज हम उस टेक्नोलॉजी की खोज में लगे हुए है, जो हज़ारों साल पहले हमारे भारत में मौजूद थी।

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