’सोशल मीडिया’ बना चुनाव का वर्चुअल अखाड़ा
अपनी रैलियों, शक्ति प्रदर्शनों और बड़े पैमाने पर रोड शो के लिए जाना जाने वाला चुनाव, राजनीतिक दलों के लिए अब सोशल मीडिया ही माई-बाप बन गया है। पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान के बाद सड़क पर दिखने वाली हर तरह की शक्ति प्रदर्शन पर रोक लगने के बाद राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी चुनावी रणनीति वर्चुअल बनाने के लिए मजबूर हो गयी है। चुनाव आयोग के इस फैसले का विरोध करने वाले गैर भाजपा दलों के नेता, कार्यकर्ता व समर्थक भी अब आधी-अधूरी तैयारियों के साथ अब जोरों-शोरों से वर्चुअल प्रचार-प्रसार में जुट गए है। बाजी किसके हाथ लगेगी ये तो दस मार्च को पता चलेगा, लेकिन डिजिटल क्रांति में सबसे आगे रहने वाली बीजेपी अपने प्रतिद्वंदियों को अभी से पछाड़ती दिख रही है। बीजेपी के समर्थक हो या कार्यकर्ता जिसे देखों वहीं फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर पार्टी का प्रचार करने और अपने नेता के वीडियों भाषण व संबोधन वायरल करने में व्यस्त हो गया है। इसकी बड़ी वजह यह है कि वह पहले से ही यह सब करता रहा है, जबकि बाकी के दल अभी इसके ककहरा सीख रहे है या इस चुनौती से निपटने की रणनीति बना रहे है। चुनाव तिथि ऐलान के तुरंत बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव का तिलमिलाना इस बात का संकेत है कि वर्चअल मीटिंग या सभा के लिए वे पूर्णरुप से तैयार नहीं है। कुछ ऐसा ही पेशोपेश व कसक अन्य दलों के नेताओं में भी दिख रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या इस चुनाव में सोशल मीडिया ही वर्चुअल अखाड़ा बन गया है?
–सुरेश गांधी
जी हां, देश में अभी तक हमने आमतौर पर मोबाइल के जरिए रैली को संबोधित करते हुए देखा था, लेकिन नए भारत में अब रैलियों, रोड शो का ताना-बाना भी बदल रहा है। इसकी बड़ी वजह कोरोना संक्रमण से फैली महामारी ही क्यों न हो, लेकिन भारतीय राजनीति में अब संचार क्रांति की शुरूआत हो चुकी है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए चुनाव आयोग ने भी पांच राज्यों में होने वाले तारीखों का ऐलान करते हुए पार्टियों के रैली, रोड शो सहित भीड़भाड़ वाली सभी गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया है। परिणाम यह है कि नानुकुर करते हुए अब दलों के नेता भी आयोग के इस फैसले को मानने को बाध्य हो गए है और पारंपरिक प्रचार अभियान की जगह वर्चुअल रैली, मीटिंग की तैयारी में लग गए है। आरोप प्रत्यारोप भी ट्विटर, फेसबुक व वाट्स्प से दिये जा रहे है। डिजिटल मीडिया के जरिए मतदाताओं तक ‘मन की बात’ पहुंचाई जा रही है। नेता जी भी डिजिटल कैंपेनिंग कर रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि इस वर्चुअल चुनाव में एक अनुमान के मुताबिक एक लाख से अधिक युवाओं को भी नौकरी मिल गयी है। एंकर से आईटी मैनेजर तक के पोस्ट पर युवाओं को काम मिलने लगा है। दलों की सारी कोशिश मतदाताओं तक नेताजी के ‘मन की बात’ पहुंचाने की है। दरअसल अब आने वाले समय में कभी शायद ही सड़क पर किसी पार्टी का कार्यकर्ता हाथ में झंडा या अपनी पार्टी का बैनर-पोस्टर लगाते दिखे, क्योंकि अब वह फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर ही अपनी पार्टी का प्रचार करने और उसकी घोषणा पत्र वायरल करने में ही व्यस्त होगा। ठीक इसी तरह उस पार्टी के उम्मीदवार अपने चुनाव मुख्यालय में लैपटॉप पर बैठकर ट्विटर और फेसबुक पर नजर रखेगा। मतलब साफ है डिजीटल प्लेटफार्म आज के समय में लोगों पर खासा असर कर रहा है। जिस राजनीतिक दल के पास जितने ज्यादा संसाधन होगें वही दल इसमें सबसे आगे रहेगा। बजट भी इसमें मुख्य रोल अदा करेगा। बीजेपी फिलाहाल डिजीटल प्लेटफार्म पर सबसे आगे है।
दरअसल, कोरोना वायरस ने दुनिया के ज्यादातर हिस्सों को वर्चुअल बना दिया है। जाहिर है इससे इलेक्शन भी अछूता नहीं रह सकता। मतलब साफ नेताओं की ऐतिहासिक रैलियों की जगह वर्चुअल और डिजिटल तौर-तरीकों से होगी। रैलियों वाले मैदान खाली रहेंगे। टैंट हाउस से लेकर झंडे, बैनर, बैज आदि बनाने वालों के पास सिर्फ एक-चैथाई काम बचा है। यह अलग बात है कि आम शहरी आदमी व ग्रामीण मतदाताओं को वर्चुअल और डिजिटल की पूरी परिभाषा भी मालूम नहीं है। मगर सभी जान गए हैं कि यह मामला स्मार्ट फोन से जुड़ा है। जिन उम्मीदवारों के पास संसाधन हैं, वे आयोग की नजरों से छुप-छुपाके अपने समर्थकों को फोन भी बांट रहे हैं। हालांकि भाजपा इसके लिए पहले से ही तैयार बैठी है और कई वर्चुल रैली, मीटिंग, सभा करती रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह तो अक्सर ही अपने कार्यकर्ताओं से वर्चुअल मीटिंग करते रहते है।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि देश में वर्चुअल रैलियों की शुरूआत का श्रेय भाजपा को ही जाता है। भाजपा ने ही देश की राजनीति में वर्चुअल रैलियों के जरिए संचार क्रांति लाने का काम किया है। विश्व की सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली भाजपा का जनसंवाद का यह माध्यम विदेशों में पहले से ही खासा लोकप्रिय है, लेकिन भारत में इसे शुरू करने का क्रेडिट उसी को ही जाता है। याद कीजिए 2017 यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान जब भाजपा ने अपने टिकटार्थियों से कहा था, जिसके पास कम से कम 25 हजार लाइक होगा उसे ही अपना उम्मींदवार बनायेगी। गृह मंत्री अमित शाह ने भारत की पहली राजनीतिक वर्चुअल रैली ’बिहार जनसंवाद’ में बिहार की जनता को वीडियो कॉन्फ्र“ेन्स के द्वारा सम्बोधित किया था। इसमें 72 हजार बूथ कार्यकर्ता शामिल हुए थे, जो करीब 5 लाख कार्यकर्ताओं तक पहुंचा। इसके बाद पश्चिम बंगाल में कई वर्चुअल रैली की। रक्षामंत्र राजनाथ सिंह ने, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा आदि ने भी कई वर्चुअल रैली कर चुके है। इसलिए होने वाले पांच राज्यों के चुनाव में भी यह सबकुछ देखने को मिलेगा।
भारत में वर्चुअल रैलियों का भविष्य
’वर्चुअल रैली’ दरअसल वेबिनॉर या यू कहें वेबकॉन्फ्रेंस का ही एक व्यापक रूप है, जिसे वर्चुअल कहा जाता है। यह फेसबुक लाइव, यूट्यूब, गूगलमीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स और जूम मीटिंग्स जैसे सोशल मीडिया माध्यमों के इस्तेमाल से आगे की बात है। सामूहिक जनसंवाद के इस तकनीकी माध्यम में वीडियो कॉन्फ्रेंस के द्वारा जनता या कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया जाता है। जनसंख्या और मतदाताओं के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के चुनावी अभियान में रैलियों की भूमिका बेहद अहम होती है। दरअसल किसी रैली के जरिए अपने संबोधन से एक बड़े जनसमूह को प्रभावित किया जा सकता है। वर्तमान में कोविड-19 वायरस जनित महामारी के दौर में जब भीड़ जुटने से संक्रमण का खतरा है, ऐसे में राजनीतिक धुरंधरों ने डिजिटल या वर्चुअल रैली के रूप में इस समस्या का तोड़ तलाश लिया है। अब राजनीतिक पार्टियां डिजिटल या वर्चुअल रैली का रुख कर रही हैं। भाजपा की रणनीति पर गौर करने से पता चलता है कि बिहार व पश्चिम बंगाल के तहत यूपी, पंजाब गोवा चुनावों के मद्देनजर ं करीब 1000 डिजिटल रैलियां करने की योजना बना रखी है। भाजपा समेत अन्य विभिन्न राजनीतिक दलों का मानना है कि यदि कोरोना वायरस संक्रमण प्रकोप के हालात ऐसे ही रहे तो भौतिक यानी वास्तविक रैलियों का आयोजन संभव नहीं होगा, ऐसे में अब वर्चुअल रैलियों की बाढ़ आएगी। हालांकि वर्चुअल रैलियों का भविष्य फिलहाल कोविड-19 वायरस संक्रमण के प्रकोप और उपचार से जुड़ा है और यह अभी इस पर ही निर्भर होगा। वर्चुअल रैलियों की चुनावी सफलता भी भारत में इनका भविष्य तय करने में कारगर साबित होगी।
व्यापक विस्तार दिए जाने की है आवश्यकता
वर्चुअल रैलियों की अभी बेशक अपनी नियत सीमाएं हैं, ऐसे में इस माध्यम को और विस्तार दिए जाने की जरूरत है। संबंधित समस्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि राजनीति के डिजिटलीकरण का यह प्रयोग अभी बड़े स्तर पर केवल नगरीय मतदाताओं तक पहुंच में ही सहायक होगा। ऐसे में इसे व्यापक विस्तार दिए जाने की आवश्यकता है। दरअसल डिजिटल रैलियां अभी एकतरफा संवाद का जरिया हैं और बेहद खचीर्ली भी रही हैं। इससे इतर वास्तविक यानी भौतिक रैलियों में हजारों लोग प्रत्यक्ष रूप से जुटते हैं और टीवी के माध्यम से लाखों करोड़ों लोगों तक राजनीतिक दलों की पहुंच रहती है। इन तमाम किन्तु-परंतुओं को दृष्टिगत रखते हुए निकट भविष्य में राजनीतिक पार्टियां नियत विषयों और विचारों पर आधारित वर्चुअल रैलियों के आयोजन पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। इन रैलियों का प्रसारण टीवी के जरिए किए जाने की योजना पर भी अमल किया जा सकता है। साथ ही रेडियो और एफएम के जरिए भी वर्चुअल कैंपेनिंग की जा सकती है। कुल मिलाकर वर्चुअल रैलियों के खर्च के मद्देनजर इन संचार माध्यमों का प्रवीणतापूर्वक प्रयोग करना होगा।
सुविधाएं भी दे रही हैं कंपनियां
वर्चुअल रैलियों का आयोजन न केवल रियल टाइम इवेंट के तहत किया जा रहा है, बल्कि कुछ ब्रांड और कंपनियां प्लानिंग और टाइमलाइन ट्रैकिंग जैसी सेवा-सुविधाएं भी दे रही हैं। इसमें आप वीडियो के साथ ही ग्राफिक्स, पोल व अन्य जानकारियां भी शामिल कर सकते हैं। कुछ कंपनियां रैली के बाद वर्चुअल रैली में उपस्थिति, गतिविधियों और मेल आदि से संबंधित आंकड़े भी मुहैया कराने का काम भी कर रही हैं।
नहीं मिलेगा प्रत्याशियों को शक्ति प्रदर्शन का मौका
कहा जा सकता है इस बार के चुनाव में पहले की तरह न तो दीवारें पोस्टर से पटी होंगी और न ही राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता इसे चिपकाते दिखेंगे। कोरोना प्रोटोकॉल के कारण चुनाव प्रचार के दौरान न तो हेलीकॉप्टर के शोर सुनाई देंगे, न रैली-जनसभाएं होंगी और न ही रोड शो। कोरोना की वजह से बदली परिस्थिति में तमाम बंदिशों के कारण प्रत्याशियों को शक्ति प्रदर्शन का मौका भी नहीं मिल सकेगा। प्रचार के पुराने तरीके से इतर सभी पार्टियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ही आना होगा। सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और वाट्सऐप इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएंगे। खास यह है कि इस मुद्दे पर चुनाव का विरोध कर रही सपा, कांग्रेस व बसपा जैसी पार्टियों ने भी अब अपने को तैयार कर लिया है।
दलों में वाॅर-प्रतिवाॅर शुरू
यूपी में लाल रंग लहराएगा या भगवा फहराएगा? के पोस्ट दिखने लगा है। सपा-भाजपा में कुछ ज्यादा ही दंद्व देखने को मिल रहा है। चूंकि चुनाव डिजिटल और वर्चुअल की दुनिया में हो रहा है इसलिए वार और प्रतिवार भी वही से किए जा रहे हैं। यूपी बीजेपी के ट्विटर हैंडल ने एक ट्वीट किया है। इस ट्वीट में भगवा वस्त्र पहने सीएम योगी की एक आदमकद तस्वीर थी और भाजपाइयों का प्रिय नारा था- राजतिलक की करो तैयारी, 10 मार्च को फिर से आ रहे हैं भगवाधारी। अखिलेश यादव चुनाव आयोग के इस ऐलान के बाद खासा परेशान दिख रहे। वर्चुअल माध्यम से चुनाव प्रचार को लेकर अखिलेश ने कहा कि जिन वर्कर के पास संसाधन नहीं है वो वर्चुअल रैली कैसे करेंगे। जो छोटी पार्टियां हैं उन्हें कैसे स्पेस मिलेगा। इसी बीच सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव की एक तस्वीर भी शेयर की जा रही है जिसमें लिखा है कि 10 मार्च को आ रहे हैं अखिलेश।
भाजपा की तैयारी
पार्टी ने सभी विधानसभा क्षेत्रों में डिजिटल रथ चलाने का फ़ैसला किया है। हर विधानसभा में छोटे रथों के जरिए डिजिटल प्रचार किया जाएगा, जिसमें शीर्ष नेताओं के प्री-रिकॉर्डेड भाषणों, ऑडियो-विडियो प्रेजेटेशन के जरिए प्रचार होगा। पिछले दिनों लखनऊ में प्रवास और रात्रि बैठक के दौरान अमित शाह ने डिजिटल माध्यम से प्रचार अभियान पर मंथन किया था। वैसे देखा जाए तो डिजिटल माध्यम से प्रचार का फायदा बीजेपी पिछले तीन चार चुनाव में उठा चुकी है। टेलिफोन मैसेज, ऑडियो मैसेज पहले भी भाजपा के प्रचार नीति का हिस्सा रहे हैं। लेकिन कोविड की दूसरी लहर के दौरान आईटी टीम को मजबूत करके इसका दायरा बढ़ाया गया है। करीब 50 से जिलो में पार्टी के आई टी कक्ष हैं। जिसमें पूरा ब्योरा मौजूद है। एक क्लिक के द्वारा उस क्षेत्र के बूथ कार्यकर्ताओं तक पहुंचा जा सकता है।
सपा : समाजवादी पार्टी की अभी वर्चुअल रैलियों को लेकर कोई खास तैयारी सामने नहीं आयी है। हालाँकि पार्टी सूत्रों के अनुसार प्लानिंग की जा रही है। सपा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मुताबिक सपा हर तरह से चुनाव लड़ने को तैयार है। चाहे वो वर्चुअल हो या कोई और माध्यम हो। हमारे सारे कार्यकर्ता डिजिटल तरीके से कैंपेन करेंगे. पार्टी के वॉलेनटियर्स को डिजिटल माध्यम की ट्रेनिंग भी दी गयी है. विजय रथ यात्रा में जो जिले छूट गए हैं उन ज़िलों में वर्चूअल सम्बोधन करेंगे।
कांग्रेस : यूपी में कांग्रेस ने डिजिटल प्लान तैयार किया है जिसमें 1.5 लाख व्हाट्सएप ग्रुप, 15000 फेसबुक पेज, सोशल मीडिया के जरिए 3 करोड़ लोगों को जोड़ा गया है। बताया जा रहा जा रहा है कि चुनावी कैंपेन के लिए कांग्रेस पूरी तरीके से तैयार है। व्हाट्सएप ग्रूप के द्वारा कांग्रेस की प्रतिज्ञाएं कार्यकर्ताओं तक भेजी जा रही हैं। इसके साथ-साथ कांग्रेस ने महिलाओं को नेतृत्व में शामिल किया है और व्हाट्सएप के जरिए ब्लॉक स्तर पर सम्पर्क किया जा रहा है.
बसपा : बसपा ने आचार संहिता लगने के बाद अपनी डिजिटल तैयारी पूरी कर ली है। जिसमें सभी विधानसभा क्षेत्र में एलईडी के साथ पदाधिकारियों के वेरीरीफाइड अकाउंट से जोड़ा गया है। जानकारी के मुताबिक पार्टी लगातार अपने चुनाव प्रचार को हाईटेक करती जा रही है। इस दौरान सभी पदाधिकारियों और प्रभारियों के अकाउंट को वेरीफाई किया जा रहा है जिससे जब उससे कोई संदेश जनता के बीच में जाए तो जनता को पार्टी का संदेश मिले और बीएसपी सुप्रीमो मायावती को सुना जा सके। बीएसपी की चीफ मायावती ने अपने ऑफिस में वॉर रूम तैयार किया है जिसपर वह पूरे प्रदेश की विधानसभा पर नजर रखेंगी।
जमकर होगा सोशल मीडिया का इस्तेमाल
चुनाव आयोग के ऐलान के बाद इस बार यूपी के चुनावों में सोशल मीडिया का इस्तेमाल जमकर होने वाला है। क्यों कि जनता से जुड़ने का यही एक माध्यम पार्टियों के पास बचा है। 2014 तक सोशल मीडिया पर बीजेपी का लगभग पूरा दबदबा था। बाद में फिर कांग्रेस सहित तमाम क्षेत्रीय दल भी सोशल मीडिया का संगठित तरीके से इस्तेमाल करने लगे। इस तरह असली चुनौती शुरू हुई। यह अलग बात है कि सोशल मीडिया बस राजनीतिक विरोध करने के लिए आरोप लगाने का ही अड्डा नहीं रहा, बल्कि फोटोशॉप, छेड़छाड़ वाले विडियो और गलत तथ्य वाले मेसेज भी खूब आने लगे। फिरहाल, ट्वीटर पर बीजेपी सबसे आगे है और उसके 2.9 मिलियन फॉलोअर्स है, जबकि सपा के 2.8 मिलियन फॉलोअर्स, कांग्रेस के 460.9 के फॉलोअर्स है। यानी यूपी में डिजटिल प्लेटफार्म पर नेताओं में सबसे आगे योगी है। उनके 16.8 मिलियन फॉलोअर्स है। जबकि अखिलेश यादव के 15.3 मिलियन फॉलोअस है, कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाड्रा के 4.4 मिलियन फॉलोअर्स है और मायावती के 2.3 मिलियन फॉलोअर्स है। फेसबुक पर भी बीजेपी सबसे ज्यादा पसंदीदा है। बीजेपी – 4.9 मिलियन फॉलोअर्स, सपा 2.8 मिलियन फॉलोअर्स है।
100 वर्चुअल रैली करेगी बीजेपी
बीजेपी ने वर्चुअल रैलियों के जरिए चुनाव प्रचार का प्लान तैयार कर लिया है। बीजेपी ने पूरे प्रदेश ने अलग-अलग चरणों के हिसाब से हर चरण में 100 रैली तक करने की तैयारी की है। मामले में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी यूनिट के साथ ‘डिजिटल रणनीति’ पर चर्चा की और रणनीति भी बनाई है। बताया जा रहा है कि पार्टी ने 3डी स्टूडियो मिक्स तकनीक का उपयोग करने की योजना बनाई है। इस तकनीक से दो अलग-अलग जगहों पर बैठे नेताओं को एक पोडियम पर दिखाया जा सकता है। यानी 3डी के जरिए वर्चुअल स्टेज बनाकर दिग्गज नेताओं को ऐसे दिखाया जाएगा, जैसे वे किसी एक मंच पर संबोधित कर रहे हों। मतलब साफ है बीजेपी के लिए यह वर्चुअल रैली फायदेमंद साबित होगा। वर्चुअल रैली बीजेपी के लिए यह पहला अनुभव नहीं होगा. इससे पहले बंगाल के चुनाव में भी वर्चुअल रैली आयोजित की गई थी. कोविड के दौरान जब दुनिया की सभी राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह निष्क्रिय थी उस समय भी बीजेपी के कार्यकर्ता और पार्टी के सभी लोग वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे थे।
कुल 17 दौरे कर चुके हैं पीएम मोदी
चुनाव आयोग की घोषणा के बाद बीजेपी अऩ्य पार्टियों की तुलना में आगे दिख रही है। अभी तक खुद पीएम मोदी यूपी में 17 दौरे कर चुके हैं. सिर्फ पिछले 48 दिनों में ही उन्होंने 13 बड़ी रैलियों को संबोधित किया है. जबकि राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद हर जिले में जाकर दौरा कर चुके हैं. इनके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी 12 बार तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 13 बार यूपी का दौरा कर कार्यक्रमों, रैलियों को संबोधित कर चुके हैं.
बीजेपी की तुलना में कई दल पीछे
पिछले कुछ दिनों में जिस तेज गति से बीजेपी ने चुनाव प्रचार किया है उसके मुकाबले बाकी दल काफी पीछे हैं. हालांकि बीजेपी के बाद सपा की ओर से कई रैलियां जरूर आयोजित की गई, लेकिन अन्य पार्टियां इस मामले में काफी पीछे है. यूपी के प्रमुख राजनीतिक दल बसपा की नेता मायावती ने अभी तक कोई बड़ी रैली भी नहीं की है.
अनुभव का मिलेगा फायदा
बीजेपी डिजिटल मीडियम से प्रचार करने के मामले में अन्य पार्टियों से कहीं ज्यादा अनुभव रखती है. उसे सबसे ज्यादा फायदा कोविड काल में अपने ’सेवा ही संगठन’ अभियान में विभाग के किए गए द्रुत कार्यों के अनुभव का मिलेगा. इस दूसरी लहर के दौरान पार्टी जेपी नड्डा, स्मृति ईरानी और नरेंद्र सिंह तोमर की तीन वर्चुअल रैलियां सफलता पूर्वक आयोजित कर चुकी है. इस दौरान पार्टी की आपसी संवाद बैठकें भी वर्चुअली होती थीं, जिनमें पार्टी के बड़े नेता जुड़ते थे. पिछले कई चुनावों से टेलिफोन मैसेज,ऑडियो मैसेज भाजपा अपनी प्रचार नीति में शामिल करती रही है. प्रमोद महाजन के जमाने के समय से पार्टी का फोकस तकनीकी के इस्तेमाल पर बढ़ गया था. बीजेपी लगभग हर चुनाव में डिजिटल रथ चलाती हैं, जिसमें नेताओं के प्री-रिकॉर्डेड भाषण, ऑडियो-वीडियो प्रेंजेटेशन के जरिए प्रचार किया जाता है.