उत्तराखंड : राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण की स्थापना को नहीं मिली शासन की मंजूरी
प्रदेश के सरकारी और निजी विद्यालयों में शिक्षा में सुधार के लिए प्रस्तावित राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण की स्थापना को दो साल बाद भी शासन की मंजूरी नहीं मिली। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) ने शासन को वर्ष 2022 में इसका प्रस्ताव भेजा था। जिसे मंजूरी न मिलने से विद्यालयों के न्यूनतम मानक तय करने में परिषद एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सिफारिश की गई है कि सभी विद्यालयों में न्यूनतम व्यावसायिक एवं गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए राज्य एक स्वतंत्र राज्य व्यापी निकाय का गठन करेगा। राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण बुनियादी मानदंडों, सुरक्षा, बचाव, आधारभूत ढांचे, विद्यालयों में कक्षाओं और विषयों के आधार पर शिक्षकों की संख्या आदि के आधार पर न्यूनतम मानक तय करेगा।
प्राधिकरण की ओर से तय किए गए इन सभी मानकों का राजकीय एवं निजी विद्यालय पालन करेंगे। शासन ने इसके लिए पांच जनवरी 2022 को राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखंड को राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण के रूप में काम करने के लिए नामित किया था। जिसे एक एक स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करना था। एससीईआरटी ने प्राधिकरण की स्थापना के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था। जो शासन की फाइलों में ही दबकर रह गया।
प्राधिकरण का इन्हें बनाया जाना था अध्यक्ष और सदस्य
प्रस्ताव के मुताबिक शासन की ओर से नामित शिक्षाविद, सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी या सेवानिवृत्त न्यायाधीश जिनका शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा हो। उन्हें इसका अध्यक्ष बनाया जाना था। महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा, निदेशक एससीईआरटी, निदेशक एनआईसी, क्षेत्रीय निदेशक सीबीएसई, अपर निदेशक एससीईआरटी, संयुक्त निदेशक शिक्षा महानिदेशालय, शासन की ओर से आईसीएसई विद्यालय के नामित प्रधानाचार्य, सीबीएसई से संबद्ध निजी विद्यालय के प्रधानाचार्य, विद्यालय भारती स्कूल के निरीक्षक एवं शासन की ओर से नामित शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठन को प्राधिकरण का सदस्य बनाया जाना प्रस्तावित है। शासन को भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया कि प्राधिकरण के सदस्य तीन साल के लिए नामित होंगे।
प्रदेश में खासकर निजी विद्यालयों पर हर साल फीस में मनमानी वृद्धि और जरूरी सुविधाओं की कमी के आरोप लगाते रहे हैं। ऐसे में प्राधिकरण को करीब 16501 सरकारी और 5396 निजी विद्यालयों में न्यूनतम मानक तय करने थे। बताया गया था कि प्राधिकरण विद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले विषय, फीस आदि की सूचनाओं को सार्वजनिक कराएगा। निजी विद्यालयों में शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए वेतन भी तय करेगा। विद्यालयों की मान्यता की शर्त तय करने, उसका पालन कराने और विद्यालयों से संबंधित किसी भी तरह की कोई शिकायत मिलने पर उसकी जांच भी प्राधिकरण को करनी थी। प्राधिकरण एक अर्द्ध न्यायिक आयोग होगा, जो किसी स्कूल की मान्यता पूरी तरह से समाप्त करने के साथ ही स्कूल को दंडित कर सकेगा।