यूपी: एक साल से दबी थी चिंगारी… मौका पाकर भड़की, भाजपा पार्षदों ने महापौर का किया खुला विरोध

राजधानी लखनऊ में सोमवार को नगर निगम कार्यकारिणी की बैठक में शामिल न होकर भाजपा पार्षदों ने महापौर का खुला विरोध किया। महापौर के खिलाफ विरोध की यह चिंगारी करीब एक साल से सुलग रही थी। रामकी कंपनी को लाना, पार्षद कोटे के कामों में दखल और सफाई कार्य में लगी कार्यदायी संस्थाओं को हटाने की कोशिशों ने आग में घी का काम किया।

इन मुद्दों को लेकर पिछले महीने ही पार्षदों ने महापौर कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन किया था। इसके बाद कार्यदायी संस्थाओं को काम से हटाने का फैसला वापस हुआ। महापौर का कोटा दो साल पहले 25 करोड़ से बढ़ाकर 35 करोड़ किया गया था। इससे भी सभी दलों के पार्षद नाराज हैं।

रणनीति फेल, बजट नहीं हुआ पास
नगर निगम कार्यकारिणी की बैठक में बजट पास कराने की महापौर की रणनीति पूरी तरह से फेल हो गई। महापौर सोमवार सुबह नौ बजे नगर निगम पहुंचीं। दो कार्यकारिणी सदस्य भी साथ थे। हॉल में देखा तो अन्य कोई सदस्य नहीं पहुंचा था। न तो उनकी अपनी पार्टी भाजपा का, न विपक्षी दल सपा का।

महापौर ने बैठकर सदस्यों का इंतजार किया। 10 बजे उन्होंने कार्यकारिणी सदस्यों को कॉल करना शुरू किया। सबके मोबाइल फोन बंद मिले। इसके बाद महापौर नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह के साथ वापस अपने कक्ष मे आ गईं। उनको सूचना भी मिल गई कि ये सब जानबूझकर किया गया है। जो 10 सदस्य अनुपस्थित हैं, वो आएंगे भी नहीं। महापौर ने करीब 11:30 बजे बैठक स्थगित करने की घोषणा के साथ अगली बैठक 18 मार्च को तय की।

नियम नहीं, फिर भी पार्षदों को दिया जा रहा कोटा
पार्षद और महापौर को विकास कार्यों के लिए कोटा दिए जाने की व्यवस्था नगर निगम अधिनियम में है ही नहीं। इसके बाद भी 36 वर्षों से नगर निगम में कोटे की व्यवस्था चली आ रही है। इन 36 वर्षों में कोटे की धनराशि 1500 गुना बढ़ भी चुकी है। पार्षद कोटे से कराए जाने वाले कार्यों में कई तरह के खेल सामने आ चुके हैं।

इसमें बजट खपाने के लिए पहले से बनी अच्छी भली सड़क को दोबारा बनाने का खेल महापौर खुद पकड़ चुकी हैं। वर्तमान समय में प्रत्येक पार्षद के पास सालाना डेढ़ करोड़ रुपये का कोटा है, जिससे वह अपने वार्ड में विकास कार्य करा सकते हैं। नगर के विस्तारित क्षेत्र के जिन वार्डों में बजट की ज्यादा जरूरत है, वहां पर डेढ़ करोड़ ही दिया जा रहा है। जहां कम जरूरत है वहां भी इतनी की धनराशि दी जा रही है।

कोटे की धनराशि के चलते नगर निगम पर कर्ज भी बढ़ा है। नगर निगम की आय करीब 800 करोड़ है जबकि खर्च 1500 करोड़। नगर निगम पर ठेकेदारों की ही करीब 200 करोड़ की देनदारी है।

G-2024 में 85 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ हुई रकम :
एक पुराने पार्षद ने बताया कि 1989 में जब एक वार्ड में दो पार्षद होते थे, तब कोटा एक लाख रुपये था। 1995 में यह बढ़कर पांच लाख हुआ। वर्ष 2000 में 20 लाख और 2006 में यह 35 लाख हो गया। 2012 में कोटा 50 लाख और 2017 में 85 लाख रुपये किया गया। वर्ष 2024 में इसे 1.5 करोड़ किया गया। पार्षद फिर से कोटे की धनराशि बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

G-कोटे को अलग दिया जाता है नाम :
नगर निगम अधिनियम में पार्षदों को जनप्रतिनिधि की बजाए ‘जनसेवक’ कहा गया है। आधिनियम में कोटा को लेकर कोई प्रावधान नहीं है। अधिनियम में पार्षद के सुझाव पर काम कराने जाने की व्यवस्था है। कानूनी पचड़ा न फंसे इसके लिए पार्षद कोटे को कभी वार्ड विकास प्राथमिकता निधि तो कभी पार्षद संस्तुति पर कराए जाने वाले विकास कार्य का नाम दिया गया। हालांकि, पार्षद से लेकर कर्मचारी तक इसे बोलचाल में कोटा ही कहते हैं।

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