नवजात में पीलिया का उपचार पूरी तरह संभव : डा. पियाली
विश्व नवजात देखभाल सप्ताह (15 से 21 नवंबर) पर विशेष
पीलिया के लक्षण को पहचानें, समय पर चिकित्सक को दिखाएं
लखनऊ : स्नेहा ने 3.2 किग्रा के स्वस्थ बच्चे जो जन्म दिया लेकिन वह पीलिया (जॉन्डिस) से ग्रसित था| वह और उसके परिवार के सदस्य तो बहुर डर गए लेकिन चिकित्सकों ने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है| बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जाएगा | स्नेहा बताती हैं कि जब तक अस्पताल में रहा तब तक नवजात को फ़ोटोथेरेपी (विशेष प्रकार की रोशनी, जो कि बिलिरूबिन को तोड़ता है ) दी गई और जब हम डिस्चार्ज हुए तब हमें डाक्टर ने सलाह दी कि इसे सुबह के समय नियमित सूरज की रोशनी दिखाएं| विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में 60% समय पर जन्मे नवजात शिशुओं व 80% समय से पूर्व जन्मे (प्रीमेच्योर) नवजात शिशुओं में ये समस्या ज़्यादातर देखी जाती है| एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य बताती हैं कि जब शरीर में बिलिरूबिन की मात्रा अधिक हो जाती है तो पीलिया होता है| बिलिरूबिन भूरे पीले रंग का द्रव्य होता है जो लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है | यह लिवर में पाया जाता है| सामान्य स्थिति में लाल रक्त कोशिकाएं एक निश्चित समय अर्थात 120 दिन में टूटती है| जिसे लीवर द्वारा धीरे-धीरे मल-मूत्र के साथ शरीर से निकाल दिया जाता है। यदि लाल रक्त कोशिकायेँ जल्दी और ज्यादा टूटने लगें (जैसे की नवजात में) तो खून में बिलिरूबिन की मात्रा अतिरिक्त बढ़ जाती है और लीवर उसे पूरी तरह से निकाल नही पाता है| इस कारण ही पीलिया होता है|
नवजात में पीलिया का उपचार पूरी तरह से संभव है| सामान्य बच्चे को दो सप्ताह और समय से पूर्व जन्मे बच्चे को ठीक होने में तीन सप्ताह का समय लग जाता है परन्तु यदि उपचार में देरी हो जाती है तो दीर्घकालिक तंत्रिका संबंधी समस्याएं हो सकती हैं| लोगों में यह भ्रांति है कि पीलिया लिवर में खराबी के कारण होता है जबकि नवजात शिशु के नाजुक लिवर में खून टूटने के कारण बने अत्यधिक बिलिरुबिन को हटाने की क्षमता ही नही होती है| यदि नवजात स्तनपान नहीं कर पा रहा है/सुस्त है, समय से पूर्व जन्मा बच्चा, जन्म के 24 घंटे के भीतर पीलिया के लक्षण दिखाई दे, सेप्सिस के साथ पीलिया हो तो ऐसे बच्चों में बिलिरूबिन के कारण तंत्रिका संबंधी समस्या होने की संभावना होती है| यदि बिलिरूबन स्वीकार्य स्तर से अधिक बढ़ जाता है तो फोटोथेरपी के द्वारा नवजात पीलिया का इलाज किया जाता है| इसकी सुविधा सभी नवजात देखभाल इकाइयों में उपलब्ध है| यह सुरक्षित, लागत प्रभावी और उपयोग में आसान है| कभी कभी फोटोथेरेपी कारगर न होने पर खून को बदलने की प्रक्रिया भी की जाती है। पीलिया सामान्यतः सिर से पैर की तरफ बढ़ता है| यदि बच्चे के पैरों तक पीलापन आ जाए तो ये एक गंभीर स्थिति बन सकती है, इसलिए डॉक्टर के पास अवश्य ले जाएँ| डा. पियाली बताती हैं कि सामान्यतः नवजात में पीलिया होने के कारण हैं, माँ का ब्लड ग्रुप नेगेटिव व बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉज़िटिव हो| माँ का ब्लड ग्रुप “ओ” है और बच्चे का ‘ए’, ‘एबी’ या ‘बी’ है| माँ को गर्भावस्था में किसी प्रकार का संक्रमण हो अथवा बच्चे में जी-6 पीडी एंजाइम की कमी हो| जी-6 पीडी एक ऐसा एंजाइम है जो कि लाल रक्त कोशिकाओं के लिए आवश्यक होता है और इसकी कमी होने से नवजात पीलिया से पीड़ित हो सकता है।