आज हैं रेखा का 66वां जन्मदिन, रेखा को लोग इसलिए कहते थे लेडी अमिताभ बच्चन
उस वक्त जंगल जैसा था और मैं एकदम निहत्थी थी। यह मेरे जिंदगी का सबसे डरावना वक्त रहा। मैं दुनिया के सभी नए रास्तों से अनजान थी। लोग मेरी अज्ञानता का फायदा उठाने की कोशिश करते। मैं महसूस करती थी कि आखिर मैं यहां कर क्या रही हूं?
मुझे तो स्कूल में होना चाहिए! आइसक्रीम खानी चाहिए, मजे करने चाहिए, अपने दोस्तों के साथ रहना चाहिए। आखिर मुझे काम करने के लिए बाध्य क्यों किया जा रहा है? आखिर मुझे उन सामान्य चीजों से क्यों वंचित किया जा रहा है जो अक्सर बच्चे मेरी उम्र पर करते हैं? हर रोज मैं रोती थी क्योंकि मुझे वह चीजें खानी पड़तीं जिन्हें मैं पसंद नहीं करती। विचित्र कपड़े पहनने पड़ते जो मुझे परेशान करते थे। तरह-तरह की पोशाकें और गहनों से मुझे बहुत एलर्जी होती। बालों पर किया गया स्प्रे नहाने के बाद भी नहीं उतरता था। मुझे एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो तक धक्के देकर, या फिर यूं कहें कि घसीट कर ले जाया जाता था। बहुत सी ऐसी चीज रहीं जो डरावनी थीं और मैंने मात्र 13 साल की उम्र में कीं।’
रेखा उस सफर की मुसाफिर रही हैं जिसमें मंजिलें तो तमाम आईं लेकिन घर नहीं आया। पैदाइश तमिलनाडु की और नाम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में चलता है। उनकी बातों को सुनकर लगता है कि वह कभी अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थीं। लेकिन, जब बन गईं तो ऐसी बनीं कि उनके सामने और कोई टिक ही नहीं पाया। यहां एक बात और सिद्ध होती है कि अगर किसी काम को कोई मजबूरी में भी मन लगाकर करें तो उसमें भी महारत हासिल किया जा सकती है। आज रेखा का 66वां जन्मदिन है। इस मौके पर हम आपको इस बेहतरीन अभिनेत्री के कुछ शानदार किरदारों के बारे में बताते हैं।
किरदार : चंदा
फिल्म : सावन भादों (1970)
रेखा ने एक बाल कलाकार के रूप में ही पहली बार एक तेलुगू फिल्म में काम किया था। बाद में उन्होंने एक कन्नड़ फिल्म ‘ऑपरेशन जैकपोट नल्ली सीआईडी 999’ में मुख्य भूमिका भी निभाई। लेकिन हिंदी फिल्मों में उनकी शुरुआत मोहन सहगल के निर्देशन में बनी फिल्म ‘सावन भादों से हुई। वैसे तो रेखा की शुरुआत हिंदी फिल्मों में वर्ष 1969 में बनी एक फिल्म ‘अंजाना सफर’ से होने वाली थी लेकिन यह फिल्म कुछ दृश्यों की वजह से सेंसर बोर्ड में अटकी रही और पूरे एक दशक बाद ‘दो शिकारी’ शीर्षक से 1979 में रिलीज हुई। ‘सावन भादों’ में रेखा ने गांव की एक लड़की चंदा का किरदार निभाया है। वह काफी बहादुर होती है इसलिए फिल्म के मुख्य अभिनेता नवीन निश्चल के किरदार विक्रम का दिल चंदा पर आ जाता है। रेखा हिंदी भाषी नहीं थीं इसलिए उन्होंने इस फिल्म के लिए थोड़ी बहुत हिंदी सीखी और इसी फिल्म से उन्हें हिंदी फिल्मों में पहचान मिल गई।
किरदार : रेखा रॉय
फिल्म : दो अनजाने (1976)
हिंदी में अपनी पहली फिल्म के बाद रेखा के पास ऑफर तो खूब आते थे लेकिन उन्हें किसी ऐसे ऑफर की तलाश थी जो उन्हें एक अभिनेत्री के तौर पर स्थापित कर सके, न कि एक प्रदर्शित होने वाली वस्तु के रूप में। लगातार अपनी भाषा, चाल ढाल और वजन पर काम करते हुए रेखा ने अपने ऊपर काफी हद तक उत्तर भारतीय लड़की का चोला ओढ़ लिया था। फिर उन्हें देखकर कहना मुश्किल था कि वह दक्षिण भारत के एक लड़की हैं। तब उन्हें मौका मिला अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘दो अनजाने’ में काम करने का। दुलाल गुहा के निर्देशन में बनी यह फिल्म निहार रंजन गुप्ता के लिखे एक बंगाली उपन्यास रात्रिर यात्री पर आधारित रही। इसमें रेखा का किरदार एक लालची पत्नी का था। यह पहली फिल्म थी जिसमें रेखा को अपने अभिनय के जौहर दिखाने का मौका मिला।
किरदार : आरती चंद्रा
फिल्म : घर (1978)
मानिक चटर्जी के निर्देशन में बनी यह फिल्म रेखा के करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। इस फिल्म में रेखा ने एक नई दुल्हन का किरदार निभाया है जो अचानक से सामूहिक दुष्कर्म का शिकार होती है। इस फिल्म की पूरी कहानी रेखा के किरदार आरती के संघर्ष और उसके प्यार करने वाले पति के साथ जीवन निर्वहन करने में बीतती है। कहानी में आरती के पति का नाम विकास चंद्र है जिसका किरदार विनोद मेहरा ने निभाया है। इस फिल्म से पहले रेखा 50 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी थीं लेकिन इस फिल्म में जो उन्होंने किया, उसे कोई नहीं भुला सका। इसके लिए रेखा के काम को खूब सराहना मिली। इसी फिल्म के लिए रेखा को पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
किरदार : जोहराबाई
फिल्म : मुकद्दर का सिकंदर (1978)
‘घर’ में खिंची रेखा को अपनी अदाकारी से रेखा ने एक बार फिर से अमिताभ बच्चन के और लंबा किया फिल्म ‘मुकद्दर का सिकंदर’ में। यहां उन्होंने एक वेश्या जोहरा का किरदार निभाया है। यह फिल्म उस साल की ही नहीं, बल्कि उस दशक की ही सबसे बड़ी हिट फिल्मों में शामिल हो गई। इसी के साथ रेखा भी हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी और सफल अभिनेत्रियों में गिनी जाने लगीं। एक वेश्या के किरदार में रेखा के अभिनय की समीक्षकों ने बहुत सराहना की। उनका यह किरदार दर्शकों को भी बहुत पसंद आया। अमिताभ बच्चन और रेखा के साथ इस फिल्म में राखी, विनोद खन्ना, अमजद खान, कादर खान, निरूपा रॉय, आदि कलाकारों ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। प्रकाश मेहरा की इस फिल्म में शानदार अभिनय के लिए रेखा को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
किरदार : मंजू दयाल
फिल्म : खूबसूरत (1980)
वर्ष 1973 में आई रेखा की फिल्म ‘नमक हराम’ से रेखा और निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी के बीच एक पिता और पुत्री जैसा रिश्ता पनप गया था। इन दोनों को साथ काम करने का दूसरा मौका इस फिल्म में मिला। यहां रेखा ने मंजू दयाल नाम का एक किरदार निभाया है। मंजू एक खुशमिजाज युवा लड़की है जो अपनी बहन की ससुराल कुछ दिन रहने के लिए जाती है। उसकी बहन की नई-नई शादी हुई है। उसका भरा पूरा परिवार है लेकिन लोग ज्यादा खुश नहीं रहते। मंजू इन लोगों में ही खुशियां फैलाने का काम करती है। एक इंटरव्यू के दौरान रेखा ने खुद कहा था कि इस तरह के चुलबुले किरदारों को वह आसानी से पकड़ लेती हैं। क्योंकि, उनका खुद का स्वभाव भी कुछ इसी तरह का रहा है। इस फिल्म में शानदार अभिनय के लिए रेखा को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया।
किरदार : उमराव जान
फिल्म : उमराव जान (1981)
रेखा अब तक सब तरह के किरदार करती चली आ रही थीं लेकिन अचानक से उन्हें मुजफ्फर अली के निर्देशन में बनी यह फिल्म ऑफर हुई। इस फिल्म की पटकथा पढ़ते ही रेखा को ऐसा लगा जैसे कि किसी समय में उमराव जान वही थीं और यह अब भी उनके अंदर है। यह बात खुद रेखा ने एक इंटरव्यू में कही है। इस फिल्म में रेखा ने एक वेश्या उमराव जान का किरदार निभाया है। उमराव जान की कहानी तब से शुरू होती है जब उमराव एक जवान लड़की थी और उसका नाम अमीरन था। लोग उस को अगवा कर लेते हैं और फिर उसे कोठे पर बेच देते हैं। यहां पर वह अपनी एक जगह बनाती है और उस कोठे की खुद मालकिन बन जाती है। वैसे तो रेखा ऐसी जगह से हैं जहां उन्होंने कभी हिंदी तक नहीं सुनी थी। लेकिन, इस फिल्म में उन्होंने हिंदी तो अच्छी बोली ही, साथ में उर्दू में भी कमाल किया। इस किरदार को शानदार तरीके से निभाने के लिए रेखा को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सुशोभित किया गया।
किरदार : आरती वर्मा
फिल्म : खून भरी मांग (1988)
रेखा अब तक हिंदी फिल्मों में अपने आप को स्थापित कर चुकी थीं। वह एक तरफ तो कमर्शियल फिल्मों में काम कर रही थीं तो दूसरी तरफ रचनात्मक फिल्मों में भी अपने अभिनय के जौहर दिखा रही थीं। फिल्मों में महिलाओं पर आधारित कहानियां दिखाने का जब चलन शुरू हुआ, उस समय ऐसी फिल्मों का हिस्सा रेखा भी खूब रहीं। उनमें से एक फिल्म यह भी रही जिसका निर्माण और निर्देशन राकेश रोशन ने किया है। इस फिल्म में शानदार काम करने के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। फिल्म में रेखा ने आरती वर्मा का किरदार निभाया है जो धोखे का शिकार होती है। और, बाद में एक मॉडल ज्योति के रूप में वह लौटती है। एक इंटरव्यू में रेखा ने बताया कि जब इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला तब उन्हें अपने पेशे के मोल पता चला। इससे पहले तो वह सिर्फ इसे अपनी ड्यूटी समझ कर करती थीं। लेकिन, उस समय यह उन्हें उससे भी कुछ ज्यादा लगा।
किरदार : नम्रता सिंह
फिल्म : फूल बने अंगारे (1991)
90 का दशक रेखा के लिए ज्यादा कुछ बदलाव लेकर नहीं आया। जिस समय उनकी समकालीन अभिनेत्रियां राखी और हेमा मालिनी चाची और मम्मी का किरदार निभा रही थीं, उस समय रेखा मुख्य अभिनेत्री के किरदार में ही दिख रही थीं। यह वह समय था जब नई युवा अभिनेत्रियों का उदय हो रहा था। फिर भी यह समय रेखा के करियर पर कोई असर नहीं डाल सका। इसी बीच उन्हें केसी बोकाडिया के निर्देशन में बनी इस फिल्म में काम करने का मौका मिला। यहां वह नम्रता सिंह के किरदार में नजर आईं। कुछ लोग नम्रता के पति को मार देते हैं और नम्रता के साथ दुराचार होता है। अपने पति की मौत और अपनी इज्जत का बदला लेने के लिए वह पुलिस में भर्ती होती है और दुश्मनों से बदला लेती है। यह फिल्म सफल रही और रेखा भी अपने किरदार के साथ दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रहीं। इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकन मिला।
किरदार : माया
फिल्म : खिलाड़ियों का खिलाड़ी (1996)
उमेश मेहरा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में रेखा अपने करियर में पहली बार एक नकारात्मक भूमिका में नजर आईं। मैडम माया के किरदार में वह एक शातिर गैंगस्टर औरत बनीं जो अमेरिका में गैर कानूनी रेसलिंग मैचों का धंधा करती है। इसी दौरान माया को अक्षय मल्होत्रा से इश्क हो जाता है। अक्षय का किरदार फिल्म में अक्षय कुमार ने निभाया है। रेखा ने अपने किरदार माया के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार को तो जीता ही, साथ ही सर्वश्रेष्ठ खलनायिका की भूमिका के लिए उन्हें स्टार स्क्रीन अवार्ड भी मिला।
किरदार : सोनिया मेहरा
फिल्म : कोई मिल गया (2003)
राकेश रोशन के निर्देशन में रेखा को एक बार फिर से काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में वह मुख्य अभिनेत्री के तौर पर नहीं, बल्कि फिल्म के मुख्य किरदार रोहित मेहरा (ऋतिक रोशन) की मां सोनिया मेहरा के किरदार में नजर आईं। सोनिया एक वैज्ञानिक संजय मेहरा की पत्नी है। अचानक से एक अंतरिक्ष यान आता है और उसकी वजह से संजय की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। इसके बाद सोनिया विधवा हो जाती है और उसका बेटा, जो दुर्घटना के समय उसके पेट में होता है, वह भी मंदबुद्धि पैदा होता है। सोनिया अपने बेटे को कहीं दूर ले जाकर रहने लगती है। इस किरदार को रेखा ने शानदार तरीके से निभाया है। इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया।