पुखराज धारण करने से पहले जरुर जान ले उससे जुड़े यह जरुरी नियम

ज्योतिष में नवग्रहों और उनसे जुड़े रत्नों का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि ग्रहों की शुभता को बढ़ाने के लिए और उनकी अशुभता को कम करने के लिए रत्न पहने जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि हर ग्रह किसी न किसी रत्न का प्रतिनिधित्व करता है. इन्हीं रत्नों में से एक रत्न है पुखराज, आप सभी ने पुखराज रत्न के बारे में जरूर सुना होगा.

क्या है पुखराज ?

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पुखराज रत्न के अध्ययन में पाया गया है कि इसमें एल्युमिनियम, हाइड्रॉक्सिल और फ्लोरीन जैसे तत्व विद्यमान हैं. यह खनिज पत्थर सफ़ेद और पीले दोनों रंगों में पाया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में सफेद पुखराज को ही सर्वोत्तम माना गया है. पुखराज रत्न की एक और प्रजाति पाई जाती है, जो कठोरता में असल पुखराज से कम, रूखा, खुरदुरा और चमक में सामान्य होता है

ये हैं पुखराज के उपरत्न

(1) सुनैला
(2) केरु
(3) घीया
(4) सोनल
(5) केसरी

ये सभी पुखराज के उपरत्न माने जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में उन लोगों के लिए उपरत्न हैं, जो पुखराज रत्न का क्रय नहीं कर सकते. पुखराज के उपरत्नो के बारे में बताया गया है. ये उपरत्न पुखराज की तरह लाभ तो नहीं दे सकते, लेकिन ये आंशिक रूप से कुछ प्रभाव रखते हैं. इन उपरत्नों को पुखराज की अपेक्षा कुछ अधिक समय के लिए धारण किया जाए तो इनसे पुखराज रत्न वाला लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है.

कैसे करें पुखराज रत्न धारण ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो, वह व्यक्ति पुखराज को धारण कर सकता है. पुखराज धारण करने से विवाह में आ रही है समस्याएं दूर होंगी, संतान सुख, पति सुख अधिक प्राप्त किया जा सकता है. लेकिन पुखराज रत्न धारण करने से पहले जरूरी है कि किसी विद्वान ज्योतिषी से सलाह ली जाए.

पुखराज रत्न को नवरत्नों में स्थान प्राप्त है, इसलिए इसे सोने की अंगूठी में जड़वाकर पहना जा सकता है. इसके अलावा पीले पुखराज को स्वर्ण की अंगूठी में जड़वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार के दिन सूर्य उदय होने से पहले इसकी पूजा-पाठ करके अंगूठी को दूध, गंगाजल, शहद, घी और शक्कर के घोल में डाल दें.

5 अगरबत्ती लेकर बृहस्पति देव के नाम पर जला लें. उसके बाद “ॐ ब्रह्म ब्रह्स्पतिये नम:” का 108 बार जप करते हुए अंगूठी को भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित करने के बाद हाथों की तर्जनी उंगली में धारण कर लें.

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