खिलाड़ियों के लिए यमुना किनारे बनी इस इमारत से चलता है दिल्ली का शासन

होटल की तर्ज पर डिजाइन की गई इस इमारत को लगभग ढाई दशक पहले दिल्ली सचिवालय के रूप में पुनर्निर्मित किया गया। इससे पहले दिल्ली सचिवालय सिविल लाइन्स स्थित दिल्ली विधानसभा भवन में था।

दिल्ली का शासन उस इमारत से चलता है, जो कभी खिलाड़ियों के लिए बनाई गई थी। इसका नाम प्लेयर्स बिल्डिंग है। वर्ष 1982 के एशियाई खेलों के समय इसे बनाया गया था। यमुना किनारे आईटीओ के पास स्थित इस इमारत को अब दिल्ली की राजनीति और शासन का प्रमुख केंद्र माना जाता है। होटल की तर्ज पर डिजाइन की गई इस इमारत को लगभग ढाई दशक पहले दिल्ली सचिवालय के रूप में पुनर्निर्मित किया गया। इससे पहले दिल्ली सचिवालय सिविल लाइन्स स्थित दिल्ली विधानसभा भवन में था।

दिल्ली सरकार की सत्ता का केंद्र बन चुकी इस दस मंजिला प्लेयर्स बिल्डिंग पर विभिन्न स्तरों की शक्ति और शासन की संरचना देखी जा सकती है। हर मंजिल पर सत्ता की एक नई परत उभरती है, जो आज दिल्ली की राजनीति का दिलचस्प और जटिल रूप प्रस्तुत करती है। सचिवालय की तीसरी मंजिल पर मुख्यमंत्री का कार्यालय है। यही वह मंजिल है जहां दिल्ली सरकार की कैबिनेट मीटिंग होती हैं और जहां मुख्यमंत्री के दफ्तर की सभी महत्वपूर्ण गतिविधियां संचालित होती हैं।

मुख्यमंत्री की गाड़ी दूसरी मंजिल पर रुकती है और वे सीढ़ियों के रास्ते तीसरी मंजिल तक जाती हैं, जो इस इमारत में सत्ता का प्रमुख केंद्र है। चौथी और पांचवीं मंजिल पर किसी मंत्री का दफ्तर नहीं है। यहां पर दिल्ली के वित्त और विजिलेंस विभाग स्थित हैं। ये विभाग प्रशासनिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये सत्ता के वित्तीय और निगरानी पक्ष को दर्शाते हैं। इसके अलावा, पांचवीं मंजिल पर दिल्ली के मुख्य सचिव का कार्यालय है, जबकि पीडब्ल्यूडी सचिव का दफ्तर भी यहीं है। सचिवालय की छठी, सातवीं और आठवीं मंजिल पर मंत्रियों के दफ्तर हैं।

हालांकि, इन मंजिलों पर एक दिलचस्प बदलाव आया जब अरविंद केजरीवाल सरकार ने उपमुख्यमंत्री का पद गठित कर इस पद पर मनीष सिसोदिया को नियुक्त किया था। सिसोदिया ने छठी मंजिल पर बने दो मंत्रियों के दफ्तर में अकेले काम करना शुरू कर दिया था।

इसके परिणामस्वरूप, सातवीं मंजिल पर तीन मंत्रियों के दफ्तर बनाए गए थे। इसप्रकार, दिल्ली सचिवालय न केवल एक प्रशासनिक केंद्र है, बल्कि यह राजनीति, सत्ता और शासन की जटिलताओं का भी प्रतीक बन चुका है। यह इमारत आज दिल्ली की राजनीति और प्रशासन की न केवल संरचना, बल्कि उसके बदलते समीकरणों का भी आइना बन गई है।

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