ये परिवार चींटियों की करता है सेवा, तैयार करते हैं उनके लिए घर
गुजरात: जहू माता सेवक परिवार का यह कार्य सिर्फ अबोल प्राणियों की सेवा तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समाज को एकजुट करने का काम भी करता है. इस अभियान के साथ जुड़ने से स्थानीय समुदाय को पर्यावरण और जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशीलता का एहसास होता है. गाँव की महिलाएं इस कार्य में अपनी भूमिका निभाती हैं, जिससे न केवल सेवा का काम हो रहा है, बल्कि एकजुटता और सामाजिक सहयोग का संदेश भी फैलता है.
लोग अपने घरों से अनाज देते हैं
ग्रामवासियों का समर्थन और योगदान इस सेवा कार्य को और प्रभावी बनाने के लिए, ग्रामवासी भी सक्रिय रूप से योगदान देते हैं. कई लोग अपने घरों से अनाज और अन्य सामग्री प्रदान करते हैं, ताकि किड़ियारे भरने के लिए आवश्यक सामग्री की कोई कमी न हो. इस तरह की सामूहिक भागीदारी से यह पहल मजबूत हो रही है और अबोल प्राणियों के प्रति समाज की जिम्मेदारी को समझने में मदद मिल रही है.
आर्थिक लाभ नहीं
जगह-जगह किड़ियारे भरने की प्रक्रिया इस प्रक्रिया के तहत, जहू माता सेवक परिवार के सदस्य किड़ियारे को व्यवस्थित तरीके से विभिन्न स्थानों पर रखते हैं. यह सुनिश्चित किया जाता है कि चींटियाँ और अन्य छोटे जीव-जंतु इन्हें आसानी से पा सकें और अपनी जरूरत के हिसाब से उपयोग कर सकें. किड़ियारे भरने का यह काम पूरी तरह से स्वेच्छा से किया जाता है और इसमें किसी प्रकार का आर्थिक लाभ नहीं लिया जाता है.
लोगों को करती हैं जागरूक
सेवा कार्य में महिलाओं की अहम भूमिका जहू माता सेवक परिवार की महिलाओं की भूमिका इस सेवा में अत्यधिक महत्वपूर्ण है. महिलाएं न सिर्फ गल्लों में अनाज भरने का कार्य करती हैं, बल्कि पूरे गाँव के लोगों को इस सेवा के महत्व के बारे में जागरूक भी करती हैं. उनकी मेहनत और योगदान से यह कार्य निरंतर चल रहा है और समुदाय में एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है.
आध्यात्मिक महत्व और श्रद्धा का संचार इस सेवा में शामिल लोग इसे एक आध्यात्मिक कार्य मानते हैं. यह केवल शारीरिक श्रम नहीं, बल्कि आत्मिक शांति का भी एक साधन बन गया है. अरविंदभाई बरोत के दृष्टिकोण के अनुसार, यह सेवा न केवल मानवता की सेवा है, बल्कि यह भगवान के प्रति आस्था और प्रेम का भी प्रतीक है. यह कार्य न केवल जीवों के लिए सहायक है, बल्कि सेवादारों को आंतरिक शांति और संतुष्टि का अनुभव भी देता है.